हॉर्टिकल्चर क्लब ने"मिलेट"पर की बेहतर कार्यशाला आयोजित।


 

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा:संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को " मिलेट वर्ष अर्थात मोटे अनाज का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष"घोषित किया है,जिसके अंतर्गत हॉर्टिकल्चर क्लब द्वारा लोगों में मिलेट के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने हेतु 14 जुलाई, दिन शुक्रवार को कॉसमॉस मॉल के फेयरफील्ड मैरियट में एक कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में आगरा के प्रसिद्ध वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एम.सी.गुप्ता व विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीमती मीतू सिंह एवं डॉ. सुशील गुप्ता उपस्थित थे।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. दीपिका गुप्ता ने डॉ. रंजना बंसल एवं डॉ.सुशील गुप्ता, जो कि क्लब के आधार स्तंभ हैं, का अपने बहुमूल्य समय से कुछ पल कार्यक्रम को देने के लिए आभार व्यक्त किया l

कार्यक्रम में क्लब की अध्यक्ष श्रीमती लवली कथूरिया ने मुख्य वक्ता सुमिता गुप्ता व मीनाक्षी किशोर से मिलेट के विषय में कुछ प्रश्न पूछे, जिनके उन्होंने बहुत ही सूझ-बूझ से उत्तर दिए।

 ये प्रश्न निम्नांकित हैं -

  मिलेट क्या है।

  मिलेट मोटा व छोटे दाने वाला अनाज है। सभी अनाज 'पोएसी' नामक घास परिवार का हिस्सा हैं। इन घासों के बीजों को अनाज कहा जाता है और सबसे अधिक खेती किए जाने वाले अनाज चावल, गेहूँ, जई मक्का और जौ हैं। मिलेट भी अनाज है लेकिन आजकल इसकी खेती आमतौर पर नहीं की जाती है।

मिलेट का क्या महत्व है और हमें इनके बारे में क्यों जानना चाहिए? क्या हमारी संस्कृति मिलेट खाने की सलाह देती है।

मिलेट गेहूँ और चावल जैसे सामान्य अनाजों के लिए अत्यधिक पौष्टिक, कम कार्ब वाला विकल्प है, और उन लोगों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प है जो अपने समग्र स्वास्थ्य और वजन घटाने के लक्ष्यों में सुधार करना चाहते हैं। मिलेट कई प्रकार के होते हैं, जिनमें से प्रत्येक के पोषण संबंधी लाभों का अपना अनूठा सैट होता है। मिलेट सदियों से उगाया जाता रहा है। कुछ मोटे अनाजों का इतिहास 5000 वर्ष से भी अधिक पुराना है और इनका उल्लेख कुछ वेदों में भी किया गया है। लगभग 50 वर्ष पहले तक भारतीय परंपरागत रूप से केवल बाजरा का ही उपयोग करते थे। यदि आप परंपराओं का पता लगाएंँ, तो कुट्टू का आटा,समा के चावल जैसे अनाज को उपवास के दौरान खाने की सलाह दी गई थी।  गेहूंँ और चावल का उत्पादन बढ़ने से मिलेट उत्पादन में गिरावट आई है।

दुनिया भर में पोषण विशेषज्ञों द्वारा मिलेट की सिफारिश क्यों की जा रही है? क्या यह सच है कि यह मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गठिया, हृदय रोग, ऑटोइम्यून बीमारी और यहांँ तक कि वजन घटाने में भी मदद कर सकता है। 

 मिलेट पोषण का पावरहाउस है। गेहूंँ और चावल के विपरीत, यह आम तौर पर पूरे रूप में खाया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि उनमें अधिक फाइबर, विटामिन बी, खनिज और कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स है। 

मिलेट ग्लूटेन-मुक्त होता है और कुल मिलाकर पचाने में आसान होता है। यह आपको लंबे समय तक तृप्त रखता है।

मिलेट कार्बोहाइड्रेट से भरपूर और आहार फाइबर का अच्छा स्रोत है। फिंगर बाजरा और रागी आयरन और कैल्शियम जैसे खनिजों से भरपूर है और मधुमेह वाले लोगों के लिए फायदेमंद पाया गया है। ज्वार में प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होते हैं और यह गेहूँ का ग्लूटेन-मुक्त विकल्प है।  

फॉक्सटेल बाजरा कम कार्ब आहार का पालन करने वालों के लिए एक बढ़िया विकल्प है, क्योंकि इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है।

 पाँच सकारात्मक मिलेट कौन से हैं और उन्हें ऐसा क्यों कहा जाता है? क्या हमें मिलेट को सकारात्मक या तटस्थ के रूप में अलग करना चाहिए।

 छोटे दाने वाले अनाज जैसे बार्नयार्ड, फॉक्सटेल, लिटिल, कोदो और पोरसो को सकारात्मक मिलेट के रूप में शामिल किया गया है। ऐसा उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाने और अपनाने में वृद्धि के लिए किया जा सकता है।  हालाँकि, सभी अनाज अच्छे हैं और उनकी पोषण संबंधी विशेषताएंँ अलग-अलग हैं।  विभिन्न प्रकार के अनाज लेना सबसे अच्छा है, न कि केवल 'सकारात्मक मिलेट'।

 मिलेट की खपत का क्षेत्रीय विभाजन क्या है, या आज ऐसा अनाज कौन खा रहा है।

मिलेट छोटे बीज वाली घास है, जो शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाती है। ये कठोर पौधे हैं और कम या बिना पानी और शुष्क परिस्थितियों को सहन कर सकते हैं। इन्हें उगाने के लिए उर्वरकों की भी आवश्यकता नहीं होती है।  

देश भर में किसान छोटी-छोटी जगहों पर इन्हें उगाते हैं। अलग-अलग कृषि क्षेत्रों में अलग-अलग फसलें उगाई जाती हैं। उदाहरण के लिए - बाजरा राजस्थान और उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है। रागी गुजरात, भारत के दक्षिण और यहांँ तक कि उत्तराखंड में भी उगाया जाता है। ज्वार (ज्वार) पूरे भारत में उगाया जाता है। छोटे बाजरा जैसे कोदो, फॉक्सटेल बाजरा, छोटा बाजरा आदि ज्यादातर कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों में उगाए जाते हैं।

मिलेट के उपयोग के प्रति उपभोक्ताओं में अनिच्छा क्यों है? यह किसे नहीं खाना चाहिए।

 मिलेट का उपयोग करना कठिन है। इन्हें खाने में आसान और सुपाच्य बनाने के लिए बहुत अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है। टैनिन के प्रभाव को कम करने और खाने में आसान बनाने के लिए इन्हें भिगोने, सुखाने, पीसने और बदलने की आवश्यकता होती है।  आज के परिवारों को यह प्रक्रिया बोझिल लगती है और इससे निपटना कठिन लगता है। दूसरी ओर गेहूंँ और चावल का उपयोग करना बहुत आसान है और वे स्वादिष्ट भी हैं। इसके अलावा, गेहूंँ और चावल को अत्यधिक संसाधित किया जाता है और फाइबर हटा दिया जाता है, जिससे वे मोटे अनाज की तुलना में अधिक स्वादिष्ट बन जाते हैं।  इसलिए भारतीय उपभोक्ता इनकी तुलना में गेहूंँ और चावल को प्राथमिकता देते हैं।

 क्या हम आटे में मिलेट मिला सकते हैं।

 जी हांँ,आप आटे में मिलेट मिलाकर इसका सेवन कर सकते हैं। आप 20% मोटे या छोटे अनाज से 80% गेहूंँ तक शुरू कर सकते हैं और धीरे-धीरे पूरी रोटी तक बढ़ा सकते हैं।

कार्यक्रम में मानवीर सिंह, डेज़ी गुजराल, डॉ. मुकुल पांड्या, रेनू भगत, रितु बजाज व डॉली मदान की उपस्थिति सराहनीय थी।

कार्यक्रम के अंत में निक्की चोपड़ा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सभी का आभार व्यक्त किया।