भाग्य विधाता : प्रकाश गुप्ता "बेबाक"

 

     



हिन्दुस्तान वार्ता।

ऐसे  वैसे  कैसे  भी इक होड़ है सत्ता पाने की,

भारत का भाग्य विधाता बनकर आसमान पर छाने की।


क्या साम दाम क्या  झूँठ सच  नैतिकता दम तोड़ रही,

क़ीमत फिर चाहे कोई हो सिंहासन हथियाने की।


कहीं जुबां उगलती शोले तो कोई ज़हर फ़िज़ा घोल रहा,

जिसको देखो कोशिश में है वो लगी में और लगाने की।


जो भी  आया वो  चला गया  दे दे के हवायें शोलों को,

कोई तो ज़हमत कर लेता इस आग पे काबू पाने की।


ग़ैरों को लगी पर दुनिया को हमने खुश होते देखा था,

यहां तो  अपनों  में होड़  लगी है खुद अपना चमन जलाने की।


अपने हाथों ही  कश्ती को खुद तूफां बीच धकेल रहे,

जाने क्यूँ इनकी हसरत है खुद अपनी नाव डुबाने क

 ✍️ प्रकाश गुप्ता 'बेबाक'