ऐतिहासिक श्रीकृष्ण लीला के शताब्दी वर्ष में विशेष उत्साह,होंगे भव्य आयोजन

                              (अध्यक्ष : मनीष अग्रवाल)

विशिष्ट आयोजनों से भरपूर होगा,श्रीकृष्ण लीला महोत्सव

सीमित साधनों में किए जा रहे हैं भव्य आयोजन

हिन्दुस्तान वार्ता।धर्मेन्द्र कुमार चौधरी

आगरा : जिन विभूतियों ने श्रीकृष्ण लीला के लिए नींव रखी,वह इतनी मजबूत रही कि इस साल उनके सपनों ने सौ साल पूरे कर लिए। किसी भी संस्था का शताब्दी वर्ष कोई सामान्य सफलता नहीं होती,उसमें कठोर अनुशासन, नियम और तो और सुयोग्य पदाधिकारियों के चयन की महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है। श्रीकृष्ण लीला कमेटी  ने विषम परिस्थितियों से जूझते हुए गौरवशाली सौ वर्ष पूर्ण कर लिए हैं।

य़ह शताब्दी वर्ष बडे़ ही भव्यता के साथ मनाया जाएगा। इस बात की कोशिश की जा रही है कि यह शताब्दी वर्ष इतना भव्य हो कि प्रदेश में भी इसकी चर्चा हो सके।

श्रीकृष्ण लीला कमेटी के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने बताया कि ब्रज की संस्कृति और परंपरा का एक हिस्सा श्रीकृष्ण लीला का मंचन है। चूंकि आगरा भी श्रीकृष्ण की लीला भूमि का ही एक हिस्सा है,इसलिए आगरा की यह श्रीकृष्ण लीला अति महत्वपूर्ण हो जाती है।

श्रीकृष्ण लीला का शुभारंभ सन् 1924 में हुआ। तब यह बेलनगंज चौराहे पर हुआ करती थी। क्योंकि तब वहां घनी बस्ती नहीं थी,दूसरे इस लीला के प्रारंभ कर्ता श्री रामबाबू अग्रवाल (पूरनचंद एंड कंपनी) भी बेलनगंज निवासी थे। 

क्षेत्रीय नागरिकों को शामिल करके उन्होंने इसकी शुरुआत की थी,लेकिन श्रीकृष्ण के प्रति आस्था और लीला के प्रति आकर्षण के कारण वहां भीड़ व्यवस्थित नहीं हो पाई,इसलिए इस लीला का मंचन 09 नवंबर 1939 से गौशाला,वाटर वर्क्स चौराहे के समीप  शुरू करा दी गई। तभी से यह लीला निरंतर गौशाला परिसर में हो रही है। 

गौशाला परिसर में ब्रज के दर्शन होते हैं। पहले यहां बाड़े की लीला का मंचन होता था। कलाकार पूरे ग्राउंड में घूम-घूम कर लीला का मंचन करते थे। सामने भगवान श्रीकृष्ण का मंच है,जहां आजकल मंचीय लीला होती हैं। उसके सामने कंस का मंच है,जहां पहले कंस का दरबार लगा करता था। बाईँ ओर कंस का कारागार आज भी है,जहां कंस का दरबार लगा करता था। 

मैदान बीच में इमली के एक प्राचीन वृक्ष के नीचे तालाब बना हुआ था,जहां चीर हरण की लीला का मंचन किया जाता था। दर्शकों के बैठने के लिए चारों ओर सीढ़ियां बनाई गई थी,जिस प्रकार स्टेडियम में बनी होतीं हैं। यह मंच और सीढ़ियों के निर्माण श्रीकृष्ण लीला के पदाधिकारियों या उनके चंदादाताओं ने समय-समय पर करवाए। 

पंडित जी ने कराया संकल्प :

श्रीकृष्णलीला कमेटी सन् 2005 से पूर्व बहुत शिथिल हो गई थी। उसका भविष्य संकट में लग रहा था। श्रीकृष्ण लीला कमेटी के तत्कालीन संयोजक  पं.महेशचंद शर्मा, कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष मनीष अग्रवाल,बल्केश्वर के यमुना तट पर पितरों को तर्पण कराया करते थे। एक दिन अचानक उन्होंने मनीष अग्रवाल के हाथों में यमुना का जल देकर सजल नेत्रों से संकल्प कराया कि अब श्रीकृष्ण लीला कमेटी का संचालन तुम्हें करना है। मनीष अग्रवाल चौंके,कि आप ये क्या कह रहे हैं,लेकिन उन्होंने जबर्दस्ती त्रिवाचा भरवा ही लिया। मनीष अग्रवाल उनके संकल्प को टाल नहीं सके। मनीष ने विनोद कुमार अग्रवाल जी (कोयले वाले) (अब दिवंगत) से अनुरोध किया कि वे अध्यक्ष पद का दायित्व संभालें। मनाने के बाद में वे राजी हो गए। बस,उस दिन के बाद से भगवान श्रीकृष्ण की ऐसी अनुकंपा हुई है कि कमेटी मजबूत और लोकप्रिय हुई। 

संतों के समय-समय पर पड़े चरण :

सन् 2006 में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मनीषी देव जी महाराज के राधाभाव पर प्रवचन हुए। सन् 2008 में जोशीमठ के शंकराचार्य वासुदेवानन्द सरस्वती जी महाराज ने यहां श्रद्धाभाव व्यक्त किया। 2012 में स्वामी रामप्रपन्नाचार्य द्वारा प्रवचन किए गये। सन् 2013 में साध्वी चित्रलेखा जी श्रीकृष्ण शोभायात्रा में शामिल हुईं। सन् 2014 में भारतमाता मंदिर से पधारे राधाभाव प्रवर्तक संत स्वामी देवमिशानंद गिरि जी महाराज द्वारा लीला के दर्शन कर भक्तिरस की त्रिवेणी प्रवाहित की थी।

शताब्दी वर्ष में विशेष उत्साह :

शताब्दी वर्ष आयोजित इस लीला महोत्सव में कई नए आकर्षण होंगे। कुछ लीलाएं नई शामिल की गई हैं। सीमित साधन और संकुचित गौशाला प्रांगण में कमेटी के पदाधिकारियों द्वारा आयोजन किया जा रहा है। कमेटी के सभी पदाधिकारियों ने इस 5 नवंबर से 18 नवंबर 2024 तक होने वाले सभी आयोजन में शामिल होने की अपील की हैं। 

जय श्री राधे-कृष्ण..🙏