आज से शुरु हो रहा है छठ पूजा का" महापर्व" नहाय खाय से होगा शुभारंभ। जानें क्या है इसकी पूजा विधि।




हिन्दुस्तान वार्ता। रविन्द्र दुबे

आगरा: आज नहाय-खाय से शुरू हुआ, छठ पूजा का पर्व।

आस्था के महापर्व छठ पूजा का प्रारंभ आज 28 अक्टूबर 2022 से हो रहा है इस चार दिवसीय छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है।

 छठ का व्रत काफी कठिन होता है, क्योंकि इस दौरान व्रती को लगभग 36 घंटे तक निर्जल व्रत रखना होता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक,हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का दिन, नहाय-खाय का होता है।

छठ पूजा के दौरान षष्ठी मैया और सूर्यदेव जी की ,पूजा की जाती है। छठ पूजा के पर्व को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाना जाता है। इस पर्व को संतान ,परिवार , समाज  तथा सम्पूर्ण जगत के सुख शांति के लिए रखा जाता है।

 कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद व्रत का पारण यानि समापन किया जाता है।

आइए जानते हैं नहाय-खाय का महत्व:-

छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय- 

नहाय खाय से छठ पूजा की शुरुआत होती है।इस दिन व्रती नदी या घर में स्नान करते हैं ,और इसके बाद छठ व्रती प्रसाद बनाना शुरू करते हैं।इस दिन सिर्फ एक ही बार खाना खाया जाता है। नहाय-खाय वाले दिन महिलाएं घर की साफ-सफाई करती हैं और इस दिन हर घर में लौकी या कद्दू की सब्जी , चने की दाल, चावल बनते है। इस दौरान तैयार किए गए भोजन में सेंधा नमक एवं शुद्ध देसी घी का ही इस्तेमाल किया जाता है ।

नहाय खाय के दिन, बने प्रसाद में लहसुन-प्याज, तेल का इस्तेमाल वर्जित माना जाता है।इसके अलावा बैंगन आदि सब्जियों को भी नहाय-खाय के दिन प्रसाद में शामिल नहीं किया जाता।छठ व्रती प्रसाद बनाने के बाद पहले भगवान सूर्य की आराधना करते हैं,उसके बाद, नहाय खाय का प्रसाद ग्रहण करते हैं। छठ व्रती के प्रसाद ग्रहण के बाद ही परिवार के अन्य सदस्य प्रसाद को ग्रहण करते हैं।

नहाय-खाय पर बनने वाले शुभ योग :-

आज नहाय-खाय के दिन कई शुभ योग बन रहे हैं।

अभीजीत मुहूर्त-  सुबह 11 बजकर 59 मिनट से शाम 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगा ।

अमृत काल- सुबह 12 बजकर 53 मिनट से , अक्टूबर 29 से सुबह 02 बजकर 23 मिनट, अक्टूबर 29

सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 06 बजकर 37 मिनट से  सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक,

रवि योग- सुबह 10 बजकर 42 मिनट  से  सुबह 06 बजकर 37मिनट तक, अक्टूबर 29

नहाय-खाय का महत्व:-

छठ पूजा में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है।चार दिनों के महापर्व छठ की शुरुआत नहाय-खाय से होती है।

इस दिन व्रती स्नान करके, नए कपड़े धारण करते हैं और पूजा के बाद चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं।व्रती के भोजन करने के बाद परिवार के बाकी सदस्य भोजन करते हैं। नहाय-खाय के दिन भोजन करने के बाद व्रती अगले दिन शाम को खरना पूजा करते हैं। इस पूजा में महिलाएं शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ की खीर ,पीतल के बर्तन में बनाकर, उसे प्रसाद के तौर पर खाते हैं और इसी के साथ व्रतीयों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मईया) का आगमन हो जाता है।

आइए जानते हैं छठ पर्व के बाकी दिनों के बारे में - 

खरना- 

नहाय -खाय के बाद छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है।इस साल खरना 29 अक्टूबर 2022 को है। इस दिन छठ व्रती गुड की खीर का प्रसाद बनाते हैं।इस प्रसाद को रात के समय खाया जाता है और सभी भाई बंधु को बांटा भी जाता है। खरना के खीर का महत्व ऐसा है कि बड़े से बड़े लोग भी ब्रत वाले घर जाकर इसे मांगकर प्रसाद को ग्रहण करते है। इसके बाद से ही छठ व्रती का 36 घंटे का व्रत शुरू हो जाता है।

छठ पूजा का पहला अर्घ्य-

 छठ पूजा का तीसरा दिन काफी खास माना जाता है। इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन अर्घ्य के सूप को सभी प्रकार के फल, शुद्ध देशी धी के ठेकुआ और चावल के लड्डू से सजाया जाता है। इसके बाद डूबते हुए अस्ताचलगामी सूर्य की पूजा की जाती है और अर्घ्य दिया जाता है।छठ पूजा का पहला अर्घ्य इस साल 30 अक्टूबर 2022 को दिया जाएगा। इस दिन सूर्यास्त की शुरूआत  05 बजकर 34 मिनट से होगी।

उषा अर्घ्य,छठ पूजा का चौथा दिन-

 छठ पूजा के चौथे दिन व्रती द्वारा उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। 31 अक्टूबर के दिन उगते हुए उदयीमान सूरज की अर्घ्य दिया जाएगा,फिर पारण करने के बाद छठ पर्व का समापन होगा। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 27 मिनट पर होगा।

छठ से जुड़ी लोक कथाएं:-

एक मान्यता के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने रावण वध के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की और अगले दिन यानी सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की और आशीर्वाद प्राप्त किया। तभी से छठ मनाने की परंपरा चली आ रही है।

 एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ देवी, सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। व्रत करने वाले मां गंगा और यमुना या किसी नदी या जलाशयों के किनारे अराधना करते हैं। इस पर्व में स्वच्छता और शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। 

 एक और मान्यता के अनुसार छठ महाभारत काल में भी हुई थी और सबसे पहले सूर्य पुत्र श्री कर्ण ने यह पूजा की।

 राजा कर्ण, अंग प्रदेश यानी वर्तमान बिहार के भागलपुर के राजा थे।कर्ण घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे और इन्हीं की कृपा से वो परम योद्धा बने थे।

 छठ में आज भी अर्घ्य देने की परंपरा है। महाभारत काल में ही पांडवों की भार्या द्रौपदी के भी सूर्य उपासना करने का उल्लेख है जो अपने परिजनों के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना के लिए नियमित रूप से यह पूजा करती थीं।

इस पर्व में गीतों का खास महत्व होता है। छठ पर्व के दौरान घरों से लेकर घाटों तक,छठ के गीत गूंजते रहते हैं। व्रतियां जब जलाशयों की ओर जाती हैं, तब भी वे छठ महिमा की गीत गाती हैं।

जय हो छटी मईया की....🙏