श्रीमद्भागवत कथा में छप्पन भोग का रहस्य बताया,व्यास गिरिराज शरण शास्त्री ने।



हिन्दुस्तान वार्ता।

आगरा। खेरागढ़ क्षेत्र के गांव बीरई में श्रीमद्भागवत कथा में आज श्रीकृष्ण जी ने बाल लीला में गिरिराज महाराज को किसी प्रकार 56 भोग खिलाया था।

इस अवसर पर संत धर्म दास महाराज ब्रजवासी, गौशाला गांव तेहरा वाले ने व्यास गिराराज शरण शास्त्री का सम्मान किया। 

कथा काली मंदिर बीरई में दोपहर एक बजे से पांच बजे होती है इसमें सभी ब्रज मंडल के संत समाज और ब्रजवासी आनंद लेकर कथा श्रवण कर रहे हैं।भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है। इनके लिए छप्पन प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है। अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं।

ऐसा कहा जाता है कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर भोजन कराती थी,अर्थात् बालकृष्ण आठ बार भोजन करते थे। जब इंद्र के प्रकोप से सारे ब्रज को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया। आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र की वर्षा बंद हो गई है तो उन्होंने सभी ब्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा। तब दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले ब्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके ब्रज वासियों और मैया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ। भगवान के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए सभी ब्रजवासियो सहित यशोदा जी ने सात दिन और अष्ट पहर के हिसाब से ७ x ८=५६ व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया।

श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप में प्राप्त हों। श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी। व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन भोग का आयोजन किया। ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। उस कमल की तीन परतें होती हैं। प्रथम परत में "आठ", दूसरी में "सोलह" और तीसरी में "बत्तीस पंखुड़िया" होती हैं। प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं। इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या भी छप्पन होती है। व्यास गिराराज शरण महाराज ने सभी भक्तजनों को कथा श्रवण कराई।                  रिपोर्ट:ठाकुर धर्म सिंह ब्रजवासी।