हिन्दुस्तान वार्ता।
जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं।
ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं॥
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि।
सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि॥
संत एकनाथ के जीवन की एक घटना है,जिससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। उस समय भारत वर्ष में रेल आदि अन्य यातायात के आधुनिक साधन नहीं थे। दक्षिण भारत से उत्तर की सीमा हिमालय की गंगोत्री तक आना आसान नहीं था। हृदय में ईश्वर का ध्यान करते हुए अपने साथियों सहित संत एकनाथ गंगोत्री आए,वहां के पवित्र जल को कावर में भरकर ले चले। काशी होते हुए रामेश्वरम की ओर जाने के लिए,वहां जाकर उस जल से पूजा करना चाहते थे।
धीरे-धीरे रामेश्वरम नजदीक आने लगा और अत्यंत समीप आ गया गर्मियों के दिन थे एक दिन,दिन की जलती हुई धूप में एकनाथ ने रेत के एक मैदान में एक गधे को पढ़े छटपटाते हुए देखा।
वे उसके निकट चले गए।
देखा,प्यास से असहाय उस पशु की दुर्दशा हो रही है संत एकनाथ को अनुभव हुआ मेरी पूजा स्वीकार करने के लिए शिव यहीं उपस्थित हो गए हैं।
उन्होंने उसी क्षण कांवड़ उतारी और गंगोत्री का निर्मल जल,गधे के मुख में डालना आरंभ किया।
ठंडा जल पीने से उस मरते हुए प्राणी में नवीन प्राणों का संचार हो गया,गधा उठ खड़ा हुआ और सुख पूर्वक एक तरफ चला गया।
एक नाथ की पूजा पूर्ण हो गई थी ।
वे आनंद से भर रहे थे,किंतु उनके साथी दुख कर रहे थे कि हाय,इतने परिश्रम से लाया गया गंगोत्री का जल व्यर्थ चला गया।
रामेश्वरम जाकर उससे पूजा नहीं हो सकी, इस जीवन में दोबारा गंगोत्री से जल लाकर पूजा हो सकेगी यह तो संभव नहीं ।
उनकी भावना देखकर एकनाथ हंसे और हंसकर बोले भाइयों,आंखों से पर्दा हटा कर देखो.. फिर दिखेगा कि एक मात्र, शिव ही सर्वत्र परिपूर्ण है। मेरी पूजा तो रामेश्वरम के मंदिर में विराजित शिवजी ने यहीं से स्वीकार कर ली है।
जय श्री महाकालेश्वर जी की....🙏