संत श्री विजय कौशल जी महाराज के श्री मुख से हो रही,श्रीराम कथा के सातवें दिन हुए रावण वध और राज तिलक प्रसंग।

 


                         

                     


 - आए हैं रघुनंदन,सजवा दो द्वार−द्वार,स्वर्ण कलश रखवा दो बंधवा दो वंदनवार…।

 − एसबी आर्नामेंट परिवार की ओर से आयोजित श्रीराम कथा का राज्याभिषेक संग समापन।

− जय सियाराम की गूंज से गुंज्जारित हुआ परिसर,रावण वध के साथ झूमने लगे श्रद्धालु।

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। बिलखती,बिखरती और वैधव्य को झेलती अयोध्या नगरी, उस वक्त निहाल हो उठी जब रघुनंदन भ्राता लक्ष्मण,पत्नी सीता और सेवक हनुमान संग पुष्पक विमान ने वनवास की अवधि पूर्ण कर वापस लौटे। तीन बार अयोध्या नगरी की परिक्रमा की और उसके बाद विमान से उतर सर्वप्रथम अपनी धरती माता को प्रणाम किया। दृश्य ऐसा कि हर कोई सुध बुध भूला, बस चहुं ओर एक पुष्पों की वर्षा और जय श्री सियाराम के जयकारों संग हर मन हर्षा। अद्भुत प्रसंग, दिव्य लीला और प्रभु के आदर्शाें पर चलने का संकल्प।

 सूरसदन प्रेक्षागृह में चल रही श्री राम कथा के अंतिम दिन मानो अयोध्या नगरी के ही दर्शन होने लगे। एसबी आर्नामेंट परिवार द्वारा आयोजित श्रीराम कथा के सातवें दिन कथा व्यास मानस मर्मज्ञ विजय कौशल महाराज ने श्रीरामचंद्र जी द्वारा लंका पर चढ़ाई से पूर्व रामेश्वरम की स्थापना और पूजन का प्रसंग सुनाया। महादेव को लंकापति रावण गुरु मानता था और उधर श्रीराम के वे आराध्य देव थे। सागर किनारे लिंगम का निर्माण और पूजन किया। प्रार्थना की कि प्रभु आप निष्पक्ष रहिएगा। इसके बाद भारत में एकत्मता की रेखा खींचते हुए घाेषणा की कि जो कोई रामेश्वरम शिवलिंग का अभिषेक भारत के दूसरे कोने में बहती गंगोत्री के जल से करेगा वो मेरा धाम पाएगा।

 इस प्रसंग के साथ ही कथा व्यास ने भारत की एकता को दृशाता गीत जहां डाल−डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा…स्वरबद्ध किया तो वंदे मातरम के जयघोषों से प्रेक्षागृह गूंजने लगा। अंगद को दूत बनाकर भेजना और फिर मेघनाद द्वारा लक्ष्मण जी को नाश पाश में बांध मूर्छित करना। हनुमान जी द्वारा संजीवनी लाना और इसके मध्य में भरत से भेंट होना। जैसे हर प्रसंग एक दृश्य की भांति नेत्रों के समक्ष चल रहा था। कथा व्यास संत विजय कौशल महाराज की वाणी की मधुरता के साथ कथा आगे बढ़ी और रावण द्वारा अपने हर नातेदार को श्रीराम के समक्ष यानी उनकी मृत्यु के समक्ष भेजने का स्वार्थ उजागर हुआ। 

मेघनाद,कुंभकर्ण के बाद जब स्वयं की बारी आई तो भयभीत होने लगा। इसके पूर्व 40 हजार सैनिका की अमृत सेना भेजी तो उन्हें हनुमान जी ने अपनी पूंछ में बांध पृथ्वी की परिधि से ही दूर फेंक दिया। 

जीव की पुकार पर दौड़े आते हैं भगवान।

जीव जब सहायता के लिए भगवान को पुकारता है तो भगवान दौड़े चले आते हैं और उसकी व्यथा मिटाते हैं। कथा व्यास संत विजय कौशल महाराज ने कहा कि रावण के वध की हर कोई प्रतिक्षा कर रहा था। विशेषकर विभीषण किंतु जब पहले दिन युद्ध में वो मारा नहीं गया तो उसने भगवान राम को बताया कि उसकी नाभि में अमृत कलश है। भगवान स्वयं जानते थे किंतु विभिषण द्वारा पुकारे जाने प्रतिक्षा कर रहे थे। इसके बाद 31 बाण साधे और सभी पूर्वजों, गुरुजनों और देवाें को मानसिक नमन किया। पृथ्वी से आकाश तक,तीनों लोकों में गर्जना हुई और रावण धाराशाई हो गया। 

राजा का धर्म भोग नहीं बल्कि सेवा है।

श्रीरामचंद्र जी का राज्याभिषेक होना था तो उससे पूर्व उन्होंने अपने भाइयों की सेवा की। उनको स्नान कराया, भाेजन कराया और उसके बाद स्वयं की सुध ली। संत विजय कौशल महाराज ने कहा कि राजा का धर्म विलास भाेगना नहीं अपितु सेवा करना है। इस बात का आदर्श श्रीराम जी से बढ़कर कोई नहीं हो सकता। राज्याभिषेक प्रसंग के समय राजा भये रघुराई कौशल्या मैया दे दो बधाईअ..गीत पर परिसर में उपस्थित हर श्रद्धालु जहां था वहीं पर भक्तिमय हो झूमने लगा। आरती एवं प्रसादी के साथ संत विजय कौशल महाराज ने आगरा में भी रामराज की स्थापना की प्रार्थना करते हुए कथा को विराम दिया।