अखिल विश्व हिंदी-समिति,टोरंटो द्वारा विश्व कवि-गोष्ठी आयोजित



डेढ़ दर्जन से अधिक कवियों ने की सहभागिता'

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

टोरोंटो (कनाडा):अखिल विश्व हिंदी-समिति द्वारा एक ‘आभासी विश्व कवि-गोष्ठी’ का आयोजन किया गया। 

टोरोंटो (कनाडा) के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.देवेंद्र मिश्र की अध्यक्षता में आयोजित इस गोष्ठी में प्रख्यात कवि और मनुमुक्त 'मानव' मेमोरियल ट्रस्ट,नारनौल (हरियाणा) के चीफ ट्रस्टी डॉ.रामनिवास 'मानव' मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। 

मंत्र-पाठ के उपरांत समिति के अध्यक्ष और कार्यक्रम के संयोजक गोपाल बघेल 'मधु' के कुशल संचालन में लगभग तीन घंटों तक चली कवि-गोष्ठी में भारत और कनाडा सहित अनेक देशों के डेढ़ दर्जन से अधिक कवियों ने सहभागिता की। 

कवि-गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए,मुख्य अतिथि डॉ.'मानव' ने अपने संबोधन में कविता को भावभूमि की उपज बताया और स्पष्ट किया कि कविता व्यक्ति को विस्तार देने के साथ उसे समाज से भी जोड़ती है। उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक विषयों से जुड़े अपने विशिष्ट दोहे भी प्रस्तुत किये,जिन्हें भरपूर सराहना मिली।

 उनका एक दोहा देखिये - "वट-पीपल के देश में, पूजित आज कनेर। बूढ़ा बरगद मौन है, देख समय का फेर। 

उपाध्यक्ष रहे न्यूयॉर्क (अमेरिका) की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका 'सौरभ' के संपादक डॉ.हरिसिंह पाल ने कहा कि दुनिया को धर्म-संप्रदाय की सीमाओं में बांटना छोटे दिल के लोगों का काम है- मैं हिंदू हूँ,वह मुस्लिम है और वे सिक्ख-ईसाई। छोटे दिल के लोगों ने मिल कैसी दुनिया बसाई। 

दर्शन और अध्यात्म से जुड़े कवि गोपाल बघेल ‘मधु’ ने भी,अपने अनेक गीतों के माध्यम से, खूब मधु-वर्षा की। उनके दो गीतों की कुछ पंक्तियां यहां प्रस्तुत हैं - 

‘सुनयना स्वप्न में क्या कर रही हो’ व ‘सतह सब एक ही विश्व होता,धरातल एक तल पर सब रहता। शून्य से सभी कुछ नजर आता, गौण कोई कहाँ वहाँ रहता।’ 

आगरा के सुपरिचित कवि अनिल शर्मा ने अपने गीतों द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके एक गीत की पंक्तियां थीं- ‘भाव सब छले गये सुविधाओं के शोध में। कोई और नहीं, हम खुद रहे अपने विरोध में’। 

कनाडा में सनातन धर्म और संस्कृति के उन्नयन को समर्पित ब्राम्पटन निवासी बहुभाषी कवि आचार्य संदीप त्यागी का कहना था-‘उलझा हूं मैं सपने में ही, मुझे मिला लो अपने में ही। मैं भी कुंदन हो जाऊंगा, मजा मुझे बस तपने में ही’। टोरोंटो के ही कवि योगेश ममगाईं ने, रक्तपात और युद्ध को अनावश्यक बताते हुए, कुछ यूं फरमाया-‘रक्त बहाने व देने में फर्क बहुत होता है। गर सीमा में रहे आदमी, युद्ध कहां होता है।’ 

एकता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए दिल्ली के प्रसिद्ध कवि हसन सोनभद्री ने अपने भावों को कुछ इस प्रकार वाणी दी- ‘अकेले‌ कुछ नहीं होता जहां में; बेहतर है, हमें अपना बना लो।’

उक्त कवियों के अतिरिक्त जिन अन्य कवियों ने काव्य-पाठ किया,उनमें पठान रहीम खान (हैदराबाद),

जितेंद्रकुमार 'चंचल' (हैदराबाद), प्रोफ़ेसर सुमित्रा कुकरेती (बरेली),  ब्रजवासी बालव्यास शशांक जी मथुरा- विशिष्ट अतिथि, मुरालीलाल बघेल-मथुरा और उदयवीर सिंह (मथुरा), सुभाष गांधी और श्यामा सिंह (टोरंटो) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।