बेटियों की शादी के लिए 25 से ज्यादा उम्र का ना होने दें : संकलन "गौसेवक" खोजी बाबा




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 इस तथ्य को थोड़ा गहराई से पढिये ।

बिखरते परिवार , टूटता समाज और दम तोड़ते रिश्ते.!

जरा सोचिए आज ये सब क्यों हो रहा है.?

👉 एक कटु सत्य..


आजकल माँ-बाप भी जरूरत से ज्यादा लडकियों के घर में हस्तक्षेप करके उसका घर खराब करते हैं!

यह मत भूलो कि शादी के बाद असली माँ बाप उसके सास ससुर होते हैं।

आज जो हालात हैं उसके जिम्मेदार कौन है..?

सर्वाधिक ये आधुनिक शिक्षा के नाम पर संस्कार विहीन बच्चे।

रिश्ते तो पहले होते थे। अब रिश्ते नही सौदे होते हैं।

किसी भी माँ बाप मे अब इतनी हिम्मत शेष नही बची कि बच्चों का रिश्ता अपनी मर्जी से कर सकें।

पहले खानदान देखते थे। सामाजिक पकङ और सँस्कार देखते थे और अब ....

मन की नही तन की सुन्दरता , नौकरी , दौलत , कार , बँगला। 

लङके वालो को लङकी बङे घर की चाहिए ताकि भरपूर दहेज मिल सके और लङकी वालोँ को पैसे वाला लङका ताकि बेटी को काम करना न पङे।

नौकर चाकर हो। परिवार छोटा ही हो ताकि काम न करना पङे और इस छोटे के चक्कर मे परिवार कुछ ज्यादा ही छोटा हो गया है।

दादा दादी तो छोङो , माँ बाप भी बोझ बन गये हैं। आज परिवार सिर्फ़ मतलब के लिए रह गया.!!        

परिवार मतलब, पति -पत्नी और बच्चे बस। जब परिवार इतना छोटा है तो फिर समाज को कौन पूछता है..?

लङका चाहे २० हजार महीने ही कमाता हो। व्यापारी लङका भले ही दो लाख महीने कमाता हो पहली पसंद नौकरीपेशा ही होगा।

इसका कारण केवल ये है कि नौकरी वाला दूर और अलग रहेगा। नौकरी के नाम पर फुल आजादी मिलेगी , काम का बोझ भी कम। आये दिन होटल मे खाना घूमना।

नौकरीपेशा वालों का समाज से सम्बन्ध भी कम ही मिलेगा ऐसे मे समाज का डर भी नही।

सँयुक्त और बङा परिवार सदैव अच्छा होता है। पाँच मे तीन गलत होंगे तो दो तो सही होंगे क्योंकि पाँचो उँगलियाँ बराबर नही होती। लेकिन एक ही है तो सही हो या गलत भुगतो।

पहले रिश्तों में लोग कहते थे कि मेरी बेटी घर के सारे काम जानती है और अब....

हमने बेटी से कभी घर का काम नहीं कराया यह कहने में शान समझते हैं।

आये दिन बायोडाटा ग्रुप खुल रहे हैं। उम्र मात्र ३० से ४० साल। एजुकेशन भी ऐसी कि  क्या कहना .. ?

कई डिग्री धारक रोज सैकङों लङके और लङकियों के बायोडाटा आ रहे हैं लेकिन रिश्ते नही हो रहे हैं। इसका कारण एक ही है ।

इन्हें रिश्ता नहीं बेहतर की तलाश है। रिश्तों का बाजार सजा है गाङियों की तरह। शायद और कोई नयी गाङी लांच हो जाये। इसी चक्कर मे उम्र बढ रही है।

अब तो और भी बायोडाटा ग्रुप बन रहे हैं।

तलाकशुदा ग्रुप

विधवा विधुर ग्रुप

अजीब सा तमाशा हो रहा है। अच्छे की तलाश में सब अधेङ हो रहे हैं।

अब इनको कौन समझाये कि एक उम्र में जो चेहरे में चमक होती है वो अधेड होने पर कायम नही रहती , भले ही लाख रंगरोगन करवा लो ब्यूटीपार्लर में जाकर।

एक चीज और संक्रमण की तरह फैल रही है। नौकरी वाले लङके को नौकरी वाली ही लड़की चाहिये।

अब जब वो खुद ही कमायेगी तो क्यों तुम्हारी या तुम्हारे माँ बाप की इज्जत करेगी.?

खाना होटल से मँगाओ या खुद बनाओ।

बस यही सब कारण है आजकल अधिकाँश तनाव के

एक दूसरे पर अधिकार तो बिल्कुल ही नही रहा। उपर से सहनशीलता तो बिल्कुल भी नहीं। इसका अंत आत्महत्या और तलाक।

घर परिवार झुकने और सामन्जस्य से चलता है , अकङने से नहीं ।

जीवन मे जीने के लिये दो रोटी और छोटे से घर की जरूरत है बस और सबसे जरुरी आपसी तालमेल और प्रेम प्यार की लेकिन.....

आजकल बड़ा घर व बड़ी गाड़ी ही चाहिए चाहे , मालकिन की जगह दासी बनकर ही रहे।

एक गरीब अगर प्यार से रानी बनाकर भी रखे तो वो पहली पसंद नही हो सकती। नौकरी पसँद वालों को इतना ही कहूँगा कि अगर धीरुभाई अंबानी भी नौकरी पसँद करता तो आज लाखों नौकर उसके अधीन नही होते।

सोच बदलो.... 

माँ बाप भी आजकल जरुरत से ज्यादा लङकियों के घर मे हस्तक्षेप करके उसका घर खराब करते हैं।

मत भूलो शादी के बाद उसके असली माँ बाप उसके सास ससुर होते हैं। आपके घर तो बस मेहमान थी।

कई सास बहू के सामने बेटी की तारीफ करके अपना खुद का घर खुद खराब करती हैं। बेटी कभी भी बहू नही बन सकती। बेटी की चाहत खून के रिश्ते के कारण है लेकिन बहू अजनबी होकर भी आपकी गृहलक्ष्मी भी है , नौकरानी भी है और कुल चालक भी और आपके और आपके बेटे के मध्य सेतु भी। बहू खुश तो परिवार खुश ।

आजकल हर घरों मे सारी सुविधाएं मौजूद हैं.... 

- कपङा धोने की वाशिँग मशीन

- मसाला पीसने की मिक्सी

- पानी भरने के लिए मोटर

- मनोरंजन के लिये टीवी 

- बात करने मोबाइल

फिर भी असँतुष्ट... 

पहले ये सब कोई सुविधा नहीं थी। पूरा मनोरंजन का साधन परिवार और घर का काम था , इसलिए फालतू की बातें दिमाग मे नहीं आती थी।

न तलाक न फाँसी 

आजकल दिन मे तीन बार आधा-- आधा घँटे मोबाइल मे बात करके , घँटो सीरियल देखकर , ब्यूटीपार्लर मे समय बिताकर।

मैं जब ये जुमला सुनता हूँ कि घर के काम से फुर्सत नही मिलती तो हंसी आती है। लड़कियों के लिये केवल इतना ही कहूँगा कि पहली बार ससुराल हो या कालेज लगभग बराबर होता है। थोङी बहुत अगर रैगिँग भी होती है तो सहन कर लो।

कालेज मे आज जूनियर हो तो कल सीनियर बनोगे। ससुराल मे आज बहू हो तो कल सास बनोगी।

समय से शादी करो। स्वभाव मे सहनशीलता लाओ। परिवार में सभी छोटे बङो का सम्मान करो। ब्याज सहित वापिस मिलेगा।

आत्मधाती मत बनो। जीवन मे उतार चढाव आता है। सोचो समझो फिर फैसला लो। बङो से बराबर राय लो। उनके द्वारा बताए अनुभव पर पूरा विश्वास रखो।

समाज के लोगों से बस इतना ही निवेदन है कि समाज मे सही उम्र मे शादी हो। उस दिशा मे काम करें। कम खर्चीली हो। धनी सेठ करोङो रुपए बेवजह शादी मे लुटा देते हैं , उनके अनुसरण मे गरीब पिसते हैं।



                   - "गौसेवक" पं. मदन मोहन रावत

                                       "खोजी बाबा