आओ खुशी से दीप जलाएं,प्यार के।वर्ष बिता के आई है,ये शाम जिंदगी में:इंजी.आर.के.सिन्हा।

 


हिन्दुस्तान वार्ता।

दीपावली परंपरा और वैज्ञानिकता।

दीपावली यानी दीप की अवलि।अर्थात दीपों की कतार I 

कार्तिक मास की अमावस्या को धूम-धाम से मनाया जाने वाला यह धार्मिक त्योहार परंपरागत ढंग से त्रेतायुग से चली आ रही, भारतीय सनातन का गौरवमयी इतिहास को दुहराते हुए,गौरवांवित करता है,कि असत्य पर, सत्य की जीत सुनिश्चित है I 

   ये हमे प्रेरणा देता है कि लाख अंधेरी रात हो,यदि आप सदाचारी रहेंगे,सत्य की उपासना करेंगे तो आप आंतरिक प्रकाश से स्वयं ही नहीं अपितु पूरी सृष्टि को आलोकित करेंगेI

भारतीय सनातन की यह विशेषता रही है कि हमारे यहां प्रथम अपने चरित्र,कर्म और धारणा से स्व को,अपनी अंतरात्मा को प्रकाशित किया जाता हैI 

पश्चात यही प्रकाश उद्गम आपके 'औरा' के प्रकाश से जग को प्रकाशित करता हैI 

त्रेता युग के चक्रवर्ती-राजा 'दशरथ',जो अपने दसों-इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर देवों के सेनापति थे,के पुत्र राम अपने राजगद्दी के दिन के ब्रह्म मुहूर्त में पिता और माता की आज्ञा मानकर,राज सुख त्याग,तत्काल 14 वर्ष के लिए वन-गमन कर गए,तथा असत्य पर सत्य की विजय पताका फहरा कर ,जब अयोध्या लौटे तो पूरे नगर वासियों ने जो एक राजकुमार, श्री राम के वन गमन के प्रत्यक्ष दर्शी थे, को एक दिव्य पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रूप में प्राप्त हुएI इस दिव्य रूप को अपने हृदय में आत्मसात करते ही वे सभी अंदर और बाहर से पूर्ण ज्ञान से प्रकाशित हुए और अपनी खुशियों को उन्होंने घी के दीप मालाएं जलाकर प्रदर्शित किया! सनातन धर्म हमेशा से इस मान्यता को मानते रहा है कि,... तमसो मा ज्योतिर्गमय, अर्थात अंधेरे से प्रकाश की ओर गमन!

 और दीपावली इसी मान्यता को स्थापित करता है। 

इसी क्रम में सनातन की दो विचार-धाराओं वाले धर्मों में भी मान्यता अनुसार,1.'जैन धर्म' इस दिन को चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी के 'मोक्ष-प्राप्ति' दिवस रुप में मनाते हैं।

इसी दिन स्वामी महावीर के प्रथम शिष्य 'गौतम गणधर' को 'केवल-ज्ञान' प्राप्त हुआ था। 

2.'सिख-धर्म' अनुसार 1577 में 'स्वर्ण मंदिर' का शिलान्यास हुआ, और इसके अलावा 1619 में दिवाली के दिन,सिखों के छठे गुरु 'हरगोबिंद सिंह जी' को जेल से रिहा किया गया था।

सनातन धर्म के प्रत्येक त्यौहार, 'वैज्ञानिकता' के प्रमाण पर भी खरे उतरते हैं।

और हमारी परंपराओं को मनाने के पीछे वैज्ञानिक कारणों पर पूर्णतः प्रकाश डालते हुए हमारे 'ऋषियों' के ज्ञान से भी अवगत कराते हैं।

दीपावली वर्षा-ऋतु के तत्काल बाद मनाई जाती हैI इस समय कीटों,फफूंदीयों आदि के पोषण का समय होता है और नाना प्रकार की बीमारियों का संक्रमण बढ़ जाता है,अतः घर द्वार की पूरी साफ-सफाई, गाय के गोबर, से लिपाई पुताई के साथ  घि-तेल के दीप की मालाओं के साथ पूरे नगर को सजाया जाता है, जिससे सभी प्रकार के कीट पतंगों के साथ-साथ समस्त फफूंदीयों का विनाश हो जाता है,तथा नागरिकों के स्वास्थ्य की 'प्राकृतिक-रक्षा, कवच का निर्माण होता है।घी के दीपक से वातावरण स्वच्छ होता है।

ऑक्सीजन की हवा में प्रचुरता हो जाती है। प्रकृति और स्वास्थ्य से परिपूर्ण मानव,'धन-देवी' की आराधना कर समृद्धि को प्राप्त करने हेतु 'मां लक्ष्मी' की पूजा करता है। परंतु 'धन' का आगमन यदि बिना बुद्धि के होता है,तो विनाश का कारण बनता है,अतः समस्त समृद्धि हेतु धन की देवी 'लक्ष्मी' की आराधना के साथ-साथ दिवाली पर 'श्री गणेश' बुद्धि एवं बुद्धि-तत्परता के प्रतिक देव की भी पूजा होती है।

इस प्रकार सनातन धर्म परिपूर्णता को दर्शाते हुए,हमारे अंदर ज्ञान का प्रकाश सतत प्रवाहित कराते रहने का सुगम मार्ग अपने धार्मिक त्योहारों द्वारा सुलभ कराता हैI 

 दिवाली पर हम अपने अंदर ज्ञान प्रकाश फैलाते हुए जग को प्रकाशित करते हैं तथा 'स्व' को स्वच्छ करने के साथ-साथ प्रकृति को भी स्वच्छ करते हैं।

आप सभी को दीपावली के शुभ अवसर पर,कोटि कोटि बधाइयाँ!

 धन्यवाद। 

✍️इंजी.आर के सिन्हा

      पूर्व महा प्रबन्धक 

        कोल इंडिया।

   निवास-14,मेघ कुंज,सिकंदरा

 आगरा।

मो. 9557403959,8477877770