जुलूस हुसैनी का भव्य आयोजन

 


हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा : इमाम हुसैन हक़ की आवाज़ हैं, हक़परस्तों सब्र करने वालों इंसाफ़ करने वालों के सरदार और इमाम हैं। इजाज़त ए इंसान के मुहाफिज़ हैं। इन मुल्यों के लिये आपने क़ुर्बानी दी उनकी याद में आगरा से ये ऐतिहासिक जुलूस निकाला जाता है।

5 जुलाई, मोहर्रम की 9 तारीख़ को बाद नमाज इशा 9 बजे,खानकाह कादरीया निज़ामिया नियाजि़या आस्ताना हज़रत अल्लामा मैकश,मेवा कटरा से हज़रत इमाम हुसैन आली मकाम की याद में एक अलम का जुलूस हज़रत अजमल अली शाह जाफरी कादरी नियाज़ी व फैज़ अली शाह नियाज़ी कादरी की ज़ेरे सरपरस्ती में निकाला गया।

इस जुलूस में सैकड़ों की तादाद में ढोलो पर ग़म हुसैन में बजाये जा रहा था व म‌रसीये खानी में सोजो़ सलाम पढ़ते चल रहे थे। जूलूस में दो बड़े अलम भी आगे आगे लेकार अकीदतमंद चल रहे थे। 

आज इस्लाम के पवित्र माह मुहर्रम की नवीं तारीख है.कल के दिन 10 तारीख़ को रोज-ए-आशुरा भी कहा जाता है. मुहर्रम की दसवीं तारीख को ही पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन क्रूर शासक यजीद से कर्बला की जंग में शहीद हो गए थे.इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग सड़कों पर मातम जुलूस और ताजिया निकालते हैं।

इस्लाम के पवित्र माह मुहर्रम की दसवीं तारीख यानी रोज-ए-आशुरा के मौके पर शिया समुदाय के लोग ताजिया निकालकर इमाम हुसैन की कुर्बानी का गम मनाते हैं. इमाम हुसैन इस्लाम के आखिरी नबी पैगंबर मुहम्मद के नवासे थे।

कर्बला में क्रूर शासक से हुई थी इमाम हुसैन की जंग,इस्लामिक जानकारियों के अनुसार,करीब 1400 साल पहले कर्बला की जंग हुई थी.यह इस्लाम की सबसे बड़ी जंग में से एक थी। इस जंग में इमाम हुसैन धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे। कर्बला की यह जंग अत्याचारी शासक यजीद के खिलाफ थी। दरअसल,यजीद इस्लाम धर्म में न्याय और इंसानी मुल्यों ख़ुदा की किताब और पैग़बर मोहम्मद रसूल अल्लाह के सिद्धांतों के स्थान पर ज़ुल्म तानाशाही मनमाने तरीक़े पर शासन चलाना चाहता था. इस राह मे सबसे बड़ी रूकावट हज़रत इमाम हुसैन थे जो ज़ुल्म और तानाशाही के ख़िलाफ थे। कु़रान के उसूल पर शासन करने की वकालत करते थे, जैसा कि इस्लाम के पहले 5ख़लीफा करते आये थे,उसकी आमानवीय और क्रूर शासन व्यवस्था को देखते हुये यजीद को समर्थन नहीं दिया और उससे दूर रहे  यज़ीद जानता था उन के समर्थन के बिना समाज मे उसे इज़्जत हासिल नहीं होगी पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन उस समय इस्लाम की सबसे बड़ी शख़्सियत थे नबी मौहम्मद साहब के सही उत्तराधिकारी थे .यजीद ने फरमान जारी किया कि इमाम हुसैन और उनके सभी साथी यजीद को ही अपना खलीफा मानें. यजीद चाहता था कि इमाम हुसैन ने अगर किसी तरह उसे अपना खलीफा मान लिया तो वह आराम से  राज कर सकता है।हालांकि,पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को यह फरमान मंजूर नहीं था. इमाम हुसैन ने साफ तौर पर ऐसा करने से इनकार कर दिया.यजीद को इस बात पर काफी गुस्सा आया और उसने इमाम हुसैन व उनके साथियों पर जुल्म करने शुरू कर दिए।

मुहर्रम की 10 तारीख को कर्बला में यजीद की फौज ने हुसैन और उनके साथियों पर हमला कर दिया. यजीद की सेना काफी ताकतवर थी,जबकि हुसैन के काफिले में सिर्फ 72 लोग ही थे।

इमाम हुसैन धर्म की रक्षा करते हुए आखिरी सांस तक यजीद की सेना से लड़ते रहे. इस जंग में हुसैन के 18 साल के बेटे अली अकबर, 6 महीने के बेटे अली असगर और 7 साल के भतीजे कासिम को भी बेरहमी से शहीद कर दिया गया।

जुलूस फुव्वारा,सिन्धी बाजार ,गुड़ की मन्डी, फुलट्टी, तिलक बाजार होता हुआ कटरा दबकइयान पाय चौकी पहुचा।  फूलों के ताज़िये पर अलम पेश किया और फातिहा खानी हुई ।

जुलूस में शिरकत करने वालों में हज़रत अजमल अली शाह न्याजी कादरी , फैज़ अली शाह कादरी नियाज़ी,शमीम शाह , हाजी अलताफ हुसैन, जीशान, इरफान सलीम, यामीन कादरी ,जाहिद कुरैशी ,समी आगाई बरकत अली ,रिज़वान क़ुरैशी सय्यद तनवीर अली,हाजी इम्तियाज़,निसार अहमद,ज़ाहिद हुसैन,हाजी इल्यिास,बरकत अली, हाज़ी अल्ताफ हुसैन यामीन शाहरूख़ उस्मानी ,दानिश नियाज़ी ताबिश नियाज़ी शारिक़ नियाज़ी,अख़्तर अयान उवैसी,लईख़ उवैसी,नायाब उवैसी,ऐजाज़ उद्दीन,चाँद अब्बासी,जमाल अहमद, सनी(जावेद),जमील उद्दीन,अमिर,शादाब, ,शमीम,जमील उद्दीन ख़ावर हाशमी, अज़हर उमरी, शमीम,शहीन हाशमी,हाज़ी तौफीक़ दिल्ली से आये मेहमान आदि मौजूद रहे।

रिपोर्ट - असलम सलीमी