शनि देव जी की महिमा (शनि जयंती पर विशेष) डॉ विनोद शर्मा ,ज्योतिष एवं पराविद।



हिन्दुस्तान वार्ता।

सूर्य पुत्र शनि देव धरती के न्याय अधिकारी हैं। ज्ञान  के क्षेत्र में शनि अपने पिता सूर्य से कम नहीं है। धरती पर जो भी कुछ होता है शनि की देख- रेख में ही होता है। शनिदेव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह किसी को सीधे दंड नहीं देते ।  ये तपाते हैं ताकि उसके पापों का क्षय हो । इस प्रकार  धरती पर पुण्य की  की वृद्धि करते हैं । सूर्य समस्त विद्याओं के स्वामी हैं।  शनि विद्या  धरती पर उनके पुत्र शनि के नाम से प्रसिद्ध है। यह विद्या सूर्य से इन्होंने दूसरे के माध्यम से प्राप्त की है । इसलिए यह  ग्रहीत विद्या है । धरती पर यह विद्या बहुत काम की है । मृत्यु के बाद कौन व्यक्ति  किस लोक में है इसका ज्ञान इस विद्या से ही होता है। धरती पर जो भी सत्ता अधिकारी होता है  उसे शनि को प्रतिष्ठा देनी  पड़ती है। उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने शनि का मंदिर बनवाया था । यह् शनि मंदिर उज्जैन के ही पास में है। यहां की परंपरा है कि यहां स्नान के बाद उन वस्त्रों को वहीं छोड़ना होता  है। मान्यता है कि यहां स्नान करने से पापों का क्षय होता है। शनि स्वयं ग्रहों में गिने जाते हैं। अंतरिक्ष में जब भी कुछ होता है  उसका ज्ञान शनि को पहले से ही यह हो जाता है।  नवग्रह चक्र मैं  शनि अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। किसी की जन्मपत्रिका  में शनि प्रबल है तो कोई भी ग्रह कुछ नहीं कर पाता । शनि मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। रावण ने शनिदेव को बांधने की कोशिश की थी। पर सफल न हो सके । इन्होंने  नवग्रह चक्र में अपनी कक्षा में से दूसरे ग्रहों की गति को अव्यवस्थित करने के लिए अपना पैर जैसे ही बाहर निकाला रावण ने अपने वज्र से प्रहार किया । जिसकी वजह से शनि देव धीरे -धीरे  चलते हैं। अभी फिलहाल धरती पर जिसकी सत्ता है उसे शनि देव अपना सहयोग प्रदान कर रहे हैं । वर्तमान सत्ताधीश के न्याय और सत्य से प्रसन्न होकर शनि देव ने उन्हें अपनी विद्या प्रदान की है।

हनुमान जी कहते हैं कि मेरे ब्रह्मचर्य का पता न होने की वजह से शनि को मेरे द्वारा खदेड़ा गया । जिससे आज भी शनिदेव घायल अंगों पर तेल का संपर्क होने से सुख पाते हैं । शनि जी से मैंने तब कहा था कि जो मेरी उपासना करेगा उसे आप कष्ट नहीं दोगे तथा आपका तेल  से स्नान करने पर आराम होगा। इसलिए जो भक्त शनि महाराज को तेल चढ़ाते हैं उससे शनि महाराज प्रसन्न होकर उनके कष्टों को हरते हैं। शनि देव सारे देवो के समान सुंदर तो नहीं पर बुद्धि में अनोखे हैं। वे अपनी शनि विद्या से में पता लगा लेते हैं कि अमुक जीव इस समय किस लोक में होगा ? इस विधि से उस जीवात्मा का उद्धार करना संभव हो जाता है । धरती पर जो सत्ता काम कर रही है वह इस शनि विद्या से वाकिफ है।और वह इस विद्या से जीवात्माओ का उद्धार कर रही है । 

उत्तरा उत्तरा  से शनि महाराज के  बारे में पूछे जाने पर वे बताती हैं  कि शनि प्राणों का धनी है।  शनि स्वयं अपनी  प्रभाव शक्ति से ही सारे  ग्रहों पर राज करते हैं। जैसा कि पिछली बार हुआ वर्तमान सत्ताधारी के कहने पर सारे  ग्रहों को शनि ने बाधित कर दिया। अपनी सत्ता का साम्राज्य सुख भोगने के लिए यह अपनी ही तिकड़म से सब  प्राप्त करता है । स्वाभिमान की हद को पार शनि स्वयं अपने ही नहीं हनुमान के भक्त के प्रति प्रेम रखते हैं । शनि हनुमान के भक्तों की सहायता करते हैं इस प्रकार शनि और हनुमान जी की मित्रता कायम है। ज्ञान के क्षेत्र में शनि कम नहीं । ये अपने भक्तों को राज्य प्रदान करते हैं । 

अब शनि किस तरह अपने भक्तों की सहायता करते हैं ? उनका कहना है कि जो मुझे तेल उड़द चढ़ाता है उसकी मैं रक्षा करता हूं। मेरे  दिन शनिवार को  मेरे निमित्त  भड्डरी को दान देना चाहिए। मेरा दान उसे ही लगता है। शनिवार को शमी वृक्ष की   समिधा से   तिल, जौ और चावल की हवि  से  मेरे मंत्र से जो हवन करता है उससे मैं कष्टों से छु डाता हूं। 

जिस पर शनि की कृपा होती है व्यक्ति समाज में  उच्च पद प्राप्त करता है।   शनि अनुकूल तो क्या करेगा  शूल।  कहने का तात्पर्य यह है शनि की अनुकूलता हो जाने से सारे ग्रहों की अनुकूलता स्वयं सिद्ध है । ये सब ग्रहों पर अधिकार रखते हैं ।कोई भी ग्रह उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाता है  सूर्य पुत्र होने की वजह से। इसलिए शनि की सत्ता सब पर कायम रहती है । शनि हमेशा दूसरों का भला सोचते हैं । उनके दुख- दर्द और उन्नति की कामना करते हैं। पर  शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए उन्हें उनके निमित्त दान और पूजा पाठ कराने पर ही फल प्राप्त होता है। न्याय के देवता होने की वजह से वह कर्म के हिसाब से ही फल देते हैं। वह तपने पर ज्ञान भी देते हैं । इसलिए  श नि के उपासक कभी दुखी नहीं रहते ।  शनि के चरणों में रहने का सौभाग्य जिनको है वह हर प्रकार से  आगे बढ़ते हैं । ज्ञान के क्षेत्र में शनि की बराबरी नहीं। शनि किसको महान बना दें  वह उसके हाथ में है। सूर्य पुत्र शनि अपने पिता को भी दंड देने से नहीं  बख्शते हैं । कोई पुत्र अपने पिता को उसके अपराध का  दंड दे सकता है यह शनि को देखने से ही मिलता है । वर्तमान के सत्ताधिकार के प्रति शनि का मित्रता का  भाव है।

 वह उनके न्याय से अत्यंत प्रसन्न है। उनका कहना है कि रावण मुझे इसलिए पसंद नहीं  आया क्योंकि उसके अंदर अभिमान रहा पर जिसके पास अभिमान नहीं विनम्रता  हो उसके लिए मैं क्या कुछ नहीं कर सकता ? शनि की कृपा की खातिर आज यह सत्ता अधिकारी निश्चिंत होकर शासन कर रहा है। 


प्राचार्य जसवंत सिंह भदौरिया डिग्री कॉलेज,  कोसीखुर्द भरतपुर रोड , मथुरा 

निवास: २१ फेस २ चेतन विहार, वृंदावन मथुरा 

चलित दूरभाष;  ७३००५२४८०२