पत्नी वही जो पति को पतित होने से बचाएःसंत विजय कौशल जी महाराज।

 


 − एसबी आर्नामेंट परिवार की ओर से किया जा रहा है सात दिवसीय श्रीराम कथा का आयोजन।

− सूरसदन प्रेक्षागृह में चल रही श्री राम कथा के पांचवे दिन हुआ वनवास प्रसंग।

− राजा दशरथ का पुत्र विछोह सुन भावुक हुए श्रद्धालु,भक्तिमय भजन संग बही अश्रुधारा।

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। यदि आदर्श पत्नी का चरित्र जानना चाहते हैं तो लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला का चरित्र जानें। उर्मिला जिसने महल में रहकर 14 वर्ष का वनवास जैसा तप किया। लक्ष्मण जी जब प्रभु श्रीराम और माता जानकी के साथ वनवास प्रस्थान से पूर्व पत्नी उर्मिला से भेंट करने आते हैं तो वो प्रसन्नता के साथ पति को प्रभु सेवा में समर्पित होने के लिए विदा करती हैं। पत्नी का धर्म निभाते हुए उनके जीवन ध्येय का मार्ग प्रशस्त करती हैं। श्री राम कथा में जब कथा व्यास मानस मर्मज्ञ विजय कौशल महाराज ने उर्मिला चरित्र का बखान किया तो हर हृदय भावुक हो उठा। 

सूरसदन प्रेक्षागृह में एसबी आर्नामेंट परिवार द्वारा आयोजित श्री राम कथा के पांचवे दिन वनवास,केवट मिलन और चित्रकूट धाम के प्रसंग हुए। 

भारत विकास परिषद संस्कार शाखा द्वारा संत विजय कौशल महाराज का स्वागत किया गया। संत विजय कौशल महाराज ने उर्मिला के चरित्र का वर्णन करते हुए आगे कहा कि मेघनाद को लक्ष्मण जी के बाण नहीं अपितु उर्मिला की प्रेम तपस्या ने मारा था। अयोध्या नगरी से भगवान राम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण की विदाई प्रसंग को जब कहा तो हर हृदय स्वयं को अवधवासी समझ व्याकुल हो उठा। इस पर कैकई तेने क्या ठानी मन में, राम सिया भेज रही वन में…भजन पर सभी की आंखे सजल हो गयीं। दशरथ जी को चिंता सताने लगी कि पुत्र तो वन में रह लेंगे किंतु सीता कैसे वन में सुरक्षित रहेंगी, क्योंकि नारी तो सिर्फ पिता या ससुराल में ही सुरक्षित है। इसके बाद श्रीराम द्वारा गंगा मैया की महिमा और फिर मित्र केवट से मिलाप का प्रसंग। 

जगत को सहारा देने वाले प्रभु श्रीराम द्वारा केवट का सहारा लेकर नाव पर सवार होने का वर्णन करते हुए जब भजन हुआ मेरी नैया में लक्ष्मण राम,गंगा मैया धीरे बहो…ने सभी को आनंदित कर दिया। केवट द्वारा गंगा पार कराने पर कोई शुल्क या मुद्रा श्रीराम के पास नहीं होने पर वे संकोचित हुए। तब माता सीता ने पत्नी धर्म निभाते हुए उन्हें संकोच से निकाला और अपने हाथ की मुद्रिका प्रदान की। इस मुद्रिका का इतिहास संत विजय कौशल महाराज ने बताया। कहा कि मुद्रिका को ब्रह्माजी ने बनाया था और अपने पुत्र बृहस्पति को दिया। बृहस्पति जी ने इंद्र को दिया। युद्ध में प्राणाें की रक्षा करने पर इंद्र ने दशरथ जी को दिया और दशरथ जी ने रानी कौशल्या को। कौशल्या जी ने राजा की प्रिय पत्नी कैकई को दिया और कैकई ने सीता जी को उनकी मुंह दिखाई पर दिया था। 

संत श्री ने आगे प्रसंग कहा कि मुद्रिका को लेने से केवट ने मना कर दिया और कहा कि प्रभु हमारी जाति तो एक है, क्योंकि जाति जन्म से नहीं काराेबार से होती है। मैं गंगा पार कराता हूं और आप भवसागर पार कराते हैं। सुमंत जी के अयोध्या वापस आने के बाद राजा दशरथ का पुत्र विछोह और उनका देह त्यागते समय अपने पूर्व का पाप कर्म जिसमें उनके हाथाें अंधे माता पिता का पुत्र श्रवण मारा गया था, वो सामने आता है। आगे का प्रसंग करते हुए इंद्र पुत्र जयंत का कौओ के रूप में माता सीता के चरणाें में चोंच मारना और श्रीराम का उसे सबक सिखाने के लिए तिनके का बाण छोड़ना प्रसंग के बाद जब भजन गूंजा मेरा तार हरी संग जोड़े ऐसा कोई संत मिले तो हर श्रद्धालु झूमने लगा। 

इस प्रसंग में कथा व्यास ने सीख दी कि जिसका अपराध किया हो क्षमा भी उसी से मांगनी चाहिए। समाज का अपराध करने पर भगवान से क्षमा मांगते हैं यही हम भूल कर देते हैं। आरती और प्रसादी के बाद कथा का समापन हुआ।    

 होंगे सीता हरण और लंका दहन लीला प्रसंग। 

श्रीराम कथा के छठवें दिन सीता हरण एवं हनुमान जी द्वारा लंका दहन की लीला का प्रसंग होगा।