हिन्दुस्तान वार्ता।
सूर्य पुत्र,यम और बहन,यमी (यमुना),
भाई-बहन की बहुत कम मुलाकात होती थी।
एक बार यमराज अपने व्यस्ततम कार्यक्रम से थोड़ा वक्त निकाल अपनी बहन यमुना के घर कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को आए। भाई को अपने घर देख यमुना अति प्रसन्न हुई और हर प्रकार से भाई की आवभगत की।
इसे देख यमराज भाव-विभोर हुए और अपनी बहन से कहा हे प्रिय बहन तुम जो 'वर' मांगना चाहती हो मांगो!आज तुम्हारा यह भाई तुम्हारे स्वागत सत्कार से अति प्रसन्न है। तब यमुना ने भाई यमराज से यही मांगा कि "हे मेरे प्रिय भाई" तुम प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को अवश्य मेरे घर आना और आज के दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाए उसे तुम जीवन दान देना,तभी से यह प्रथा चली आई कि भाई अपनी बहन के यहां कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को पधारे एवं अमरत्व का वरदान हासिल करें।।
आज ही के दिन कायस्थ जाति चित्रगुप्त पूजा अनुष्ठान करते हैं। सनातन संस्कृति वर्णित कहानी के अनुसार चित्रगुप्त,धर्मराज के कार्य निर्वहन में सहायक की भूमिका अदा करते हैं।
परंतु आइए जरा बुद्धि विवेचना करते हैं।
सृष्टि का प्रत्येक जीव स्व चालित ढंग से क्रिया शील है।
उन्हें नियंत्रित करने हेतु उनके 'स्व' के अंदर ही एक 'स्वचालित यंत्र' व्यवस्थित है,जो उसके प्रत्येक कार्य को नियंत्रित करता है।
गलत,अमर्यादित कार्य करने से आत्म-ग्लानि एवं सत्य-संगत कार्य से प्रफुल्लता प्रदान करता हैI इसी स्व-चालित,स्व-काया स्थित यंत्र का नाम "चित्त गुप्त" है, जो कालांतर में अपभ्रंशित हो "चित्र-गुप्त" के नाम से जाना गया।
अतः प्रत्येक प्राणी के आराध्य चित्त में गुप्त रूप से अवस्थित और स्व काया उपस्थित प्रभु ही हमारे प्रत्येक कर्मों का नियंता है और वही "भगवान या सर्वेश्वर प्रकृति में हमारे साथ शास्वत रूप से विराजमान हैं "इस प्रकार विश्व के समस्त प्राणी कायस्थ हुए, जिनके काया में गुप्त रूप से प्रभु नियंता रूप में अवस्थित हैं,और यहीं से विचार उठता है- वसुधैव कुटुम्बकम।
कायस्थ जाति संज्ञा प्राप्त प्राणियों,उठो जागो,स्व से स्व,का परिचय प्राप्त करो।
हे प्रखर बुद्धी के बंसज,उठो, जागो आप के पूर्वजों ने ही भगवान को जाना,उनके निवास स्थान को बताया।
भगवान आप के स्वयं के काया में गुप्त रूप से आप के चित्त में स्थित है, यह आप के हर क्रिया-प्रक्रिया, राग-अनुराग, प्रेम-क्रोध पाप-पुण्य सबकी बिबेचना कर सही मार्ग दिखलाता है।चित्त में गुप्त रूप से स्थित प्रभु ही, चित्त गुप्त के नाम जाना गया और कायस्थों ने पंडितों के चक्र से बाहर निकल कर ज्ञान का प्रकाश फैलाया, परंतु साजिश तहत ,माफ़ करेंगे, हमारे चित्त गुप्त भगवान को चित्र गुप्त नाम दे प्रभु से हमे दूर किया। हम पहले लोग हैं जो विश्व को राह दिखा भ्रांतियां के जाल से विश्व को छुड़ाया। स्वर्ग नर्क सब हमारे चित्त स्थित भगवान द्वारा निर्देशित दशा की अवस्था है। हमे किसी से तुलना करने की जरूरत नहीं।हम स्वयं परिपूर्ण हैं, बाह्याचरण,और ज्ञान इन्द्रियों को अन्तर-मुखी कर खुद को खुदी से परिचित कराने की ओर बढ़ो, तुम स्वयं सिद्ध सनातन प्रभु के अंश हो, ऊर्जा हो।।
जय "श्री चित्त गुप्त" महाराज !
एक जागृत समाज को पुनर्जागरण हेतु आह्वान।🙏
इंजी.आर के सिन्हा
पू.महाप्रबंधक
कोल इंडिया।
मो. 8477877770