पुस्तक मेला में हरिशंकर परसाई को किया स्मरण,व्यंग यात्रा ने युवाओं को सिखाया व्यंग का ककहरा।
व्यंग यात्रा पत्रिका के संपादक प्रेम जनमेजय रहे मुख्य अतिथि, हुआ व्यंग पाठ।
नाट्य संध्या में बेशरम− मेव− जयते नाटक का भाेपाल के कलाकारों ने किया मंचन।
हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो
आगरा। साहित्य सृजन में काव्य लिखना जितना सहज है उतना ही कठिन है किसी भी विसंगति पर कटाक्ष करते हुए व्यंग करना। इस विधा में जो माहिर हो गया वो व्यंगकार हो गया। जीआइसी मैदान में चल रहे अक्षरा साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय पुस्तक मेला एवं साहित्य उत्सव का आठवां दिन व्यंग विधा को समर्पित रहा। सुप्रसिद्ध व्यंगकार हरिशंकर परसाई जी की जन्मशती पर व्यंग यात्रा का व्यंग दिवस मनाया गया। प्रतिदिन की भांति बाल सत्र से आयोजन की शुरुआत हुई। राघवेंद्र स्वरूप पब्लिक स्कूल के बच्चों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से मंत्र मुग्ध कर दिया। एमडी जैन इंटर कॉलेज के बच्चों ने पुस्तक मेले का अवलोकन किया। राजकीय इंटर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य रामनाथ जी, एमडी जैन इंटर कॉलेज के संजय जैन, रतन सेन जैन, रीनेश मित्तल, हरीश चिमटी, वरिष्ठ पत्रकार आदर्श नंदन गुप्त,महेंद्र सिंह सहित डीईआई के संगीत विभाग के छात्रों को समिति अध्यक्ष डॉ.विनोद माहेश्वरी और सचिव दीपक सिंह सरीन द्वारा सम्मानित किया गया।
इसके बाद दौर शुरू हुआ व्यंग कला के उस्तादों की चर्चा परिचर्चा और पाठ पठन का। आगरा कॉलेज के पत्रकारिता विभाग के छात्राें सहित अन्य युवाओं को व्यंग का ककहरा वरिष्ठों द्वारा सिखाया गया।
हरिशंकर परसाई जी को स्मरण करते हुए व्यंग यात्रा पत्रिका के संपादक एवं सत्र अध्यक्ष प्रेम जनमेजय ने कहा कि परसाई जी विरोध को जीते थे। उन्होंने कहा कि व्यंग लगभग वैसे ही हैं जैसे प्रभु की मूरत होती है। व्यंग के अलग−अलग कोण हैं। व्यंग कभी भी व्यक्ति विशेष पर नहीं अपितु प्रवत्ति पर होना चाहिए। अन्यथा व्यंग गाली बन जाता है। उन्होंने कहा कि ध्यान रखें कि व्यंगकार एक चिकित्सक की तरह होता है। पहले परीक्षण करता है कि विसंगति कहां है, फिर शल्य चिकित्सा यानि व्यंग से कटाक्ष करता है और उसके बाद नर्स की भांति करुणामय सेवा करता है। व्यंग कभी भी किसी को पीड़ित नहीं करता।
अरविंद तिवारी (शिकोहाबाद) ने कहा कि कविता की भांति व्यंग ईश्वरीय देन नहीं बल्कि इल्म की देन है। व्यंग के लिए रोजमर्रा के जीवन से इल्म लें। ब्रज क्षेत्र में व्यंग तो भाषा में ही समाया है। यहां प्रश्न का उत्तर भी प्रश्न में ही मिलता है जो स्वयं में व्यंग बन जाता है। उन्होंने कहा कि व्यंगकारों के लिए हरिशंकर परसाई जी द्रोणाचार्य की तरह हैं।
अनुराग वाजपेई (जयपुर) ने कहा कि समसमायिक परिस्थितियां स्वयं में व्यंग होती हैं। आवश्यक नहीं कि व्यंग केवल व्यंगकार ही करे। व्यंग पहले खुद पर करें। परसाई जी कहते थे कि किसी के बारे में जानना है तो उसे तिरछी निगाह से देखें, उसकी नाक को देखें, उसके मन के विचार स्वतः ज्ञात हो जाएंगे और आपका व्यंग लिख जाएगा।
राजेश कुमार (नोएडा) ने कहा कि जरूरी नहीं कि व्यंग लिखें ही, व्यंग पहले पढ़ना शुरू करें। लोकथाओं, गीतों में भी व्यंग होता ही है।
रणविजय राव (दिल्ली) ने कहा कि साहित्य में समाज की विसंगतियों को व्यंगकार ही लिख सकता है।
व्यंग पर चर्चा परिचर्चा के बाद हुए व्यंग पाठ ने सभा को भरपूर गुदगुदाते हुए विभिन्न संदेश भी दिए। जिसमें हल्द्वानी से आईं मीना अरोड़ा पांच कटाक्ष किए। पंचतंत्र पर आधारित कहानियों को विसंगतियों के माध्यम से व्यंग्यात्मक लहजे में सुनाया। उन्हाेंने अपने व्यंग पाठ से परिवारवाद, वरिष्ठ शब्द, नेताओं और शिक्षकों पर कटाक्ष किये। फारुख अफरीदी ने जमूरा और उस्ताद का उदाहरण देते हुए समसमायिक घटनाओं पर व्यंग कसा। कहा कि विधायक डंक मारे तो कोई पानी भी नहीं मांगता। सत्र का संचालन करते हुए नेशनल बुक ट्रस्ट के लालित्य ललित ने जिंदगी बेदिल है व्यंग पाठ सुनाया। अनुराग वाजपेई ने अतिथि तुम कब जाओगे की पैरोडी पर अध्यापक तुम कब पढा़ओगे का पाठ किया। राजेंद्र मिलन ने कभी भारत था देश महान और अतुल सिंह शाक्या ने कुत्ते से प्यार शीर्षक से व्यंग पाठ किया। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार आदर्श नंदन गुप्त ने कहा कि व्यंग लेखन गद्य की अनूठी विधा है। इसे मंच देने का कार्य व्यंग यात्रा कर रही है।
तीन पुस्तकों का हुआ विमोचन।
पुस्तक मेले में मीना गुप्ता की चुलबुली बाल कविताएं,अनीता गौतम की संगम शब्दों का और आश्वि गांधी की द स्पार्क इन यू पुस्तक का विमोचन हुआ।
बेशरम− मेव− जयते मंचन ने गुदगुदाया खूब।
दुनिया बेशर्म होती जा रही है और वो भी बिना किसी अफसोस के, इसी संदेश के साथ पुस्तक मेले की शाम सजी। मुख्य अतिथि डॉ राहुल राज थे। डॉ. प्रेम जनमेजय द्वारा लिखित हास्य हिंदी नाटक 'बेशरम-मेव-जयते' का मंचन किया गया। तरुण दत्त पांडे के निर्देशन से सजे नाटक में नव नृत्य नाट्य संस्था,भाेपाल के कलाकारों ने इंसानों में व्याप्त उन बुराइयों को मंचित किया जो समाज को बर्बाद कर रही हैं। नाटक सशक्त अभिनय के माध्यम से चार कहानियों के कोलाज 'बेशर्मी', 'ये जो टेंशन है', 'मक्खी' और 'जाना है पुलिस वालों के यहां बारात में' के रूप में प्रस्तुत किया गया। नाटक की पृष्ठभूमि में गांधी जी के तीन बंदरों को प्रदर्शित किया गया था।
ये रहे उपस्थित।
आयोजन में अध्यक्ष डॉ. विनोद माहेश्वरी, उपाध्यक्ष वत्सला प्रभाकर, सहसचिव शीला बहल,सचिव दीपक सिंह सरीन, डॉ. माधवी कुलश्रेष्ठ, आरके कपूर, प्राप्ति सरीन,डॉ.सुषमा सिंह आदि उपस्थित रहीं।
समापन दिवस पर ये रहेगा विशेष।
रविवार को पुस्तक मेला का समापन है, जिसमें प्रेम विद्यालय सहित अन्य स्कूलों की प्रस्तुतियां हाेंगी। स्वास्तिक वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा करायी गयी सुलेख एवं पोस्टर प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण, साहित्य और सिनेमा एक विर्मश कार्यक्रम सूरज तिवारी की अध्यक्षता में होगा, जिसमें मुंबई से लेखक, निर्देशक, क्रिएटिव डायरेक्टर आदि सहभागिता करेंगे। पुस्तक मेले के समापन सत्र की शाम कवि सम्मेलन से सजेगी।
रिपोर्ट- असलम सलीमी।