हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो
आगरा के जाने माने शू एक्सपोर्टर व वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी के माहिर, हर विजय सिंह वाहिया की पुस्तक को हमें देखने का अवसर प्राप्त हुआ। पुस्तक हकीकत में तारीफ के काबिल है।
ये पुस्तक उनकी कडी़ मेंहनत,कठिन परिश्रम का जीता जागता सबूत है। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी करना आसान काम नहीं है। इसके लिये जंगलो की खाक छाननी पड़ती है,ना रात का पता,ना दिन का पता ,बड़ी मुश्किल से तस्वीर मिल पाती है। इस प्रकार की फोटोग्राफी का समय या तो प्रात: का होता है या दिन छुपते कोई लेपर्ड मिल पाता है । जब सामने लेपर्ड आता है तो क्लिक करना आसान काम नहीं होता,बड़े हौसले का काम होता है। उस समये कैमरे को चलाने के लिए लतजुर्बे की आवश्यकता होती है।
इन तमाम मुश्किलों के बाद एक अच्छी तस्वीर ले पाते हैं। किसी ने पूछा कि अगर आपके सामने लेपर्ड आ जाये तो आप क्या करेगे,जवाब मिला,मैं क्या करुँगा सब कुछ वही करेगा। वषों के परिश्रम के बाद एक अच्छी पुस्तक आगरा वासियों को देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा।
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के लिए टेली लेंस का इस्तेमाल किया जाता है, इसे प्रात: व सांयकाल की लाइट में चलाना बहुत मुश्किल होता है,क्योंकि इसमें तस्वीर शेक होने का ज्यादा डर रहता है। वाहिया जी ने इन तमाम मुश्किलों गुज़र कर इस फोटोग्राफी को अंजाम दिया है, जिसके लिए मेरे पास शब्द नहीं जो कह सकूँ।
यह इश्क नहीं आंसां बस इतना समझ लीजिये।
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है।
ऐसी बुक का टाइटल खतरों के खिलाड़ी होना चाहिये था। हमारी व हिन्दुस्तान वार्ता एवं सुधी दर्शकों-पाठकों की तरह से उन्हें हार्दिक बधाई।
दिल के आइने में खिंचती है बड़ी मुश्किल से ऐसी तस्वीर,
जिसे अकसे तमन्ना कहिये।
✍️ असलम सलीमी,वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट