गुरु पूजन दिवस : गुरू साक्षात परमब्रह्म, तस्मै श्री गरुवे नमः.. बाबा श्यामा नन्द गिरि महाराज।

 


हिन्दुस्तान वार्ता। दिल्ली

जीवन के मार्गदर्शन के लिए गुरु की आवश्यकता अनिवार्य रूप से होती है, जब हम जन्म लेते हैं उस समय से लेकर जब तक यह संसार में शरीर रहता है जब तक मृत्यु नहीं हो जाती है तब तक गुरु की आवश्यकता महसूस होती है। गुरु जीवन है गुरु धन है गुरु ज्ञान है गुरु परंपरा है गुरु आत्म दर्शन है गुरु सब कुछ है ।

सर्वे सर्वा है गुरु के बिना जीवन उसी प्रकार है जिस प्रकार से बहुत बड़ा मकान हो और उस मकान में दरवाजा नहीं हो बहुत बड़ा मंदिर हो और उस मंदिर में पुजारी नहीं हो महंत नहीं हो उसी प्रकार से यह जीवन नीरस हो जाता है उदासी की लहरों में झूमने लगता है और झूमता है जिन लोगों के पास स्वयंभू गुरु है जो अपने आप को गुरु ही कहते हैं ।

उससे पूछिए कि क्या है गुरु हमें मार्गदर्शन करता है मुझे मालूम नहीं चलता है इसमें मेरी भलाई है कि नुकसान है लेकिन गुरु हर मार्ग को समझ कर के हमारे स्वभाव के अनुसार मेरे कर्म के अनुसार मेरे भाग्य प्रारब्ध के अनुसार वह मार्गदर्शन करता है। कभी-कभी गुरु की बानी में ऐसा तत्व छिपा होता है कि हम समझ नहीं पाते हैं और जो शिष्य गुरु के बानी पर गुरु के बताए हुए मार्ग पर गुरु के मार्गदर्शन पर प्रश्न करता है शंका करता है। वह विकास के उस चरम उत्कर्ष को नहीं प्राप्त कर सकता है, कभी-कभी गुरु के किए गए कार्यों के संपादन से मन में तरह-तरह की संकाय उत्पन्न होने वाले व्यक्ति बाद में पश्चाताप की अग्नि में जलने लगता है क्योंकि जो गुरु को प्रसन्न न करता है वह समझो जीवन में सारी खुशियां सारे विकास के दरवाजे बंद कर चुके होता है ,

क्योंकि गुरु विश्वास करने के लिए और विश्वास जमाने के लिए होता है गुरु के प्रति पूर्ण रूप से समर्पण की भावना और भरोसा विश्वास इमानदारी पूर्वक करना होता है जो कोई गुरु के प्रति समर्पण भाव से इमानदारी पूर्वक भरोसा के साथ विश्वास करता है उसका इस संसार में तो नाम होता ही है जस पद धन की प्राप्ति अवश्य होती है, और परमार्थ में विवाह सूरज की तरह प्रकाशित होता है । 

आध्यात्मिक जीवन और परम आर्थिक जीवन और सामाजिक जीवन में वाह कामयाब हो जाता है गुरु पूर्णिमा इसी असाढ पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिस प्रकार से गुरु के प्राप्ति के बाद साधक का जीवन एक नवीन की ओर एक नई दुनिया की ओर प्रदर्शित होती है उसी प्रकार से प्राकृतिक का भी परिवर्तन प्रारंभ हो जाता है और भगवान भोलेनाथ शिव शंभू के पवित्र महीना श्रावण का शुरुआत हो जाता है इसलिए शास्त्र में गुरु सर्वोपरि माना गया है गुरु का ही रूप ब्रह्मा का विष्णु का और भगवान शंकर का बताया गया है गुरु तीनों काल में उपस्थित रहते हैं और शिष्य के ऊपर कृपा दृष्टि बनाए रहते हैं।

ॐ हर हर महादेव। 🚩