राष्ट्रीय पुस्तक मेला में द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी को किया याद,शब्दांजलि के साथ - आत्मकथा का विमोचन

 

            

  
  


−जीआईसी मैदान में पुस्तक मेले के सातवें दिन बाल कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की जयंती मनाई गई।

 −अक्षरा साहित्य अकादमी के साहित्य उत्सव में बाल कवियों ने सुनाई रचनाएं,वरिष्ठ पत्रकार अमी आधार निडर को भी किया गया याद।

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। “मैं कई बार ठाेकर खा−खाकर गिरा यहां,पर हर ठोकर इस जीवन का उत्थान बनी। चढ़ते−चढ़ते फिसला कितनी ही बार,किंतु हर फिसलन में मेरी मंजिल आसान बनी।…” बच्चों के गांधी जी बाल कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के जीवन के अंतिम लम्हों की ये अंतिम पंक्तियां। जब उनकी आत्मकथा से पढ़ीं गईं तो हर नेत्र जैसे सजल तो हुआ किंतु उनकी जीवंतता पूर्ण शैली से हर हृदय उत्साहित भी हो उठा। 

अक्षरा साहित्य अकादमी द्वारा जीआइसी मैदान में लगाए गए राष्ट्रीय पुस्तक मेला एवं साहित्य उत्सव का सातवां दिन द्वारिका प्रसाद माहेश्वारी जी को समर्पित रहा। 

बाल कवि की जन्म जयंती के अवसर पर हुए बाल सत्र में नन्हें मुन्ने बाल कवियों ने अपनी रचनाओं से काव्यात्मक श्रद्धांजलि अर्पित की। लगातार तीन पीढ़ियों को द्वारा एक साथ श्रद्धासुमन द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी को अर्पित किये जा रहे थे। बाल कवि सम्मेलन के बाद मुख्य अतिथि अपर पुलिस आयुक्त केशव कुमार चौधरी, विशिष्ट अतिथि पुलिस उपायुक्त अरुण चंद्र,कार्यक्रम अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. उषा यादव,मंहत श्री योगेश पुरी,अरुण डंग,डॉ. ज्ञान प्रकाश, प्रो.(डॉ.) कैलाश सारस्वत, डॉ. विकास जैन,राज्य महिला आयोग सदस्य निर्मला दीक्षित और डॉ. विनोद माहेश्वरी ने द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की आत्म कथा. "सीधी राह चलता रहा" का विमोचन किया। डॉ.शशि तिवारी ने मां शारदे की वंदना के साथ साहित्य की पहचान थे श्री माहेश्वरी जी रचना पढ़ते हुए कार्यक्रम आगे बढ़ाया। 

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के सुपुत्र और अक्षरा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. विनोद माहेश्वरी ने बताया कि बाबूजी ने अपनी आत्म कथा अंतिम सांस लेने से दो घंटे पूर्व पूर्ण की थी। आज भी उनकी कृतियां उनके जीवित होने का आभास कराती हैं। मुख्य अतिथि अपर पुलिस आयुक्त केशव कुमार चौधरी ने कहा कि महाकवि सूरदास ने जिस वात्सल्य रस को काव्य में विकसित किया था उस रस को आगे द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा ही बढ़ाया गया। वहीं पुलिस उपायुक्त अरुण चंद्र ने डूबकर भी नहीं डूबते हैं,चांद− सूरज,गगन के सितारे। आप इस तरह दिलों में रहोगे बनकर दुनियां की आंखों के तारे…पंक्तियां पढ़कर अपने भाव व्यक्त किये। महंत श्री योगेश पुरी ने माहेश्वरी जी की रचना वीर तुम बढ़े चलो…का सामूहिक पाठ जब करवाया जो पुस्तक मेले में मौजूद हर कंठ उल्लासित हो उठा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते पद्मश्री उषा यादव ने बचपन के संस्मरण साझा किये। कहा कि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी को बचपन से सुना,जिसके कारण उनका बाल साहित्य के प्रति रुझान बढ़ा। उन्होंने कहा कि नंदन पत्रिका के संपादक जय प्रकाश भारती ने द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी को सबसे पहले बच्चों के गांधी जी कहकर पुकारा था। सत्र के अंत में डॉ.मुनिश्वर गुप्ता  ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सत्र का संचालन सुशील सरित ने किया और बाल कवि सम्मेलन को प्रतीक शर्मा ने संभाला।    

आत्म कथा है,व्यथा नहीं है येःअरुण डंग 

पुस्तक की समीक्षा करते हुए अरुण डंग ने कहा कि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की आत्मकथा कथा है,व्यथा नहीं है। किसी नगर की समृद्धि उसके गगन चुम्बी इमारतों,भवनों या विशाल राजमार्गों से नहीं अपितु उसके साहित्यकार, शिक्षाविदों आदि के भावनात्मक एवं वैचारिक योगदान से आंकी जाती है। द्वारिका प्रसाद माहशे्वरी जी ने अपनी आत्मकथा में उनके संपर्क में आने वाले खास से लेकर साधारण व्यक्ति का भी उल्लेख किया है। उन्होंने नागरी प्रचारिणकी सभा से लेकर उन्हें स्वास्थ लाभ देने वाले चिकित्सकों को भी अपनी पुस्तक में लिया है। 29 अगस्त 1998 को एक ओर बैंगलोर में युवक बिरादरी द्वारा एक सुर एक ताल कार्यक्रम में 25 हजार लोगों द्वारा द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की रचना का काव्य पाठ कराया गया था तो दूसरी ओर उन्होंने अपने कंठ से अंतिम श्वांस ली थी। ये उल्लेख जैसे ही अरुण डंग ने किया तो सभा में उपस्थित हर नेत्र सजल हो गया।  

गृह मंत्रालय से आया श्रद्धा संदेश। 

पौत्र प्रांजल माहेश्वरी ने मंच पर गृह मंत्रालय की उच्च अधिकारी भावना सक्सेना श्रद्धा संदेश पढ़ा, जिसमें द्वारिका प्रसाद जी के कृतित्व और व्यक्तित्व का उल्लेख किया गया था। संदेश में भावना सक्सेना ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए लिखा कि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित 500 से अधिक पुस्तकें कालजयी हैं। आज तीसरी पीढ़ी भी उनका अध्ययन करके आगे बढ़ रही है। 

ये रहे आयोजन में मुख्य रूप से उपस्थित।

साहित्य संगम से सृजित कार्यक्रम में राजेंद्र त्रिपाठी, राजेंद्र मिलन,अशोक राठी,डॉ.मधुरिमा शर्मा,कुसुम चतुर्वेदी, डॉ शशि गोयल,कांता माहेश्वरी,असमा सलीमी,डा.सुषमा सिंह,मीडिया समन्वयक तनु गुप्ता आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।   

इन्होंने संभाली व्यवस्था। 

उपाध्यक्ष वत्सला प्रभाकर, सचिव दीपक सरीन,सहसचिव शीला बहल, कोषाध्यक्ष श्रुति सिन्हा, श्वेता अग्निहोत्री, डॉ.माधवी कुलश्रेष्ठ, आरके कपूर, प्राप्ति सरीन आदि ने व्यवस्थाएं संभालीं।

रिपोर्ट-असलम सलीमी।