हिन्दुस्तान वार्ता। ✍️ कुमार ललित
जम्हूरियत,कश्मीरियत, इंसानियत का कत्ल।
यह किस तरह का धर्म है, यह कौन सी है नस्ल!
करने गए थे ख़ूबसूरत वादियों की सैर ।
लेकिन वहाँ गाली मिली,गोली मिली और बैर ।
कहने लगे, यह सिद्ध करो तुम नहीं हो ग़ैर ।
कलमा पढ़ो! आयत पढ़ो! गर चाहते हो ख़ैर।
मत जाओ कश्मीर अब, करने कोई टूर।
गुमसुम हैं सब वादियाँ, मौसम है बेनूर।
कट्टरता सर पर चढ़ी, धर्म हो रहा चूर।
मार रहा निर्दोष को मानव बेहद क्रूर।
नाम पूछ कर मार दो,किसने दी ये सीख।
घाटी घाटी गूँजती हर आयत की चीख।
बस्ती बस्ती में आवारा मौसम है।
तुम बचकर रहना हत्यारा मौसम है।
इसकी बातों में मत आना तुम लोगो!
धोखा होगा यह बंजारा मौसम है।
(उ. प्र.हिंदी संस्थान द्वारा निराला पुरस्कार से सम्मानित कवि-गीतकार)