जीवात्मा और परमात्मा के आध्यात्मिक मिलन ही है महारास:आचार्य सुशील जी महाराज।



− लोहामंडी स्थित महाराजा अग्रसेन भवन में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में हुआ श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह प्रसंग।

− उद्धव−गोपी संवाद श्रवण कर श्रद्धालु हुए भाव विभाेर,नंदोत्सव में खूब लुटाए गए उपहार। 

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। विडंबना है कि वर्तमान में श्रीकृष्ण और उनके गोपियों संग महारास का अर्थ नाचने गाने से ही लगाया जाता है,किंतु वास्तविकता में जीवात्मा और परमात्मा के सच्चे मिलन को ही महारास कहा गया है। आध्यात्मिक प्रेम के इस मर्म को समझाया अन्तर्राष्ट्रीय संत सुशील महाराज ने।  

लोहामंडी स्थित महाराजा अग्रसेन भवन में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन रास पंचाध्यायी से लीला प्रसंग का आरंभ किया। कथा व्यास आचार्य सुशील महाराज ने कहा कि जिन गोपियों ने भगवान को प्राप्त किया वे गोपियां साधारण नहीं थीं। जिनकी प्रत्येक इंद्री कृष्ण रस का पान करती है,उसी को गोपी कहा गया। 

इसके बाद भगवान श्री कृष्ण का मथुरा गमन,कंस वध, उद्धव गोपी संवाद हुआ। बाल रूप की झांकियों के साथ श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह प्रसंग का बखान किया गया। कथा व्यास ने कहा कि रुक्मिणी जी साक्षात लक्ष्मीजी का रूप थीं। रुक्मिणी जी ने भगवान के गुणाें को सुनकर ही उन्हें अपना पति मान लिया था। मुख्य जजमान विकास गुप्ता और पूनम गुप्ता ने स्वरूपों का पूजन किया। शुक्रवार को सुदामा चरित्र,व्यास पूजन और फूलों की होली होंगे। आयोजन की व्यवस्थाएं हिमांशु गुप्ता, पार्षद हेमंत प्रजापति, रिषभ गुप्ता, श्रेया, सुरभि, नीरज शिवहरे, अशोक गोला, संतोष अग्रवाल, अमित बंसल आदि ने संभाली।