सहज नहीं है महानगरों के स्‍थापना दिवसों का निर्धारण।

 



- आगरा का स्‍थापना दिवस तय करने को लेकर भी चल रहा है मंथन।

हिन्दुस्तान वार्ता।

आगरा:उ प्र में महानगरों के नामों के नाम बदले जाने के बाद अब उनके स्‍थापना दिवस तलाशे जाने के प्रयास हो रहे है,शासन ने शहरी निकायों को इसके लिये कहा है।इसके लिये वाकायदा शासनादेश जारी कर कमेटियां गठित की गयी हैं।लेकिन जो शासनादेश निर्गत हुआ है, उसके अनुसार यह कार्य सहज नहीं दिखता। आजादी के बाद स्‍थापित नवसर्जित जनपदों और नगरों की स्‍थापना दिवसों के बारे तो स्‍थापना दिवस उन शासनादेशों की तारीखों को स्‍वीकार किया जा सकता है,जिस दिन ये निर्गत हो प्रभावी हुए। 

लेकिन प्रयागराज,काशी, अयोद्या,मथुरा,मेरठ जैसे महानगरों ही नहीं प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक की स्‍थापना कब हुई इसको सटीकता के साथ नहीं कहा ज सकता।इनमें से कोई नगर किसी के भी द्वारा स्‍थापित नहीं किया गया।इनमें से किसी भी शहर की स्‍थापना दिवस के बारे में गजेटियर या मुगलों के शासन के दौरान निकलने वाले 'फर्मान'या 'निशान' में जानकारी नहीं है। पूर्व शासनकर्त्‍ताओं के काल के बृतांत भी इनकी स्‍थापना के बारे में कोयी सटीक जानकारी नहीं देते।

 शासनादेश के कारण बढीं मुश्‍किल:-

दरअसल उ प्र शासन की ओर से 18जुलाई 2022 को विशेष सचिव राजेन्‍द्र पैंसिया ने शासनादेश जारी कर निदेशक स्‍थानीय निकाय उ प्र को नगरों का जन्‍म दिवस मनाये जाने को तरीख तय कर आयोजन की भूमिका तय करने को कहा हुआ है।

गजट से बनी असमंजस की स्‍थिति:-

इस शासनादेश में गजेटियर,आर्काइवल रिकार्ड,नगर के रूप में अधिसूचित होने के दिनांक ,एतिहासिक घटनाओं में से किसी एक को नगर की जन्‍म तिथि के रूप में मनाये जाने को कहा है। शासनदेश में आयोजन दिवस निर्धारण को तारीखें मांगी गयी हैं,जबकि ज्‍यादातर घटनों तिथियों पर ही आधारित हैं। इन घटनाओं में से भी ज्‍यादातर वे हैं जो कि अंग्रेजों और मुगलों ने उनमहानगरों पर कब्‍जा कर अपने साम्राज्‍य में मिलाया था। सांस्‍कृतिक और सम्‍मान को लेकर मौजूदा जनजाग्रति के मौजूदा दौर में इस प्रकार की घटनाओं को स्‍थापना दिवस के रूप में मनाये जानपे का आधार शायद ही किसी सामान्‍य व्‍यक्‍ति को भी उपयुक्‍त लगे।वाराणसी या काशी कब स्‍थापित हुई इसकी जानकारी शैवपुराण के ज्ञानी तक सहजता के साथ तय नहीं कर सकते ,न हीं वारेन हेस्‍टिंग की सेना के द्वारा वाराणसी को अपने कब्‍जे में लेने की तारीख को इतिहासकार काशी के स्‍थापना दिवस के रूप में मान्‍यता देना चाहेंगे।

मेयरों की दुविधा:-

नगर निगमों और स्‍थानीय निकायों के कार्यकाल नवम्‍बर 2022 में समाप्‍त हो जायेगा । प्रदेश भर के मेयर चाहते हैं कि उनके निकायों का 'हैप्‍पी बर्थ डे 'दिवस उन्‍हीं के कार्यकाल में निर्धारित हो। यही नहीं इसके लिये वहीं तारीख तय हो जो कि उनके समाप्‍त होने जा रहे कार्यकाल में पडती हो।हो सकता है कि कुछ नगरों के इतिहास या अन्‍य अवसरों से जुडी तारीखें मिल भी जायें किन्‍तु अधिकाश के सामने असमंजस की स्‍थिति है। 

आगरा और मथुरा:-

आगरा के इतिहासकार मानचुके है कि यह महानगर यमुना नदी के किनारे स्‍वत: विकसित हुआ है,प्‍लांड शहर के रूप में इसकी कभी भी स्‍थापना नहीं हुई। मूल रूप से आगरा वन संपदा से संपन्‍न तपस्‍वयों और ऋषियों की मनभावन तपस्‍या स्‍थली था,कलांतर बडे परिवर्तनों के दौर से गुजरने के बाद अब विकसित महानगर के मौजूदा स्‍वरूप में है।मेयर नवीन जैन की अध्‍यक्षता में इसके लिये एक कमैटी भी गठित हो चुकी है।कुछ तिथियों पर कमेटी की सहमति भी बनी है किन्‍तु जब तक शासन से उपरोक्‍त तारीखों का वाकायदा नोटिफिकेशन नहीं हो जाता तब तक मेयर आधिकारिक  रूप से कुछ भी कहने की स्‍थिति में नहीं हैं। 

इसी प्रका मथुरा के बारे में भी असमंजस की स्‍थिति है, इसे कृष्‍ण का शहर माना जाता है किन्‍तु जहां तक स्‍थापना का सवाल है , इसे त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज शत्रुघ्न ने लवणासुर नामक राक्षक का वध करके बसाया था। शत्रुघ्न के बाद में यादव वंशी 'सत्वान' या सत्वंत के पुत्र भीम सात्वत ने मथुरा नगर तथा आसपास के प्रदेश पर अधिकार प्राप्त कर लिया। मथुरा की प्रचलित चौरासी कोस की परिकृम्‍मा भी शत्रुघ्‍न के शासन काल में ही शुरू हुई थी। लेकिन मथुरा के संबध में ज्‍यादातर प्रचलित घटनायें त्रेता युग ककी न होकर द्वापर युग की ही हैं। कृष्‍ण मथुरा वासियों के अराध्‍य है,एसे में मथुरा स्‍थापना दिवस निर्धारकों को काफी सोच समझ से ही काम लेना पडेगा।

फोटो: आगरा स्‍थापना दिवस निर्धारण को गठित कमेटी की अब तक लगातार हो चुकी है कई मीटिंग।

रिपोर्ट-असलम सलीमी।