हिन्दुस्तान वार्ता : ✍️ डॉ.प्रमोद कुमार
भारतीय साहित्यिक परंपरा में तुलसीदास एक ऐसे महाकवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं जिन्होंने न केवल साहित्य को धार्मिकता का स्वरूप प्रदान किया, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों की स्थापना भी की। उनका संपूर्ण लेखन चरित्र, धर्म, आदर्श और भक्ति की उच्चतम अभिव्यक्तियों का प्रतीक है। 'रामचरितमानस' केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है,बल्कि यह चरित्र की शक्ति और कलम के प्रभाव की गाथा भी है। इस महाग्रंथ में तुलसीदास ने एक ऐसे आदर्श पुरुष की कल्पना की है जो मर्यादा, सत्य, प्रेम, करुणा और न्याय का मूर्त रूप है।
भारतीय साहित्य और संस्कृति में चरित्र को जीवन की सर्वोच्च शक्ति माना गया है। महान संत कवि गोस्वामी तुलसीदास ने अपने काव्य में न केवल भक्ति और दर्शन का अद्वितीय संगम प्रस्तुत किया, बल्कि एक ऐसे आदर्श पुरुष की संकल्पना की, जो समाज के नैतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतिनिधि बनता है। "रामचरितमानस" के माध्यम से तुलसीदास ने भगवान राम के रूप में उस पुरुषोत्तम का चित्रण किया, जिसमें सत्य, करुणा, धैर्य, त्याग, विनम्रता, दया और धर्म की पराकाष्ठा विद्यमान है। उनका यह आदर्श पुरुष केवल धार्मिक भावना का प्रतीक नहीं, बल्कि समाज के नैतिक पुनर्निर्माण का प्रेरणास्रोत भी है।
तुलसीदास की कलम ने जिस आदर्श चरित्र की रचना की, वह केवल देवत्व की उपासना नहीं करता, बल्कि लोक-हित की साधना करता है। राम का जीवन मर्यादा, अनुशासन और उत्तरदायित्व से ओतप्रोत है, जो हर युग में एक प्रेरणा बनता है। तुलसीदास की लेखनी ने यह स्पष्ट कर दिया कि कलम की शक्ति न केवल भावनाओं को शब्द देती है, बल्कि वह समाज के अंतःकरण को छूकर उसे दिशा भी प्रदान करती है।
इस विषय के अंतर्गत हम यह विश्लेषण करेंगे कि तुलसीदास के आदर्श पुरुष की संकल्पना में चरित्र की शक्ति कैसे केंद्रीय भूमिका निभाती है और किस प्रकार उनकी कलम एक आदर्श समाज और व्यक्ति निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है। यह अध्ययन केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टि से भी अत्यंत प्रासंगिक है।इस लेख में हम तुलसीदास के आदर्श पुरुष की अवधारणा का विश्लेषण करेंगे और समझने का प्रयास करेंगे कि किस प्रकार उनके चरित्र की शक्ति और तुलसीदास की कलम का प्रभाव समाज पर व्यापक रूप से पड़ा।
1. तुलसीदास का युग और उनके लेखन का सामाजिक परिप्रेक्ष्य:
तुलसीदास का जन्म 16वीं शताब्दी में हुआ था, जब भारतीय समाज धार्मिक, नैतिक और राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। मुस्लिम आक्रमणों, सामाजिक विषमता, जातिवाद, धार्मिक पाखंड और नारी शोषण जैसी अनेक विकृतियां समाज में व्याप्त थीं। ऐसे समय में तुलसीदास की लेखनी ने समाज को स्थिरता देने, नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना करने और एक आदर्श जीवन शैली को प्रस्तुत करने का कार्य किया।
उनकी रचनाओं में विशेष रूप से 'रामचरितमानस' ने समाज को एक ऐसी दृष्टि दी जिसमें एक मर्यादित जीवन, सामाजिक समरसता, चरित्रबल और धर्म का अनुपालन प्राथमिकता पाता है। उन्होंने 'राम' के माध्यम से 'पुरुषोत्तम' की जो छवि प्रस्तुत की, वह भारतीय मानस को अनंत काल तक प्रभावित करने वाली बन गई।
2. तुलसीदास के आदर्श पुरुष 'राम': चरित्र की मूर्तिमान अभिव्यक्ति
तुलसीदास के लिए राम केवल एक राजा या योद्धा नहीं थे, बल्कि वे एक 'मर्यादा पुरुषोत्तम' थे - आदर्श मानव। वे न केवल ईश्वर के अवतार हैं,बल्कि उन्होंने मानव समाज के प्रत्येक स्तर पर एक उच्चतर नैतिक व्यवहार का प्रदर्शन किया।
राम के चरित्र की विशेषताएं :
मर्यादा पालन : राम का जीवन अनुशासन और मर्यादा के प्रति समर्पित रहा। पिता की आज्ञा पर वनवास जाना हो या सीता की अग्निपरीक्षा — वे अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि रखते हैं।
सत्यनिष्ठा : उनके प्रत्येक निर्णय और आचरण में सत्यनिष्ठा का भाव परिलक्षित होता है। वे समाज के हित में व्यक्तिगत सुखों का भी त्याग करने से नहीं हिचकते।
समदृष्टि : राम शबरी,निषादराज, वनवासियों, वानरों और राक्षसों के साथ समान भाव से व्यवहार करते हैं। यह समता उनकी दिव्यता को मानवतावादी धरातल पर स्थापित करता है।
करुणा और क्षमा : वे अपने शत्रुओं से भी करुणा और क्षमा का व्यवहार करते हैं — चाहे वह रावण हो या विभीषण का भाई होना।
धर्मप्रियता : धर्म उनके लिए कोई रूढ़ि नहीं, बल्कि एक जीवंत आचरण है। उनका समस्त जीवन धर्म के व्यावहारिक रूप को दर्शाता है।
3. कलम का प्रभाव : तुलसीदास की लेखनी की सामाजिक भूमिका
तुलसीदास की लेखनी ने आदर्श पुरुष के चरित्र को लोक में इस प्रकार बिंबित किया कि वह जनमानस का आदर्श बन गया। उन्होंने राम के चरित्र को जनभाषा 'अवधी' में गढ़ा,जिससे वह जन-जन की चेतना का हिस्सा बन गया।
तुलसी की लेखनी के प्रमुख प्रभाव :
भाषा का लोकतंत्रीकरण : संस्कृत में सीमित उच्च वर्ग तक सिमटे धार्मिक ग्रंथों को अवधी में रूपांतरित कर उन्होंने साहित्य को जनसाधारण तक पहुंचाया।
नैतिक शिक्षा : 'रामचरितमानस' केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक नैतिक पाठशाला भी है, जिसमें जीवन के प्रत्येक पहलू का मार्गदर्शन है।
चरित्र निर्माण का साधन : तुलसीदास ने समाज को बताया कि एक व्यक्ति का चरित्र ही उसकी सबसे बड़ी पूंजी है। उन्होंने यह भी दिखाया कि ईश्वरत्व का अर्थ केवल शक्ति नहीं,चरित्रबल है।
भक्ति का माध्यम : राम के प्रति तुलसी की भक्ति वैराग्य नहीं,अपितु समाज को जागृत करने की एक प्रेरक शक्ति बनकर उभरी।
4. तुलसीदास का पुरुषोत्तम और आधुनिक समाज :
आज के सामाजिक,राजनीतिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में तुलसीदास के आदर्श पुरुष की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है। जब नैतिकता का संकट, व्यक्तिगत स्वार्थ, चरित्रहीनता और वैचारिक भ्रांतियां बढ़ रही हों, तब तुलसीदास का पुरुषोत्तम हमें यह सिखाता है कि शक्ति, सत्ता और समृद्धि से अधिक मूल्यवान है — चरित्र।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में तुलसीदास के आदर्श पुरुष की उपयोगिता :
राजनीति में नैतिकता : राम जैसे शासक की कल्पना जो स्वयं के दुख से अधिक प्रजा की पीड़ा को महत्व देता है।
व्यक्तित्व विकास में प्रेरणा : युवा पीढ़ी के लिए राम का जीवन एक आदर्श है जिसमें संयम, परिश्रम और धर्मबुद्धि का समावेश है।
सामाजिक समरसता : शबरी,केवट, हनुमान, निषादराज के साथ राम का व्यवहार आज के जातिवादी समाज को नया संदेश देता है।
नारी सम्मान : सीता के प्रति राम का व्यवहार, यद्यपि आलोचनात्मक संदर्भों में जटिल हो सकता है,परंतु संपूर्णतः एक संरक्षक और आदर्श पति का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
5. तुलसीदास का साहित्य : चरित्र की दीक्षा और लोकशिक्षा का माध्यम
तुलसीदास की कविताओं और चौपाइयों में जीवन के हर मोड़ के लिए कोई-न-कोई शिक्षा अवश्य छिपी है। उन्होंने धर्म, समाज, राजनीति, शिक्षा और संबंधों के विषय में जो दृष्टिकोण लल्ललLलल्लLलळळळळळळप्रस्तुत किया, वह सब कुछ चरित्रबल और नैतिक आदर्शों के आधार पर केंद्रित है।
प्रसिद्ध चौपाइयाँ और उनका भावार्थ :
1. "धन्य जानि गुनि मन रामहि। तुलसी सोइ चरित बखानहि।।"
– तुलसी कहते हैं कि वही चरित्र वंदनीय है जो राम जैसे गुणों से युक्त हो।
2. "परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।"
– यह दोहा चरित्र और नैतिकता की वह पराकाष्ठा है, जो दूसरों के हित और सहानुभूति को सर्वोच्च धर्म मानती है।
3. "बंदउँ गुर पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रविकर निकर।।"
– तुलसीदास की कलम ही अज्ञान के अंधकार को नष्ट करने वाली प्रकाश किरण है।
6. तुलसीदास की दृष्टि में चरित्र और कर्म का संबंध :
तुलसीदास केवल नैतिक उपदेश नहीं देते, बल्कि अपने पात्रों के माध्यम से यह सिद्ध करते हैं कि चरित्र से ही श्रेष्ठ कर्म की उत्पत्ति होती है। राम, भरत, लक्ष्मण, हनुमान,सीता — सभी अपने चरित्र से प्रेरित होकर कर्म करते हैं, और वही उन्हें महान बनाता है।
चरित्र और कर्म का तुलसीय सिद्धांत:
चरित्र = आत्मनियंत्रण + धर्मपालन + दूसरों के हित की चिंता
कर्म = चरित्र की अभिव्यक्ति
इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो तुलसीदास ने चरित्र और कर्म को परस्पर पूरक मानते हुए व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की रूपरेखा दी।
7. तुलसीदास की कलम: समाज सुधारक की भूमिका में
तुलसीदास की कलम केवल साहित्य रचने तक सीमित नहीं रही, उन्होंने सामाजिक कुरूतियों के विरुद्ध भी आवाज उठाई। उनकी पंक्तियाँ महिलाओं, दलितों, और वंचितों के साथ समावेशी समाज का संदेश देती हैं।
समाज सुधार के उदाहरण :
शबरी की भक्ति को सम्मान देना: एक वृद्ध, वनवासी स्त्री की भक्ति को राम द्वारा सर्वोच्च माना जाना समाज के लिए एक बड़ा संदेश था।
केवट प्रसंग : एक नाविक की सेवा को ईश्वर स्वयं स्वीकार करता है — यह वर्ण और वर्ग के भेद को तोड़ने की प्रतीकात्मक घटना है।
स्त्री के प्रति सम्मान: राम का सीता के प्रति समर्पण, अर्धांगिनी का सम्मान और रावण की नारी अपहरण नीति का विरोध — यह सब तुलसीदास की दृष्टि में उच्च स्त्री सम्मान को दर्शाते हैं।
8. निष्कर्ष : तुलसीदास के पुरुषोत्तम का आज में पुनर्पाठ
आज जबकि समाज भौतिकता की अंध दौड़, नैतिक गिरावट और आत्मकेन्द्रित सोच से जूझ रहा है, तुलसीदास का आदर्श पुरुष फिर से मार्गदर्शन का स्रोत बन सकता है। उनकी लेखनी आज भी यह कहती है कि चरित्र की शक्ति से बढ़कर कोई अन्य शक्ति नहीं है और कलम का प्रभाव चिरस्थायी होता है जब वह समाज को नैतिक दिशा देती है। तुलसीदास ने राम को एक आदर्श पुरुष के रूप में गढ़ा जिनका जीवन चरित्रबल का सर्वोत्तम उदाहरण है। उनकी कलम ने समाज में नैतिक जागृति, धार्मिक समरसता और सामाजिक समता का बीजारोपण किया। तुलसीदास का साहित्य आज भी व्यक्ति निर्माण, राष्ट्र निर्माण और मानवता की रक्षा के लिए प्रेरणा देता है।
"चरित्र की शक्ति और कलम का प्रभाव: तुलसीदास के आदर्श पुरुष की खोज" विषय के अंतर्गत यह स्पष्ट होता है कि तुलसीदास न केवल एक कवि थे, बल्कि समाज के शिक्षक, मार्गदर्शक और नैतिक पुनर्निर्माता भी थे। उनका आदर्श पुरुष राम, एक ऐसा पथप्रदर्शक है जिसकी प्रेरणा से कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को संतुलित, मूल्यवान और समाजोपयोगी बना सकता है। तुलसीदास की कलम और राम का चरित्र — ये दोनों आज भी हमारे सांस्कृतिक और नैतिक अस्तित्व के स्तंभ हैं। तुलसीदास की साहित्यिक साधना केवल भक्ति और रामकथा तक सीमित नहीं रही, बल्कि वह चरित्र निर्माण और समाजोत्थान की दिशा में एक प्रभावशाली प्रयास भी रही। उनकी लेखनी ने न केवल धार्मिक चेतना को प्रबल किया,बल्कि नैतिकता, मर्यादा और कर्तव्य के आदर्शों को भी लोकजीवन में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने राम के रूप में उस 'पुरुषोत्तम' की कल्पना की, जो चरित्र की उच्चता, करुणा,न्यायप्रियता और सत्यनिष्ठा का मूर्तिमान रूप है।
तुलसीदास की कलम ने सामाजिक विषमता, जातिगत भेदभाव और नैतिक पतन के विरुद्ध एक सांस्कृतिक चेतना का संचार किया। रामचरितमानस जैसी काव्यात्मक रचना ने यह सिद्ध कर दिया कि जब लेखनी धर्म, सत्य और चरित्र के पक्ष में खड़ी होती है, तब वह समाज के पुनर्निर्माण का सशक्त माध्यम बन जाती है। आज के समय में जब समाज चरित्रहीनता, असत्य और आत्मकेन्द्रितता से जूझ रहा है, तब तुलसीदास के आदर्श पुरुष की प्रासंगिकता और अधिक स्पष्ट हो उठती है। राम जैसा चरित्र न केवल धार्मिक अनुकरण का विषय है, बल्कि व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए भी प्रेरक आदर्श है। अतः कहा जा सकता है कि तुलसीदास की कलम और उनके आदर्श पुरुष की अवधारणा केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि कालातीत है, जो आज भी चरित्र की शक्ति और लेखनी के प्रभाव से मानवता को जाग्रत करने का सामर्थ्य रखती है।
लेखक - डिप्टी नोडल अधिकारी,MyGov
डॉ.भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा हैं।