हिन्दुस्तान वार्ता।
गत 22 अप्रैल को पहलगाम में पर्यटकों पर एक वीभत्स हमला हुआ। हमलावरों ने पर्यटकों से धर्म पूंछकर केवल निहत्थे पुरुषों की हत्या कर दी,वह भी उनकी पत्नियों के सामने निर्ममता से। बताया जाता है कि हमलावरों ने उन्हें निर्वस्त्र कर उनके धर्म की पहचान करने का घिनौना प्रयास किया। इस हमले में 26 जानें गईं-जिनमें अधिकांश नवविवाहित पुरुष थे और उनकी पत्नियाँ विधवा हो गईं। उनके माँग का सिंदूर उजड़ गया।
यह हमला उस समय हुआ जब कश्मीर में विकास अपने चरम पर था-विश्व के सबसे ऊँचे पर्वतों पर टनल,रेलवे ब्रिज,रेल कनेक्टिविटी, और रिकॉर्ड तोड़ पर्यटन (2 करोड़ से अधिक पर्यटक)। कश्मीर के लोग समृद्धि की ओर बढ़ रहे थे। शांति और सद्भाव का वातावरण बनता दिख रहा था-चाहे वह रोज़ी-रोटी के कारण हो या मोदी सरकार का ख़ौफ़-कम से कम पर्यटक अपने को सुरक्षित महसूस करने लगे थे।
परंतु यह समझना आवश्यक है कि इतने विकास और असाधारण सुविधाओं के बावजूद,घाटी के कश्मीरी मुसलमानों की मानसिकता में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान से मोहभंग हो चुका है, परंतु इस्लामिक जिहाद का गठजोड़ अब भी कायम है। कश्मीरी हिंदुओं के संपूर्ण सफाए के बाद भी ‘आज़ादी’ का ज़हर अभी जीवित है। इसका मूल कारण पूर्ववर्ती विशेष रूप से कांग्रेस सरकारों की असमय और लचीली नीतियाँ रहीं। धारा 370 और 35A, पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया, और सेना पर बार-बार पथराव-यहाँ तक कि उन पर थूकना-यही दर्शाते हैं कि सैनिकों के हाथ बाँध दिए गए थे। गोली चलाना तो दूर,उन्हें प्रतिरोध का अधिकार तक नहीं दिया गया। यह सब इस्लामिक कट्टरपंथियों को दुस्साहसी बनाता गया और ‘आज़ादी’ की माँग तक पहुँचा दिया।
पहलगाम की यह घटना निश्चित रूप से सीमा पार से आए पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा या उनके समर्थन और हथियारों के माध्यम से अंजाम दी गई। लेकिन सक्षम मोदी सरकार ने उसी दिन ललकारा था कि “घर में घुसकर बदला लिया जाएगा”-और उन्होंने करके दिखाया। 100 किलोमीटर अंदर तक 24 मिसाइलें दागी गईं, और 9 आतंकी संगठनों का सफाया किया गया।
26 विधवाओं के सिंदूर का बदला शायद पूरा हो गया हो, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है-सीमा के भीतर और बाहर दोनों ही स्तर पर।
घाटी की डेमोग्राफी को बदलना अत्यंत आवश्यक है। धारा 35A को पूरी तरह से धरातल पर उतारना होगा। सभी धर्मों के लोगों,सभी भारतीयों को वहाँ बसाना ही समस्या का स्थायी समाधान होगा। सबसे पहले वहाँ सशस्त्र बलों और उनके परिवारों को बसाना होगा—ताकि कोई हमला हो तो जवाब भी दिया जा सके।
और यह मोदी हैं-तो मुमकिन है। चाहे सीमापार की नब्ज़ को पकड़ना हो, नदियों को रोकना हो, सैन्य बल का उपयोग करना हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करना हो-सरकार की रणनीति में वह क्षमता है।
घाटी के भीतर मौजूद इस्लामिक जिहादियों से निपटने की भी एक बड़ी योजना बनानी होगी। और यह भी याद रखना होगा कि कश्मीर के कुछ राजनीतिक परिवारों की मानसिकता भी कम घातक नहीं है। ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यह घटना कश्मीर में सरकार बनने के बाद ही हुई है।
अभी अनेकों ‘ऑपरेशन सिंदूर’ करने बाकी हैं। यह बदला पहलगाम के लिए पर्याप्त हो सकता है,पर इससे पहले भी घाटी में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने ऐसे कई सिंदूर उजाड़े हैं-जिनका हिसाब अभी बाकी है।