हिन्दुस्तान वार्ता।
राजाओं के किये हुये महापापों के प्रभाव के फलस्वरूप प्रजा में महामारी - जैसे कि दारुण और असहनीय उपद्रव हुआ करते हैं , उनके उपशमनार्थ स्वंय राजा व संपूर्ण प्रजा अथवा कोई भी धर्मप्राण महापुरुष अकेला या सामूहिक रूप से अनुष्ठान करें । ऐसा अनुष्ठान नगर , ग्राम या बस्ती के मध्य भाग में होना चाहिए । अथवा सद्गृहस्थ पुरूष भी अपने - अपने घरों में ही अनुष्ठान कर सकते हैं । इसके लिए नृसिंह पुराण के अनुसार *' नृसिंहमन्त्र '* के जब , अनुष्ठानप्रकाशआदि के अनुसार महामृत्युंजय जाप ; सौ हजार या दस हजार दुर्गापाठ , रूद्र , अतिरूद्र और महारुद्रादिके विधान ; भैरव - वैरवी आदि की उपासना , चौराहों पर तिल , घी , शक्कर और अंमृता आदि औषधियों का एक लक्ष्य हवन , नव दिनों तक श्री राम नाम कीर्तन या भजन , यथाशक्ति दान , धर्म एवं ब्राह्मण भोज आदि उपाय बताये गए हैं ।
इसके अनुष्ठान से महामारी व दैवीय आपदा (प्रकोप) शांत होते हैं । इस विषय में ' सुश्रुत ' का सिद्धांत सर्वोत्तम प्रतीत होता दिखता है । उसने कहा है कि *' देशत्यागाज्जपाद्धोमान्महामारी प्रशाम्यति '* इसी प्रकार पेल्गके विषय में देवीभागवत के प्रसिद्ध टीकाकार नीलकंठ आचार्य ने लिखा है कि .... *' मूषकं पतितोत्थं च मृतं दृष्टा च यद् गृहे । तद् गृहं तत्क्षणं त्यक्त्वा सकुटुम्बो वनं व्रजेत् ।। '*
इन सबमें नियमानुसार रहना तथा ईश्वर का स्मरण , जाप , मनन और चिंतन करना सर्वश्रेष्ठ है।
*जहाँ - जहाँ महामारी फैली हो उस स्थान या गांव को छोडकर हट जाने और जप , तप , हवन इत्यादि करने से महामारी शान्त हो जाती है।*
*- "गौसेवक" पं. मदन मोहन रावत*
*"खोजी बाबा"*
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