इस बार की दीपावली...✍️ कुमार ललित,कवि-गीतकार।

 


हिन्दुस्तान वार्ता। 

मैं दूल्हा बनकर घर लौटा,

सर पर खुशियों का सेहरा था।

 पिछली सब सरकारों में तो, 

कब-कैसा-किसका पहरा था।

खबर छपी थी दीवाली पर,

 तुम कोई भी फिकर न करना। 

घर से निकलो,खूब खरीदो,

चोर-लुटेरों से मत डरना। 

फिर भी मैं घर से जब निकला,

 दिल में खौफ बहुत गहरा था।

पिछली सब सरकारों में तो, 

कब-कैसा-किसका पहरा था।

बड़ी फिकर थी,कहीं न मेरी,

 चाँदी लुट जाए रस्ते में,

बस्ते में रक्खा चाँदी को,

बस्ते को रक्खा बस्ते में, 

एक लुटेरा पास न आया। 

चप्पे-चप्पे पर पहरा था। 

पिछली सब सरकारों में तो, 

कब-कैसा-किसका पहरा था।

बुलडोजर बाबा के डर से,

पुलिस गश्त पर लगी पड़ी थी। 

रात सो गई सारी दुनिया,

पुलिस विवश थी,जगी पड़ी थी।

 है परिवार पुलिस का भी तो,

गालों पर आँसू ठहरा था।

पिछली सब सरकारों में तो,

कब-कैसा-किसका पहरा था।

✍️ कुमार ललित,कवि-गीतकार।

(उ.प्र.हिंदी संस्थान द्वारा निराला पुरस्कार से सम्मानित) 

संपर्क: 9358057729