तोक्यो के 'दाइतो बुन्का विश्वविद्यालय' में हिंदी के वरिष्ठ प्रोफे.हिदेआकि इशिदा का नागरिक अभिनंदन

हिन्दुस्तान वार्ता।ब्यूरो

आगरा। “पहले  जापान में लोग भारतवर्ष के लोगो को नौकर समझते थे और वहां बोले जाने वाली हिंदी को नौकरों की भाषा। "सन 1868  में लेकिन जब जापान में सामंतवाद का खात्मा हुआ और आधुनिक युग की शुरुआत हुई तब वहाँ लोगों ने जाना कि  भारत अंग्रेज़ों का उपनिवेश है और वहाँ उनकी सत्ता चलती है। इसके बाद भारत और हिंदी के बारे में जापानियों के मन में नया भाव उत्पन्न हुआ और वे इसे सम्मान की दृष्टि से देखने लगे।" यह  कहना है तोक्यो  के 'दाइतो बुन्का विश्वविद्यालय' में हिंदी के वरिष्ठ प्रोफेसर रहे प्रोफ.हिदेआकि इशिदा का। 

भारत भ्रमण पर आये प्रोफ.इशिदा का आज यहाँ आगरा में हुए अपने नागरिक अभिनन्दन में बोल रहे थे । कार्यक्रम का आयोजन सांस्कृतिक संस्था 'रंगलीला', एसिड हमलो की शिकार महिलाओं के  संगठन 'शीरोज़ हैंगऑउट' और ब्रज की पहली महिला पत्रकार 'प्रेमकुमारी शर्मा स्मृति समारोह आयोजन समिति' ने संयुक्त रूप से किया था। 

प्रोफेसर इशिदा ने बताया कि "सन 1973 में जब मैंने  तोक्यो में बीए  पास किया तो जापानी छात्रों में  स्नातक के बाद नौकरी करने का चलन था।  मैंने  लेकिन अपनी पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया। एशियाई देशो के प्रति मेरे मन में थोड़ी जिज्ञासा थी। में  विशेष रूप से भारत व हिंदी को जानना चाहता था। लिहाज़ा मैंने  'अंतर्राष्ट्रीय विदेश भाषा विश्वविद्यालय ' तोक्यो में दाखिला लिया और इस तरह में  दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से जुड़ा" । इस दौरान वह विशिष्ट  अध्ययन के लिए  दिल्ली आये  और सबसे पहले वरिष्ठ साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार से मिले । जैनेंद्र जी ने उनके हिंदी अध्ययन में गहरी रूचि दिखाई। वे उन्हें इलाहाबाद लेकर गए और वहां हिंदी की वरिष्ठ साहित्यकार महादेवी वर्मा से मिलवाया।  जैनेन्द्र जी ने ही उनकी मुलाकात मुंशी प्रेमचंद के बेटे और वरिष्ठ साहित्यकार अमृतराय से करवाई।  यही उन्होंने प्रेमचंद की पत्नी श्रीमती  शिवरानी जी  के दर्शन किये। तब भारत में आपातकाल लागू होने की सम्भावनाये बन रही थीं। अमृतराय उन्हें भारत यात्रा में शामिल कराने ले गए।  उनकी मुलाकात लखनऊ में वरिष्ठ हिंदी कथाकार अमृतलाल नागर से हुयी। उन सारे वरिष्ठ साहित्यकारों  की भेंट ने ना सिर्फ उनकी हिंदी भाषायी ज्ञान को समृद्ध किया बल्कि हिंदी साहित्य के विस्तार से पठन पाठन के लिए भी तैयार किया। "यही वो क्षण था जब मैंने निर्णय लिया की में अपना भविष्य हिंदी भाषा और साहित्य की सेवा में गुजार दूंगा।"  इस अवसर पर स्मृति चिन्ह , शॉल , पुष्पमाला के साथ अभिनन्दन किया  गया।  

समारोह में बोलते हुये हिंदी के प्राध्यापक डॉ सूरज बड़त्या ने तोक्यो विश्वविद्यालय में अपने हिंदी अध्यापन और इस दौरान प्रोफेसर इशिदा के साथ विकसित हुए प्रेमपूर्ण रिश्तों की बावत किस्से सुनाये। कार्यक्रम में हिंदी प्रेमी और शहर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ मुनीश्वर गुप्ता ने अपने चिकित्सा अध्ययन में हिंदी के उपयोग से उत्पन्न हुयी कठिनाईयों का उल्लेख किया और कहा कि  जब हम प्रो०  इशिदा जैसे हिंदी विद्वानों और उनकी हिंदी सेवा के प्रति की गयी उनकी उपासना और नज़र डालते हैं तो हमारा मन मस्तिष्क सम्मान में डूब जाता है। 

मंच पर उपस्थित हिंदी उर्दू के वरिष्ठ लेखक अरुण डंग ने सुभाष चंद्र बोस और गाँधी जी की मार्फ़त भारत को मिले जापान और जापानियों के विशिष्ठ योगदान का उल्लेख किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी के वरिष्ठ कवि रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी ने की।  कार्यक्रम का सञ्चालन वरिष्ठ हिंदी आलोचक प्रो० प्रियम अंकित ने और धन्यवाद ज्ञापन डॉ अखिलेश श्रोतिय ने किया।

 शुरू में मुख्य अतिथि और आगंतुकों का स्वागत वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी अनिल शुक्ल और सामाजिक कार्यकर्ता आशीष शुक्ला ने किया। कार्यक्रम का प्रबंधन रामभरत उपाध्याय और अजय तोमर ने किया। 

इस अवसर पर नगर के विशिष्ट  हिंदी प्रेमी और प्रबुद्धजन उपस्थित थे।  प्रमुख लोगों  में सर्वश्री रमेश पंडित,रामनाथ शर्मा , नीरज जैन, अभिनय प्रसाद ,हिमानी चतुर्वेदी,वत्सला प्रभाकर, सरदार जाकिर हुसैन, सीमांत साहू ,नवाबउद्दीन ,योगेश त्यागी,अनिल शर्मा , ऋचा निगम, अरनिका जैन , शीला बहल , कांति नेगी , गीता, रुकैया, नगमा , डॉली आदि उपस्थित रहे।

रिपोर्ट-असलम सलीमी