श्रीमनःकामेश्वर,रामलीला महोत्सव:देखि सीय शाेभा सुखु पाया,हृदयं सराहन बचनु न आवा। जनु बिरंजि सब निज निपुनाई, बिरचि बिस्व कहं प्रगटि देखाई…।



− श्रीमनःकामेश्वर बाल विद्यालय,दिगनेर में चल रहे है रामलीला महोत्सव में पुष्प वाटिका प्रसंग देख हर्षित हुए श्रद्धालु।

− प्रतिदिन शतचंडी महायज्ञ से होता है राम लीला महोत्सव में प्रसंग मंचन का आरंभ,बढ़ी संख्या में पहुंचे रहे रामभक्त।

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। विश्वामित्र अपने शिष्य श्रीराम और लक्ष्मण के साथ जब मिथिला पहुंचते हैं तो जनक वाटिका में रुकते हैं। वहां पर प्रातःकाल श्रीराम और लक्ष्मण गुरु पूजन के लिए फूल लेने पुष्ट वाटिका जाते हैं। वहां सीता जी अपनी सखियों संग पार्वती मंदिर में पूजा के लिए आती हैं। श्रंगारित सीता के नुपुरों की ध्वनि श्री राम के कानों में गूंजती है। उन्हें पहले से ही आभास होता है और लक्ष्मण जी से कहते हैं कामदेव नगाड़े बजाते हुए आ रहे हैं। इतना कहते ही श्रीराम और सीता जी के नयन मिलते हैं और दोनों एक दूसरे को अपलक देखते रहते हैं। 

ये मनोहारी प्रसंग जब गढ़ी ईश्वरा, ग्राम दिगनेर, शमशाबाद रोड स्थित श्रीमनः कामेश्वर बाल विद्यालय में चल रही बाबा मनःकामेश्वरनाथ श्रीराम लीला महोत्सव में मंचित हुआ तो हर श्रद्धालु का मन हर्षित हो उठा।

 तृतीय दिवस लीला महोत्सव का आरंभ गौशाला में मठ प्रशासक हरिहर पुरी द्वारा यज्ञ श्री रूद्राभिषेक व शतचंडी महायज्ञ में पंचांग पीठ पूजन, वास्तु मण्डल, क्षेत्रपाल, नवग्रह, चतुश्ष्टि योगनी, सर्वतो भद्र मण्डल, एकलिगंतो भद्र, रूद्र, वरूण कलश के साथ, चारों वेद कलश, इंद्र हनुमत् ध्वजा पूजन किया गया।  

इसके बाद सांझ ढलते ढलते महोत्सव पंडाल श्रद्धालुओं से भर गया। लीला प्रसंग में प्रभु श्री राम के द्वारा तड़का सुबाहु का वध मंचन से शुरुआत हुयी। इसके बाद अहिल्या उद्धार, गंगा दर्शन, नगर दर्शन एवं पुष्प वाटिका लीला प्रसंग हुए। अहिल्या प्रसंग में जब अपनी आराध्य श्रीराम के चरण रज पाते ही पत्थर से नारी अहिल्या जी हो गयीं। अहिल्या जी के प्रगठ होते ही वहां ब्रह्मा, शंकर सहित अनेक देवगण पहुंच गए और भगवान राम का जयघाेष करने लगे। प्रसंग लीला में भक्त और भगवान के प्रेम, विश्वास की अटूट गाथा को स्पष्ट किया। 

श्रीराम और सीता का प्रेम दृशाता है मर्यादित प्रेम की पवित्रता 

महंत श्री योगेश पुरी ने बताया कि श्री राम और सीता जी का विवाह से पूर्व का यह प्रेम अत्यंत पवित्र है। ये भाव और मन के तल पर प्रेम और स्नेह की पराकाष्ठा है। सीमा और राम दोनों ही मानसिक रूप से इसे स्वीकारते हैं। यह प्रेम का सात्विक रूप है। वासना प्रेम नहीं है। वर्तमान में जो स्वतंत्रता के नाम पर मर्यादा तोड़ी जाती हैं वो उचित नहीं है। राम ने काम को स्वीकार कर प्रेम और वासना का अंतर बताया है। यह प्रसंग उन्हें मानव के स्तर से बहुत ऊंचा उठाता है।