"जागो मोहन प्यारे" एक जनभावनाओं के अनुरूप,जन सहभागिता अभियान:सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा।

 

 

हिन्दुस्तान वार्ता।आगरा

आज,नागिरी प्रचारणी सभागार में"जागो मोहन प्यारे" जन  सहिभागिता अभियान पर सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा एवं सहयोगी प्रबुद्ध जनों ने मीडिया के समक्ष विस्तृत चर्चा की।

उन्होंने बताया कि...

 इस अभियान का मुख्य मकसद लोकतांत्रिक व्यवस्था के नायक ' माननीयों' को उनकी सुप्‍त प्राय:सी स्थिति से उबार कर उनके उस दायित्‍व का अहसास करवाना है,जिसके लिये वे स्वयं संकल्पित हैं।

हो सकता है कि उनके द्वारा अपने स्‍तर से कुछ कार्य किये जा रहे हों ,उनकी अपनी उपलब्धियां भी हों किन्तु आगरा के लोगों को इनकी जानकारी नहीं है। इसका मुख्य कारण 'जन जीवन' की स्थितियों में खास बदलाव नहीं आया है।

- नागरिक सेवाओं की स्थितियों में लगातार गिरावट आ रही है,जबकि जन प्रतिनिधियों की सक्रियता से इनमें सुधार आना चाहिये था।

- बहु प्रतीक्षित 'गंगाजल' पाइप लाइन सेवा पूरी हो गयी, किन्तु इसके बावजूद महानगर का एक बडा भाग पाइप लाइन वाटर सप्‍लाई सिस्‍टम से जुडने के इंतजार में है।

हाल में दीपावली पूर्व समूचे महानगर को पेयजल आपूर्ति के संकट का सामना करना पड़ा। तब सामने आया कि गंगाजल का पानी किन्हीं पर्याय कारणों से बंद हो गया है और यमुना जल का उपयोग वाटर सप्लाई के लिये जल संस्थान बन्द कर चुका है।

-पिछले 5 साल में महानगर की सड़कों की पटरियों पर अतिक्रमणों की संख्‍या व घनत्व काफी बढ़ गया है। इनमें से अनेक तो सरकारी योजनाओं के तहत सृजित संपत्तियां हैं। सड़कों की बदतर हालत सर्व विदित है। 

- महात्‍मा गांधी रोड सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की यथावत प्रयोगशाला बनी हुई है,लेकिन इससे महानगर के विस्तृत आकार की जरूरत पूरी नहीं हो सकी है। आगरा को बेहतर व प्रभावी परिवहन सुविधा चाहिये,न कि सीमित उद्देश्यों के लिये संचालित डेमो प्रोजेक्‍ट।

- महानगर की बिजली सप्लाई अब पूरी तरह से निजी कंपनी के रहमो करम पर है। जनता की बिजली के बिलों को लेकर शिकायतें लगातार बढ़ी हैं। पड़ोसी महानगर दिल्ली में जहां छोटे विद्युत उपभोक्ताओं को राहत मिल रही है,वहीं आगरा में तो छोटे उपभोक्ताओं को ही विद्युत राजस्व उगाही का लक्ष्य बनाया हुआ है।

- विद्युत उपभोक्ताओं के कंज्यूमर कोर्ट में निस्‍तारित मामलों और निर्णयों के विरुद्ध दायर अपीलों की समीक्षा की जरूरत है।

जबकि सर्वविदित है कि आम नागरिक की कमाई के जरिये आगरा में घटे हैं, नये कारखाने यहां खुल नहीं रहे है, सरकारी नौकिरयों के अवसर भी सीमित ही हैं। जी एस टी की मार गरीब से गरीब पर भी बढी है।ट्रेडिंग कम्‍युनिटी तो सरकारी सेवाओं के वेतन भोगियों से होने वाली आमदनी से फलफूल रही है, किन्तु महानगर के आर्थिक की विकास दर पर इसका खास असर नहीं पड़ा है। जीडीपी और सेंसेक्‍स में आते रहे उछालों का आगरा के अर्थतंत्र पर असर क्‍यों नहीं पडता, इसकी जांच पडताल जन प्रतिनिधियों को जरूर करवानी चाहिये।

-आगरा में निजी क्षेत्र का शिक्षा में बहुत बड़ा निवेश है, सरकारी निवेश के लगातार संकुचन से अब निजी प्रबंधन के शिक्षण संस्थानों की संख्या ही बढनी है। डा.भीम राव अम्बेडकर वि वि के एफीलेशन सेक्शन में बद से बदतर स्‍थितियां विद्यमान हैं। नई संस्थाओं के रजिस्ट्रेशन /एफीलिएशन ,इंस्‍पेक्‍शन तथा नवीनीकरण का कार्य प्रश्‍न चिन्‍हों से भरपूर है। वि वि की सीनेट का चुनाव न होने और कार्य परिषद का गठन वि वि की नियमावली अनुसार न होने से दुश्वारियां लगातार बढ़ी हैं। एफीलिएशन सेक्शन के संबंध में तो बैकलॉक क्लियर करने के लिए कैंप तक आयोजित करना सामायिक जरूरत लगती है।

- आगरा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन का शहर है, प्रभावी एयरपोर्ट और राष्ट्रिए एवं शैड्यूल अंतराष्ट्रीए उड़ान का अभाव है,जबकि शहर कि इकॉनमी पर्यटन उद्योग पर निर्भर है।

- शहर कि कई दशकों की मांग -बैराज,अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम और हाईकोर्ट पर शांति है,अभी तक कोई प्रगति नहीं है।

- शहर में बंदरों का आतंक है। 

ये मुख्‍य, वे समस्‍यायें हैं ,जिन्हें आगरा के माननीयों से नगर हित में दूर करवाने की अपेक्षा आगरा के आम जनमानस को है।

हमारा अभियान' जागो मोहन प्यारे'।

जहां तक इन समस्याओं को लेकर इस अभियान की बात है, इस सम्बन्ध में सिविल सोसायटी ऑफ आगरा का कहना है ..

"जैसा कि हम और आप महसूस करते हैं कि विकास और आर्थिक उन्नति के परिपेक्ष्‍य में 'आगरा' लगातार पिछड़ता जा रहा है। 

हम सरकारी आंकड़ों और जन प्रतिनिधियों के दावों को लेकर कुछ नहीं कहते। 

सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा  की चिंता, मुख्य रूप से देश व उत्तर प्रदेश के अन्य महानगरों में हो रहे कार्यों की तुलना में कहीं पीछे रहने को लेकर है।

उपरोक्‍त नकारात्मकता की वजह सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा उन महानुभावों का सुप्‍त अवस्था में होना और दिशाहीन स्थिति में होना मानती है।यह स्थिति न तो समाज और न हीं आगरा के लिए ही अच्छी है। फलस्‍वरूप सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा की ओर से सामाजिक व राजनैतिक जागरूकता के लिये 'जागो मोहन प्यारे' ,अभियान शुरू किया जा रहा है।

बृज क्षेत्र में मोहन नाम भगवान कृष्ण का पर्यायवाची सा है। जब बृजवासी अपने को असहाय सा महसूस करते तो..अपने इष्ट की शरण में जाते हैं।भजन,कीर्तन,निवेदन और आह्वान करना हमारी संस्कृति का अंग है। आराध्या के कई रूप होते है ,इसी कारण से 'छलिया शब्द तक का उपयोग उनके लिये कई बार किया जाता है। हमारे अभियान का आराध्य त्रेता युगा का नायक नहीं अपितु ईवीएम मशीन के माध्‍यम से चुना गया हमारा अपना 'कलयुगी 'महान है।

हमे अहसास होता है कि वह तंद्रा में है,उसे जागृत करना आज की सबसे बडी जरूरत है,कम से कम सिविल सोसायटी ऑफ आगरा  का तो यह भी मानना है कि अगर अपने  9+2+1+1+(1+1) मोहनों में से तीन चार भी सुप्‍त अवस्था से बाहर आ सके तो 'आगरा का स्‍वत:ही कल्याण' हो जायेगा।

हमने प्रशासन से आगरा में -इस जागृति अभियान चलाने के लिये अनुमति मांगी है।जैसे सरकार जागरूकता अभियान पूर्ण जोश से चलाती है, वैसे ही हम आगरा के विकास के लिये यह अभियान चला कर जनता को जागरूक करना चाहते है। हम मानते है, प्रशासन की अनुमति/ स्वीकृति मील का पत्थर साबित होगी। 

हमने माननीय जनप्रतिनिधियों को पत्र लिख कर उनसे सहयोग मांगा है और अनुरोध किया है  , “जागो मोहन प्यारे – जागृति अभियान” चला कर, आप जनता  को चैतन्य करने का सशक्त माध्यम हैं"। यह अभियान पूर्णत:बृज क्षेत्र की संस्कृति के अनुकूल है और सकारात्मक लक्ष्य का है।

हम कलयुग के पालनहारों के लिए कृष्ण की नगरी से पालने (हिंडोले) मांगवाये जाने का प्रयास कर रहे है। इसके तहत महानगर में कई सार्वजनिक  स्थानों पर हिंडोले सजाये जायेंगे,और इनमें विद्यमान 'आत्ममुग्ध ' स्थिति में पहुंचे हुए महानुभावों की, हिंडोलों को उनमें बंधी डोरियों से 'डोलायमान' कर तंद्रा मुक्त करने का प्रयास किया जायेगा।

 प्रेस वार्ता के दौरान,चर्चा करने वालों में डॉ.बृजेश चंद्रा, डॉ. मुनीश्वर गुप्ता ,डॉ.संजय चतुर्वेदी , राजीव सक्सेना , डॉ.मधु भारद्वाज ,अनिल शर्मा आदि प्रमुख थे। 

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फिल्म जागते रहो और गाना जागो मोहन प्यारे'

हिंदी सिनेमा के प्रख्यात कलाकार राज कपूर जी ने मनोरंजक फिल्में बनाने के साथ ही अनेक संदेशात्मक फिल्में भी बनायी थीं। इन्हीं में एक थी 'जागते रहो' शहर में काम की तलाश में आये एक आम भारतीय की प्रेरक कहानी है।अभिनेता राज कपूर, प्रदीप कुमार, सुमित्रा देवी, पहाड़ी सान्याल,सुलोचना चटर्जी, डेज़ी ईरानी, मोतीलाल, नाना पालसिकर,इफ़्तेख़ार, विक्रम कपूर,मोनी चटर्जी, कृष्णकांत आदि अपने समय के प्रख्यात अदाकार इसके कलाकार है।पहली लोकसभा के गठन के दौर  1956 में यह फिल्‍म रिलीज हुई थी। यह वह कालखंड था जब राजनीति में गंदगी कम थी ,लोगों को अपने जनप्रतिनिधियों पर भरपूर भरोसा था। इसी फिल्‍म का गाना है:  

'जागो जागो जागो

जग उजियारा छाए,

मनन का अँधेरा जाये।

किरणों की रानी गाये।

जागो हे मेरे,

मैं मोहन प्यारे,

जागो मोहन प्यारे जागो।

जागो मोहन प्यारे जागो।

नवयुग चूमे नैन तिहारे,

जागो जागो मोहन प्यारे,

जागो रे जागो रे जाग कलियन जोगी,

नगर नगर सब गलियां जागी।

..........;......

बाहें फ़ैलाओ दुखियारे,

जागो मोहन प्यारे जागो,

जागो मोहन प्यारे जागो'

सिविल सोसाइटी आगरा के लोकहित को समर्पित  'जागो मोहन प्यारे' अभियान का फिल्‍म 'जागते रहो' या उसके किसी गाने से कोई संबंध नहीं है। हां यह बात जरूर है कि सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा के सदस्य निजी रूप से राज कूपूर साहब की इज्जत करते है और उनकी फिल्म को जन जागरण के लिए सर्वकालीन प्रेरक मानते हैं।यही नहीं इसे सकारात्मक संयोग के रूप में देखते हैं। 'जागो मोहन प्यारे 'इसी सिनेमा का गीत है और बृज क्षेत्र में इसकी भजन शैली में प्रस्‍तुति प्रचलित रही है।

रिपोर्ट-असलम सलीमी।