"आरोग्‍य मैत्री" परियोजना की हुई घोषणा:भारत विकासशील देशों को करेगा चिकित्‍सा आपूर्ति ।

 


हिन्दुस्तान वार्ता।

विकासशील देशों को प्राकृतिक आपदाओं या मानवीय संकट की स्थिति में आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति करने के लिए भारत ने "आरोग्‍य मैत्री" परियोजना की घोषणा की है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परियोजना की घोषणा करते हुए कहा कि इस परियोजना के तहत भारत प्राकृतिक आपदाओं या मानवीय संकट से प्रभावित किसी भी विकासशील देश को आवश्यक चिकित्सा सामग्री की आपूर्ति करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परियोजना की घोषणा के साथ ही इन देशों के लिए विकास समाधान की सुविधा के लिए 'उत्कृष्टता केंद्र' स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है। ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ' डिजिटल सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत अन्य विकासशील देशों के साथ अपनी विशेषज्ञता साझा करने के लिए एक 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहल' शुरू करेगा। उन्होंने घोषणा की है कि भारत देश में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए विकासशील देशों के छात्रों के लिए नई छात्रवृत्ति की शुरुआत करेगा और देशों के विदेश मंत्रालयों के युवा अधिकारियों को जोड़ने के लिए एक नया मंच तैयार करेगा। 

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और परमाणु ऊर्जा पर बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भी काफी प्रगति की है। उन्होंने कहा हम अन्य विकासशील देशों के साथ अपनी विशेषज्ञता साझा करने के लिए 'वैश्विक-दक्षिण विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहल' शुरू करेंगे। कोविड पर बोलते हुए उन्होंने चुनौतियों, ईंधन, उर्वरक, खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों और बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों पर प्रकाश डाला और कहा कि इसने विकासशील देशों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।

उन्होंने कहा पिछले तीन साल कठिन रहे हैं, खासकर हमारे विकासशील देशों के लिए। कोविड महामारी की चुनौतियों, ईंधन, उर्वरक और खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों और बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव ने हमारे विकास के प्रयासों को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा हालांकि एक नये साल की शुरुआत नयी आशा का समय है। भारत के वैश्विक दृष्टिकोण को सूचीबद्ध करते हुए उन्होंने कहा कि भारत का दर्शन ‘वसुधैव कुटुम्बकम' का रहा है।

सत्र में अपने समापन संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि सभी विकासशील देश दक्षिण-दक्षिण सहयोग के महत्व और वैश्विक एजेंडे को सामूहिक रूप से आकार देने पर सहमत हैं और विकासशील देश सम्पर्क आधारभूत ढांचे में निवेश के महत्व और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने की आवश्यकता पर सहमत हैं।

(रिपोर्ट: शाश्वत तिवारी)