हिन्दुस्तान वार्ता।ब्यूरो
लखनऊ : सोमवार 12 अगस्त के दिन,सूरज के प्रवेश के साथ हुआ, सामाजिक समरसता के देवदूत लक्ष्मीकांत तिवारी के जीवन का एक विशेष दिन,जीवन के 78 वर्ष पूरा करने का उत्सव।
12 अगस्त,संयोग से सावन मास का सोमवार का दिन। सोमवार,12 अगस्त,1946 को पंडित लक्ष्मीकांत तिवारी का जन्म,एक प्रतिष्ठित कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में 20वी शताब्दी के पांचवे दशक में लखनऊ जिले के "निगोहां" ग्राम में हुआ था। इनके पिता पंडित बनवारी लाल तिवारी थे।
गुलाम भारत में जन्म लेने वाले भईयाजी ने कभी भी अपना जन्मदिन नहीं मनाया। जिन मित्रों, परिजनों ने शुभकामनाएँ भेजी उन्होंने नतमस्तक हो स्वीकार कर लिया।
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ये तो इक रस्में जहाँ है,जो अदा होती है,
वरना सूरज की कहां, सालगिरह होती है।
हैप्पी बर्थडे,भइयाजी.....
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भईयाजी का कहना है की, यह मेरा परम सौभाग्य रहा कि मेरे जन्म के दिन पूर्णिमा थी, जो इस बार एक सप्ताह के बाद आएगी। मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूँ कि इस पवित्र दिन मेरा जन्म हुआ।
भईयाजी का कहना है की अब मैं अपने जीवन के 79 वें पायदान पर पैर रख रहा हूँ। उम्र के इस पायदान पर मैं खुद को यही शुभकामना प्रेषण कर रहा हूँ कि आकाश छूने का जज्बा रखो और सुपुर्दे खाक होने के लिए तैयार रहो। फिर भी बचपन से आशावादी रहा हूँ, आज भी हूँ। दकियानूस कभी नहीं रहा, अंध विश्वास का घोर विरोधी हूँ,वैज्ञानिक सोच पर मेरा भरोसा है,पर आस्था की प्रबलता को मानता हूँ।
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विनम्रता सहित आपकी दृष्टि, सृजनात्मक और सकारात्मक सोच ही आपको वैतरणी पार करवाती है,पंo लक्ष्मीकांत तिवारी।
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भईयाजी का मानना है की जीवन के आठ दशक पार करने के बाद अनुभव तो कुछ हुआ ही है और मुझे एहसास हुआ कि अनुभव से अधिक अहमियत विवेक की है। विवेक ही इंसान को ऊंचा उठाता है, वरना अनुभव से आप बाल सफेद कर सकते हैं पर ऊपर उठने के लिए विवेक की आवश्यकता होती है।
भईयाजी कहते है,जिंदगी ने हमें सब कुछ दिया और फिर यह सोचना कि सब कुछ हमारा ही है, तो गलत है। क्योंकि जिंदगी जैसे कोई चीज हमें देती है, तो वैसे ही हमसे छीन भी सकती है। आज जब जीवन का लम्बा अंतराल बिता चुका हूँ, तो वैदिक ऋषि चार्वाक की सोच को तर्क और जीवन संगत मानता हूँ कि यथो जीवेत, सुखम जीवेत... यानि जब तक जिओ,सुख से जियो।
बस, एक पंक्ति में अपने जीवन को सार्थक मानता हूँ कि तेरा, तुझको अर्पण...
सभी ने प्यार दिया, सम्मान दिया, सभी के प्रति कृतज्ञता। लम्बा जीवन जीना चाहता हूँ, लेकिन उस घड़ी के लिए भी तैयार हूँ,जो हर व्यक्ति के जीवन में आती ही है।
कौन हैं भईया जी :
मिठाइयों के बादशाह हैं, "भइयाजी" पं० लक्ष्मीकांत तिवारी। एक सच्चे गृहस्थ और गृहस्थ संत की प्रथम पहचान होती है कि वह पूरी ईमानदारी, मेहनत और सच्चाई के साथ अपने हित का से पहले अंतिम जनों के हित और अधिकारों को समझते हुए तन-मन-धन और पूर्ण आस्था सहित, उनकी मदद करे।
महान पुण्यात्मा, समाजसेवी, विप्र कुलभूषण, परशुराम वंशज, श्रेष्ठतम उद्यमी, मानवता के सच्चे हितैषी, माँ काली के अनन्य भक्त, वीर हनुमान के सच्चे सेवक, श्रद्धा, प्रेम और भाव से जन जन के सहयोगी लक्ष्मीकांत तिवारी उर्फ भइयाजी को देख कर ऐसा लगता है, कि मानो वैदिक काल का कोई ब्राह्मण इस युग में आ गया हो, धैर्य और संतुलन भइयाजी की विशेषता है। इनकी वाणी के हर शब्दों में गुरु चेतना के विचारधारा के अविरल वर्षा का आभास होता है।
भइयाजी सबके काम आते हैं। गूंगे मूकबधिर की आवाज बने, अंधे की आंख और श्रवण अक्षम बहरे के कान, भूखों के लिए अन्नपूर्णा सेवक, प्यासों के लिए वरुण का दास, नंगे तन के लिए बजाज बने और बीमार तन के लिए दुख दूर और सही करने वाला औषधि विशेषज्ञ। मित्र के लिए परछाई, शत्रु के लिए काल और उदास और गमगीन चेहरे पर मुस्कान लाने वाली हंसी ऐसे सभी गुण, हम सब के बड़े भाई भइयाजी के पास हैं।
कोलकाता,कानपुर,मुंबई,नयी दिल्ली,हैदराबाद और बंगलूरु में तिवारी ब्रदर्स/ तिवारी स्वीट्स की मिठाइयों की कई दूकान/ शोरूम है। अपनी गुणवत्ता पूर्ण स्वाद और पुरानी परंपरा को निभाते हुए, हमारी चौथी पीढ़ी इसे सफलता और कुशलता के साथ संचालित कर रही है।