दादाजी महाराज की नव निर्मित समाधि में उनकी पवित्र रज प्रतिस्थापित:पिया तुम जाय छिपे किस ओर..



हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा: प्रेम और करुणामयी वातावरण, अश्रूपूर्ण नैन लिये प्रेमियों की लम्बी कतार,प्रीतम से बिछड़ने का वियोग और मुख पर एक ही सवाल कि 'पिया तुम जाय छिपे किस ओर'। प्रेमी से पूछा गया कि कौन हैं तुम्हारे प्रीतम, किसके वियोग में रोते हो, किससे बिछड़कर परेशान होते हो। रुआंसी आवाज़ में जवाब आया कि - 'वो अकथ हैं,अनंत हैं,सबके लबों पर हैं, सबके दिलों में हैं। किसी के भाई,सखा, किसी की प्रेरणा, किसी की चितवन, धड़कन, किसी के पिता और करोड़ो लोगों के परम पिता। मुझ दुखियारे के लिये अचूक मंत्र। समाज की हर अनैतिकता को काट फेंकने वाला अमोघ यंत्र। जो मात्र नेत्र की श्वेतिका की हलचल से काट दें अनाचार का तंत्र। नि:संदेह बरबस ही उनके अभिवादन में झुकते हैं लाखों मस्तक। जुड़ जाते हैं दीन -दुखियों के हाथ इसी विश्वास से कि सारी दुनिया भले ही छोड़ दे, पर यह प्रेम के शहंशाह कभी नहीं छोड़ेंगे हमारा साथ। फिर दुनिया से क्या डरना,किसकी परवाह करना, कौन है जो डिगा सकता है हमें। कौन है जो मिटा सकता है हमें। जब सिर पर है उनका दया भरा हाथ। उस परवाने के नैनो से अनायास ही अश्रु धारा बह उठती है और वो गाने लगता है -

ढूँढत ढूँढत थक कर हारी। 

रैन हुई चहुँ ओर।

पिया तुम जाय छिपे किस ओर।। 

राधास्वामी सत्संग हज़ूरी भवन में हज़ारों सत्संगी अपने प्रीतम परम पुरुष पूरन धनी दादाजी महाराज की विशेष सेवा के लिये एकत्रित हुए।अपने प्रीतम की नवनिर्मित समाधि पर उनकी पवित्र रज प्रतिस्थापित करने। अपने प्रीतम के प्रेम में एक बार फिर भाव विभोर होने। अपने प्रीतम से एक बार फिर अपने दिल की बात कहने। अपने प्रीतम की याद में व्याकुल हो तड़पने और कहने कि -

व्याकुल व्यथित फिरूँ बौरी सी। 

रोय पड़ी बहु ज़ोर। 

तुम बिन मैं बस रहत सकत नहिं। 

कित जाऊँ किस ठौर। 

पिया तुम जाय छिपे किस ओर।। 

प्रात: राधास्वामी नाम की धुन के साथ नम आँखे लिये लम्बी कतार में सत्संगियों ने दादाजी महाराज की पवित्र रज के दर्शन किये। दुनियावी दृष्टि से तो अस्थि कलश ही  था लेकिन प्रेमियों के लिए उनके प्रीतम की मौजूदगी का प्रतीक। नतमस्तक तो होना ही था, दिल भर आना ही था,याद में व्याकुल होना ही था। पवित्र रज के कलश को फिर दादाजी महाराज की समाध में बने भूमिगत कक्ष में उतारा गया और गुलाब के फूलों से ढकने के बाद अष्टकोणीय संगमरमर से कक्ष बंद कर दिया गया। कक्ष बंद होते ही कलश दिखाई देना बंद हो गया और प्रेमियों में वियोग की लहर उठ आई - 

हे सतगुरु मेरी टेर सुनो अब। 

जल्दी दरस देओ चितचोर। 

दया करो हुई देर घनेरी। 

आय मिलो पिया मोर। 

पिया तुम जाय छिपे किस ओर।।

नवनिर्मित समाध पर तुरंत दादाजी महाराज की चौकी लगायी गई जिसपर उनके नयनाभिराम स्वरुप लगाये गए। प्रेमीजनों ने मिलकर फिर अपने प्रीतम की आरती करी। 

राधास्वामी मात पिता पति मेरे। 

दे दो धीरज बंदी छोड़।

पिया तुम जाय छिपे किस ओर।।

वियोग तो था ही,तड़प भी थी, दिल के साथ साथ गले भी भर उठे थे। कहते है कि प्रीतम अपने प्रेमी को तड़पता देख दर्शन दे ही देते हैं। समाधि परिसर में रूहानी रौनक,फ़िज़ा में प्रीतम की खुशबू, और सबको ढांढस बंधाता प्रीतम का अहसास,मानो प्रेमी की तड़प बुझाने चले आये हों और वहीं मौजूद हों।

दया करी और विनय सुनी मोरि। 

प्रगट हुए कर दीनी भोर।।