श्रीकृष्ण लीला शताब्दी महोत्सव में हुआ द्वारिकापुरी,रुक्मिणी मंगल विवाह लीला का मंचन

 

                     

                     





रुक्मिणी के समर्पण को श्रीकृष्ण ने दिया वैदिक विवाह का वरदान,वरमाला के साथ गूंजे मंगलगान। 

 जय श्रीकृष्ण हरे के गूंजे जयघोष,लीला स्थल पर ही निकाली गयी वरयात्रा,भक्तों ने बरसाए पुष्प।

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो 

आगरा। श्रीकृष्ण और रुक्मिणी जी के मंगल विवाह में गोविंद हरे,गोपाल हरे के भजन और मंगलगान गूंज रहे थे।

 श्रीकृष्ण लीला समिति के तत्वावधान में चल रहे श्रीकृष्ण लीला महोत्सव के 11 वें दिन शिशुपाल वध और द्वारिकापुरी में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह लीला का मंचन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं ने जमकर मंगलगान गाए और जयघोष किए। 

लीला में दिखाया गया कि विदर्भ देश में भीष्मक नाम के राजा राज्य करते थे। कुण्डिनपुर उनकी राजधानी थी। 



उनकी पूत्री रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध थी और उसने मन ही मन श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया था। भगवान श्रीकृष्ण तो अन्तर्यामी हैं। उन्हें ज्ञात था कि रुक्मिणी परम रूपवती और सुलक्षणा भी हैं और उन्हें वर रूप में प्राप्त करना चाहती हैं। 

भीष्मक का बड़ा पुत्र रुक्मी, भगवान श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था। वह बहन रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से कराना चाहता था,क्योंकि शिशुपाल भी श्रीकृष्ण से द्वेष रखता था। भीष्मक ने रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ ही करने का निश्चय किया और तिथि तय कर दी। 

रुक्मिणी ने यह सूचना पत्री के माध्यम से श्रीकृष्ण के पास भेज दी। रुक्मिणी ने पत्री में लिखा कि हमारे पिता श्री तो आपके साथ हमारा विवाह करना चाहते हैं,परन्तु मेरा भाई रुक्मी, पिता श्री की  इच्छा के विरुद्ध शिशुपाल के साथ मेरा विवाह करना चाहता है। विवाह के दिन मैं गिरिजा माता के दर्शन करने को जाऊंगी। आप मंदिर में पहुंचकर मुझे पत्नी रूप में स्वीकार करें। यदि आप नहीं पहुंचेंगे तो मैं अपने प्राणों का परित्याग कर दूंगी। 

रुक्मिणी का संदेश पाकर भगवान श्रीकृष्ण रथ पर सवार होकर शीघ्र ही कुण्डिनपुर की ओर चल दिए। बलराम भी यादवों की सेना के साथ कुण्डिनपर के लिए रवाना हो गए। 

शिशुपाल निश्चित तिथि पर बारात लेकर कुण्डिनपुर जा पहुंचा। वहीं दूसरी ओर रुक्मिणी सज-धजकर गिरिजा देवी के मंदिर की ओर चल पड़ी। पूजन करने के बाद रुक्मिणी जब मंदिर से बाहर निकल कर अपने रथ पर बैठना ही चाहती थी कि श्रीकृष्ण ने उनका हाथ पकड़ लिया और उन्हें खींचकर अपने रथ पर बैठा लिया। रथ तीव्र गति से द्वारिका की ओर चल दिया।

शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का पीछा किया। बलराम और यदुवंशियों ने शिशुपाल को रोक लिया। भयंकर युद्ध में बलराम और यदुवंशियों ने शिशुपाल की सेना को धराशायी कर दिया। फलतः शिशुपाल निराश होकर कुण्डिनपुर से चले गए। 

रुक्मी ने श्रीकृष्ण का पीछा किया। रुक्मी और श्रीकृष्ण का घनघोर युद्ध हुआ। श्रीकृष्ण ने उसे युद्ध में हराकर अपने रथ से बांध दिया,किंतु बलराम ने उसे छुड़ा लिया। रुक्मी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार पुनःलौटकर कुण्डिनपुर नहीं गया। वह एक नया नगर बसाकर वहीं रहने लगा। कहते हैं,रुक्मी के वंशज आज भी उस नगर में रहते हैं। 

भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को द्वारिका ले जाकर उनके साथ विधिवत विवाह किया। श्रीकृष्ण की वरयात्रा लीला स्थल पर ही निकाली गई।

इस अवसर पर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल के साथ विजय रोहतगी,अशाेक गोयल,पी.के.मोदी,प्रवक्ता-धर्मेन्द्र कु.चौधरी,संजय गर्ग,बीजी अग्रवाल,मनोज गुप्ता,शेखर गोयल,मीडिया प्रभारी तनु गुप्ता,प्रभात रोहतगी,आशीष रोहतगी, विनीत सिंघल, कैलाश खन्ना,संजय चेली, मनोज बंसल, गिर्राज बंसल,केसी अग्रवाल, बृजेश अग्रवाल,कृष्ण कन्हैया अग्रवाल,विष्णु अग्रवाल,अमित अग्रवाल(देवी भक्त), मनीष शर्मा, जितेन्द्र निगम,तनुराग गोयल आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

हवन के साथ होगा लीला का समापन।

अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने बताया कि 11 दिन के लीला के आयोजन काे मंगलवार सुबह 9 बजे हवन के साथ विराम दिया जाएगा।

छाया-गोपाल कुशवाह।