राष्ट्र की बुनियादी त्रयी सेवाएं : शिक्षा,स्वास्थ्य और सुरक्षा का सरकारी संरक्षण व संचालन ही सशक्त और विकसित भारत का मूलमंत्र

                                                                                      


हिन्दुस्तान वार्ता। ✍️ डॉ.प्रमोद कुमार

सशक्त और विकसित भारत का मूलमंत्र एक राष्ट्र की वास्तविक शक्ति का आकलन केवल उसकी आर्थिक समृद्धि से नहीं, बल्कि उसके मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) और नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता से भी होता है। जब हम एक सशक्त और विकसित भारत की परिकल्पना करते हैं, तो यह केवल ऊँची जीडीपी दर या बड़े-बड़े बुनियादी ढाँचे तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसमें प्रत्येक नागरिक को मिलने वाली बुनियादी सेवाओं की सुलभता, गुणवत्ता और निरंतरता भी शामिल होती है। ये बुनियादी सेवाएँ, जिन्हें हम शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा की त्रयी के रूप में पहचानते हैं, किसी भी राष्ट्र की नींव होती हैं। ये तीनों स्तंभ मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करते हैं जहाँ नागरिक अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर सकते हैं, सुरक्षित महसूस कर सकते हैं और एक स्वस्थ व उत्पादक जीवन जी सकते हैं।

भारत जैसे विशाल और विविध देश में, जहाँ सामाजिक-आर्थिक विषमताएँ आज भी एक बड़ी चुनौती हैं, इन बुनियादी सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह तभी संभव है जब इनका सरकारी संरक्षण और संचालन प्रभावी ढंग से हो। सरकार की भूमिका केवल नियामक की नहीं, बल्कि एक प्रदाता और गारंटर की भी होती है, विशेष रूप से उन वर्गों के लिए जो बाज़ार की शक्तियों पर पूरी तरह निर्भर नहीं हो सकते। ऐतिहासिक रूप से, दुनिया भर के सफल राष्ट्रों ने इन क्षेत्रों में मजबूत सरकारी हस्तक्षेप के माध्यम से ही प्रगति की है। चाहे वह सार्वभौमिक शिक्षा हो, सुलभ स्वास्थ्य सेवाएँ हों, या आंतरिक और बाहरी सुरक्षा का मजबूत तंत्र हो, सरकारों ने हमेशा एक केंद्रीय भूमिका निभाई है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी नागरिक इन मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित न रहे।

यह लेख इस मूलभूत सिद्धांत पर गहराई से विचार करेगा कि कैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा का सरकारी संरक्षण और संचालन ही वास्तव में एक सशक्त और विकसित भारत का मूलमंत्र है। हम इन तीनों क्षेत्रों के महत्व, उनमें सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता, भारत में इनकी वर्तमान स्थिति, चुनौतियों और आगे के रास्तों पर विस्तृत चर्चा करेंगे। हमारा उद्देश्य यह विश्लेषण करना है कि कैसे इन स्तंभों को मजबूत करके ही भारत अपनी पूरी क्षमता को प्राप्त कर सकता है और अपने नागरिकों के लिए एक उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकता है। विकसित राष्ट्र का निर्माण केवल आर्थिक आंकड़ों की प्रगति से नहीं होता, बल्कि वह सामाजिक सरंचनाओं की मजबूती और मानवीय गरिमा की रक्षा से होता है। किसी भी देश की आत्मा उसके नागरिक होते हैं, और नागरिकों की उन्नति व कल्याण ही राष्ट्र के वास्तविक विकास का परिचायक है। इस संदर्भ में शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा—ये तीनों बुनियादी त्रयी सेवाएं किसी भी देश की रीढ़ होती हैं। इनका संरक्षण और संचालन यदि सरकार द्वारा उत्तरदायित्वपूर्वक किया जाए, तो न केवल समान अवसरों का सृजन संभव होता है, बल्कि सामाजिक न्याय, आत्मनिर्भरता और सतत विकास की दिशा भी सुनिश्चित होती है।

भारत जैसे विशाल, विविध और जनसंख्या बहुल राष्ट्र के समक्ष सबसे बड़ा लक्ष्य है – समग्र, समावेशी और संतुलित विकास। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए राज्य की तीन बुनियादी सेवाएं – शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा – एक मजबूत आधारशिला की तरह कार्य करती हैं। यदि इन तीनों क्षेत्रों का संचालन और संरक्षण सरकार द्वारा प्रभावी ढंग से किया जाए तो भारत न केवल एक सशक्त राष्ट्र बन सकता है, बल्कि 'विकसित भारत' का सपना भी साकार हो सकता है। इस लेख में हम गहराई से विश्लेषण करेंगे कि क्यों शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा का सरकारी संरक्षण व संचालन ही सशक्त और विकसित भारत का मूलमंत्र है। हम विस्तार से यह भी समझेंगे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा का सरकारी संरक्षण क्यों आवश्यक है, इनके वर्तमान स्वरूप में क्या समस्याएं हैं, किन सुधारों की आवश्यकता है और कैसे एक प्रभावशाली प्रणाली द्वारा इनका संचालन भारत को समृद्ध, सुरक्षित और सुशिक्षित बना सकता है।

 शिक्षा : ज्ञान आधारित समाज की नींव

शिक्षा, किसी भी राष्ट्र की आत्मा होती है और यह उसके भविष्य की दिशा निर्धारित करती है। यह केवल अक्षर ज्ञान या डिग्री प्राप्त करना नहीं है, बल्कि व्यक्ति के सर्वांगीण विकास, आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking), रचनात्मकता और समस्या-समाधान क्षमताओं को विकसित करने का एक शक्तिशाली माध्यम है। एक ज्ञान आधारित समाज (Knowledge-based Society) की परिकल्पना बिना मजबूत शैक्षिक नींव के अधूरी है, जहाँ ज्ञान का उत्पादन, प्रसार और अनुप्रयोग ही प्रगति का इंजन बनता है।

शिक्षा का महत्व ।

शिक्षा का महत्व बहुआयामी है, जो व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक सभी स्तरों पर गहरा प्रभाव डालता है।

 व्यक्तिगत विकास : 

शिक्षा व्यक्ति को अपनी क्षमताओं को पहचानने, कौशल विकसित करने और आत्मविश्वास के साथ जीवन जीने में मदद करती है। यह उन्हें स्वतंत्र रूप से सोचने, निर्णय लेने और चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करती है। एक शिक्षित व्यक्ति बेहतर निर्णय ले पाता है, अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होता है, और एक पूर्ण जीवन जी पाता है।

 सामाजिक प्रगति : 

शिक्षा सामाजिक न्याय और समानता की कुंजी है। यह सामाजिक-आर्थिक विषमताओं को कम करने में सहायक है, लोगों को पूर्वाग्रहों से मुक्त करती है और एक समावेशी समाज का निर्माण करती है। शिक्षित नागरिक अपने समुदायों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं और सामुदायिक भावना को बढ़ावा देते हैं। यह सहिष्णुता, करुणा और नागरिक जिम्मेदारियों को पोषित करती है।

 आर्थिक विकास :

शिक्षा सीधे तौर पर राष्ट्र के आर्थिक विकास से जुड़ी है। यह कौशल विकास को बढ़ावा देती है, जिससे रोजगार सृजन होता है और व्यक्तियों की उत्पादकता बढ़ती है। एक शिक्षित कार्यबल नवाचार को जन्म देता है, नई प्रौद्योगिकियों को अपनाता है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होता है। उच्च शिक्षा और अनुसंधान के माध्यम से नए ज्ञान का सृजन होता है, जो उद्योगों को गति देता है और आर्थिक समृद्धि लाता है।

लोकतांत्रिक मूल्य : 

शिक्षा एक सशक्त लोकतंत्र की नींव है। यह नागरिकों को सूचित निर्णय लेने, सार्वजनिक बहसों में भाग लेने और अपने प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने में सक्षम बनाती है। एक शिक्षित आबादी अपने लोकतांत्रिक अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझती है, जिससे शासन में पारदर्शिता और भागीदारी बढ़ती है।

शिक्षा में सरकारी संरक्षण और संचालन की आवश्यकता

शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को पूरी तरह से निजी हाथों में नहीं छोड़ा जा सकता, क्योंकि बाजार की शक्तियां अक्सर लाभ पर केंद्रित होती हैं, न कि सामाजिक समानता पर। यही कारण है कि शिक्षा में सरकारी संरक्षण और संचालन अनिवार्य हो जाता है:

 समान पहुँच सुनिश्चित करना : 

सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि शिक्षा तक पहुँच जाति, धर्म, लिंग, आर्थिक स्थिति या भौगोलिक स्थिति के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना सभी के लिए सुलभ हो। सरकारी स्कूल और विश्वविद्यालय दूरदराज के क्षेत्रों और वंचित वर्गों के बच्चों को शिक्षा प्रदान करते हैं, जिससे शैक्षिक असमानता (Educational Inequality) कम होती है।

 गुणवत्ता नियंत्रण : 

निजी संस्थान अक्सर गुणवत्ता की अनदेखी कर सकते हैं, जबकि सरकार पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों और शिक्षक प्रशिक्षण के लिए मानक निर्धारित करती है। यह सुनिश्चित करती है कि देश भर में प्रदान की जा रही शिक्षा एक न्यूनतम गुणवत्ता स्तर को पूरा करे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) जैसे दस्तावेज इसी मानकीकरण के उद्देश्य से तैयार किए जाते हैं।

 मानकीकरण और एकरूपता : 

सरकार एक राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली विकसित करती है जो पूरे देश में शिक्षा में एकरूपता और मानकीकरण सुनिश्चित करती है। यह छात्रों को एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर भी सुचारू रूप से शिक्षा जारी रखने में मदद करता है और राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप एक एकीकृत शैक्षिक ढाँचा तैयार करता है।

 वंचित वर्गों के लिए विशेष प्रावधान : 

समाज के आर्थिक रूप से कमजोर और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए, सरकारी सहायता जैसे छात्रवृत्ति, मुफ्त शिक्षा, मध्याह्न भोजन योजनाएँ और विशेष कोचिंग अनिवार्य हैं। ये प्रावधान उन्हें शिक्षा की मुख्यधारा में लाने में मदद करते हैं।

 बुनियादी ढाँचा और संसाधन : 

स्कूलों और कॉलेजों के निर्माण, पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं, खेल के मैदानों और डिजिटल संसाधनों को बनाए रखने के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है। यह निवेश अक्सर निजी क्षेत्र के लिए लाभदायक नहीं होता, लेकिन सरकार इसे एक राष्ट्रीय आवश्यकता के रूप में देखती है और इसमें निवेश करती है।

अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा : 

उच्च शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर सरकारी फंडिंग की आवश्यकता होती है। विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों को सरकार द्वारा पोषित किया जाता है ताकि वे विज्ञान, प्रौद्योगिकी, सामाजिक विज्ञान और मानविकी में नए ज्ञान का सृजन कर सकें, जो राष्ट्र के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

संक्षेप में, शिक्षा सिर्फ एक सेवा नहीं, बल्कि एक सार्वजनिक वस्तु (Public Good) है। इसका सरकारी संरक्षण और संचालन यह सुनिश्चित करता है कि यह एक अधिकार के रूप में सभी को उपलब्ध हो, न कि केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को। यही वह आधारशिला है जिस पर एक सशक्त, न्यायपूर्ण और ज्ञान आधारित भारत का निर्माण संभव है।

स्वास्थ्य : स्वस्थ नागरिक,उत्पादक राष्ट्र

स्वास्थ्य, किसी भी राष्ट्र की सबसे मूल्यवान संपत्ति है। यह सिर्फ बीमारी या दुर्बलता की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की एक पूर्ण स्थिति है। एक स्वस्थ आबादी एक उत्पादक और गतिशील राष्ट्र की नींव रखती है। जब नागरिक स्वस्थ होते हैं, तो वे अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर सकते हैं, अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकते हैं और अपने समुदायों को मजबूत कर सकते हैं। इसके विपरीत, खराब स्वास्थ्य गरीबी, सामाजिक अस्थिरता और विकास में बाधा का कारण बनता है।

स्वास्थ्य का महत्व।

स्वास्थ्य का महत्व व्यापक है और इसके प्रभाव व्यक्तिगत से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक देखे जा सकते हैं:

 मानव पूंजी का संरक्षण :

स्वस्थ नागरिक एक देश की सबसे बड़ी पूंजी होते हैं। एक बीमारी मुक्त और ऊर्जावान कार्यबल अधिक उत्पादक होता है, जिससे आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है। बीमारियों और अक्षमताओं के कारण होने वाली कार्यक्षमता की हानि राष्ट्रीय उत्पादकता को सीधे प्रभावित करती है।

जीवन की गुणवत्ता में सुधार : 

अच्छा स्वास्थ्य व्यक्तियों को एक पूर्ण और सक्रिय जीवन जीने में सक्षम बनाता है। यह उन्हें सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने, शिक्षा प्राप्त करने और अपने शौक पूरे करने की स्वतंत्रता देता है। दीर्घायु और बेहतर जीवन गुणवत्ता सीधे तौर पर स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता से जुड़ी होती है।

गरीबी उन्मूलन : 

स्वास्थ्य व्यय, विशेषकर अप्रत्याशित बीमारियों के कारण होने वाला खर्च, परिवारों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल सकता है। कैटास्ट्रॉफिक स्वास्थ्य व्यय (Catastrophic Health Expenditure) गरीब और निम्न-आय वर्ग के लिए एक गंभीर बोझ है। सुलभ और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ इस बोझ को कम करती हैं, जिससे परिवारों को अपनी आय को शिक्षा या अन्य विकासात्मक गतिविधियों में निवेश करने का अवसर मिलता है।

 सामाजिक सुरक्षा और स्थिरता : 

महामारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट, जैसे कि हाल ही में COVID-19 महामारी, पूरे समाज को अस्थिर कर सकते हैं। एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली इन संकटों को रोकने, उनका प्रबंधन करने और उनसे उबरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे सामाजिक सुरक्षा और स्थिरता बनी रहती है। यह भय और अनिश्चितता को कम करती है।

स्वास्थ्य में सरकारी संरक्षण और संचालन की आवश्यकता

स्वास्थ्य सेवा को केवल बाजार की शक्तियों पर छोड़ देना एक न्यायसंगत और कुशल प्रणाली को बाधित कर सकता है। स्वास्थ्य सेवाएँ एक आवश्यक सार्वजनिक वस्तु (Essential Public Good) हैं, और इसलिए सरकारी संरक्षण और संचालन इसमें महत्वपूर्ण हो जाता है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage) : 

सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि सभी नागरिकों को, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना, गुणवत्तापूर्ण और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ मिलें। निजी क्षेत्र अक्सर लाभ पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे गरीब और वंचित लोग उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल से वंचित रह जाते हैं। सरकारी हस्तक्षेप इस खाई को पाटता है।

 प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर जोर : 

निवारक उपाय, शुरुआती निदान और सामान्य बीमारियों का उपचार सबसे प्रभावी और लागत-कुशल स्वास्थ्य सेवाएँ हैं। सरकारें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) के माध्यम से इन सेवाओं को दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुँचाती हैं, जिससे बड़ी और महंगी बीमारियों को रोका जा सके।

 महामारी नियंत्रण और सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियान :

संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकने और स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों और टीकाकरण कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है। यह कार्य केवल सरकार ही कर सकती है, क्योंकि इसके लिए व्यापक समन्वय, संसाधनों और नियामक शक्तियों की आवश्यकता होती है।

 दवाओं और टीकों की उपलब्धता और वहनीयता :

आवश्यक दवाओं और टीकों तक पहुँच सुनिश्चित करना सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण पहलू है। सरकारें दवाओं की कीमतों को नियंत्रित कर सकती हैं, जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा दे सकती हैं और सरकारी अस्पतालों के माध्यम से इन्हें सस्ती दरों पर उपलब्ध करा सकती हैं।

 स्वास्थ्य अनुसंधान और विकास को बढ़ावा : 

नई बीमारियों का इलाज खोजने, टीकों का विकास करने और चिकित्सा प्रौद्योगिकियों में सुधार के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है। यह अनुसंधान अक्सर लाभ-उन्मुख नहीं होता और इसलिए सरकारी फंडिंग और समर्थन पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

 मानकीकरण और विनियमन : 

चिकित्सा नैतिकता, उपचार प्रोटोकॉल, अस्पतालों की गुणवत्ता और चिकित्सा पेशेवरों के प्रशिक्षण को विनियमित करना आवश्यक है। सरकारें नीतियां और कानून बनाती हैं ताकि स्वास्थ्य सेवाएँ सुरक्षित, प्रभावी और नैतिक रूप से प्रदान की जा सकें। यह रोगियों के हितों की रक्षा करता है।

संक्षेप में,एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण केवल व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं है; यह एक सामूहिक प्रयास है जिसमें सरकार की भूमिका सर्वोपरि है। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में मजबूत निवेश और सक्रिय सरकारी प्रबंधन ही एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकता है जो न केवल बीमारियों से मुक्त हो, बल्कि अपने नागरिकों की पूर्ण क्षमता को भी अनलॉक कर सके, जिससे एक सच्चा उत्पादक राष्ट्र बन सके।

 सुरक्षा : स्थिर और सुरक्षित वातावरण का आधार

सुरक्षा, किसी भी राष्ट्र के अस्तित्व और प्रगति का आधारशिला है। यह केवल बाहरी खतरों से सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आंतरिक कानून और व्यवस्था बनाए रखना, नागरिकों की संपत्ति और जीवन की रक्षा करना, और समाज में शांति व स्थिरता सुनिश्चित करना भी शामिल है। एक सुरक्षित वातावरण वह नींव प्रदान करता है जिस पर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी अन्य विकासात्मक गतिविधियाँ फली-फूल सकती हैं। बिना सुरक्षा के, आर्थिक विकास ठप पड़ सकता है, सामाजिक सामंजस्य टूट सकता है, और नागरिकों का विश्वास सरकार से उठ सकता है।

सुरक्षा का महत्व।

सुरक्षा का महत्व राष्ट्र के हर पहलू को प्रभावित करता है :

आंतरिक और बाहरी स्थिरता : 

सुरक्षा बल, जैसे कि सेना, पुलिस और अर्धसैनिक बल, राष्ट्र की सीमाओं को बाहरी आक्रमण से बचाते हैं और देश के भीतर शांति और व्यवस्था बनाए रखते हैं। यह स्थिरता निवेश को आकर्षित करती है, पर्यटन को बढ़ावा देती है और नागरिकों को बिना डर के जीने की अनुमति देती है।

नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा : 

यह सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों को आपराधिक गतिविधियों, हिंसा और आतंकवाद से बचाए। जब नागरिकों को अपनी सुरक्षा का भरोसा होता है, तो वे अधिक उत्पादक हो सकते हैं, व्यवसायों में निवेश कर सकते हैं और सामाजिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं।

 निवेश और आर्थिक विकास के लिए अनुकूल माहौल : 

कोई भी निवेशक ऐसे देश में पूंजी लगाने को तैयार नहीं होगा जहाँ राजनीतिक अस्थिरता, अपराध दर अधिक हो, या आतंकवादी गतिविधियाँ हों। एक सुरक्षित और स्थिर वातावरण घरेलू और विदेशी निवेश को आकर्षित करता है, जिससे रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को गति मिलती है।

राष्ट्रीय संप्रभुता और अखंडता की रक्षा : 

सुरक्षा तंत्र राष्ट्र की संप्रभुता (Sovereignty) और क्षेत्रीय अखंडता (Territorial Integrity) को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि देश की सीमाएँ सुरक्षित रहें और कोई भी बाहरी शक्ति उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न कर सके।

आपदा प्रबंधन और मानवीय सहायता : 

सुरक्षा बल, विशेष रूप से राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) जैसी इकाइयाँ, प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप या अन्य आपात स्थितियों के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे बचाव और राहत कार्यों का संचालन करते हैं, मानवीय सहायता प्रदान करते हैं और प्रभावित क्षेत्रों में व्यवस्था बनाए रखते हैं।

सुरक्षा में सरकारी संरक्षण और संचालन की आवश्यकता।

सुरक्षा एक ऐसी सेवा है जिसे निजी क्षेत्र द्वारा कुशलतापूर्वक और समान रूप से प्रदान नहीं किया जा सकता है। यह एक शुद्ध सार्वजनिक वस्तु (Pure Public Good) है, जिसके लिए सरकारी संरक्षण और संचालन अनिवार्य है।

सेना और पुलिस बलों का रखरखाव और आधुनिकीकरण :

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक मजबूत और आधुनिक सेना का होना अपरिहार्य है। इसी तरह, आंतरिक सुरक्षा के लिए एक सुसज्जित और प्रशिक्षित पुलिस बल आवश्यक है। इनके रखरखाव, प्रशिक्षण और आधुनिकीकरण के लिए भारी सार्वजनिक निवेश और सरकारी नियंत्रण की आवश्यकता होती है।

खुफिया एजेंसियों का संचालन : 

राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों,आतंकवाद और संगठित अपराध के बारे में जानकारी इकट्ठा करने और उनका विश्लेषण करने के लिए कुशल खुफिया एजेंसियों की आवश्यकता होती है। इन एजेंसियों को गोपनीयता, विशेष शक्तियों और सरकारी निरीक्षण के तहत काम करना होता है।

 सीमा सुरक्षा और घुसपैठ नियंत्रण : 

देश की लंबी और अक्सर चुनौतीपूर्ण सीमाओं की सुरक्षा के लिए समर्पित सीमा सुरक्षा बलों की आवश्यकता होती है। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ, तस्करी और अवैध प्रवासन को रोकने के लिए सरकारी प्रयास ही प्रभावी हो सकते हैं।

साइबर सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी उपाय :

आधुनिक युग में,साइबर हमले और डिजिटल आतंकवाद एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। सरकारें राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीतियाँ बनाती हैं, कानून लागू करती हैं और विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करती हैं ताकि महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और व्यक्तिगत डेटा को सुरक्षित रखा जा सके। आतंकवाद विरोधी अभियान और नीतियाँ भी सरकारी एजेंसियों द्वारा ही संचालित की जाती हैं।

आपदा प्रतिक्रिया और पुनर्वास : 

प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं से निपटने के लिए एक समन्वित सरकारी तंत्र की आवश्यकता होती है। इसमें पूर्व-आपदा तैयारी, त्वरित प्रतिक्रिया, बचाव अभियान और प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए योजनाएँ शामिल हैं।

न्याय प्रणाली का सुदृढ़ीकरण : 

प्रभावी सुरक्षा के लिए एक मजबूत और निष्पक्ष न्याय प्रणाली आवश्यक है। यह अपराधियों को दंडित करती है, पीड़ितों को न्याय दिलाती है और कानून के शासन को बनाए रखती है, जिससे समाज में विश्वास और व्यवस्था बनी रहती है। संक्षेप में, सुरक्षा केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक अवधारणा है जो समाज के हर स्तर पर शांति, व्यवस्था और विश्वास को सुनिश्चित करती है। सरकार द्वारा मजबूत सुरक्षा तंत्र का निर्माण और उसका कुशल संचालन ही एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकता है जो न केवल अपनी सीमाओं पर सुरक्षित हो, बल्कि अपने नागरिकों के लिए भी एक स्थिर और भयमुक्त वातावरण प्रदान करे, जिससे राष्ट्र प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सके।

अंतर-संबंध और सहक्रिया (Synergy): एक सशक्त राष्ट्र की एकीकृत नींव 

राष्ट्र की बुनियादी त्रयी सेवाएँ - शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा - केवल अलग-अलग स्तंभ नहीं हैं, बल्कि ये एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं और परस्पर निर्भर करती हैं। ये तीनों मिलकर एक सहक्रियात्मक (synergistic) प्रभाव पैदा करती हैं, जहाँ एक क्षेत्र में किया गया निवेश दूसरे क्षेत्रों को भी मजबूत करता है, जिससे राष्ट्र का समग्र विकास त्वरित होता है। यह एक जटिल तंत्र की तरह है जहाँ प्रत्येक पुर्जा दूसरे की कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है, और सभी के सुचारु संचालन से ही पूरी प्रणाली इष्टतम रूप से कार्य करती है। शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा का एक-दूसरे पर प्रभाव

इन तीनों सेवाओं के बीच का संबंध एक दुष्चक्र (vicious cycle) या सद्गुण चक्र (virtuous cycle) का निर्माण कर सकता है। सकारात्मक सहसंबंध कुछ इस प्रकार हैं:

 शिक्षित समाज :

शिक्षित समाज स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक होता है

शिक्षा लोगों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी को समझने, निवारक उपायों (जैसे स्वच्छता, पोषण, टीकाकरण) को अपनाने और स्वस्थ जीवन शैली चुनने में सक्षम बनाती है। एक शिक्षित व्यक्ति बीमारी के लक्षणों को जल्दी पहचान सकता है और समय पर चिकित्सा सहायता प्राप्त कर सकता है।

* स्वास्थ्य शिक्षा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो बीमारियों की रोकथाम और प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाती है।

* नतीजतन,एक शिक्षित आबादी में सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम बेहतर होते हैं, जिससे बीमारियों का बोझ कम होता है और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दबाव घटता है। 

* स्वास्थ्य कार्यबल सुरक्षा में बेहतर योगदान देता है।

* स्वास्थ्य एक व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक क्षमता को बनाए रखता है। एक स्वस्थ व्यक्ति अपनी नौकरी में अधिक उत्पादक होता है, चाहे वह किसी कारखाने में काम कर रहा हो या सुरक्षा बल में सेवा दे रहा हो। 

* स्वस्थ सैनिक,पुलिसकर्मी और आपातकालीन कर्मी अपनी ड्यूटी अधिक प्रभावी ढंग से निभा सकते हैं, जिससे आंतरिक और बाहरी सुरक्षा मजबूत होती है।

* महामारी या अन्य स्वास्थ्य संकटों के दौरान, एक स्वस्थ आबादी में लचीलापन अधिक होता है,जिससे सामाजिक व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने में मदद मिलती है।

* सुरक्षित वातावरण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करता है।

* एक सुरक्षित और स्थिर माहौल स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को बिना किसी व्यवधान के कार्य करने की अनुमति देता है। अशांत क्षेत्रों में,स्कूल बंद हो जाते हैं, शिक्षक अनुपस्थित रहते हैं, और छात्र शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।

* इसी तरह, स्वास्थ्य सुविधाओं - अस्पतालों, क्लीनिकों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों - को सुरक्षित वातावरण में संचालित करने के लिए शांति और व्यवस्था की आवश्यकता होती है। संघर्ष या उच्च अपराध दर वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्यकर्मी काम करने से कतराते हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच बाधित होती है।

* जब सुरक्षा सुनिश्चित होती है, तो सरकारी योजनाएँ और सेवाएँ (जैसे टीकाकरण अभियान या शैक्षिक आउटरीच) दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुँच पाती हैं। 

* एकीकृत नीति निर्माण और कार्यान्वयन की आवश्यकता इन अंतर-संबंधों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को अलग-थलग साइलो (silos) में नहीं देखा जा सकता। इनके लिए एकीकृत नीति निर्माण और कार्यान्वयन की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए। 

समग्र मानव विकास दृष्टिकोण :

सरकार को इन तीनों क्षेत्रों के लिए एक समग्र रणनीति अपनानी चाहिए जो उनके परस्पर प्रभावों को पहचानती हो।

क्रॉस-सेक्टरल सहयोग :

शिक्षा मंत्रालय को स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर काम करना चाहिए, जबकि गृह मंत्रालय को स्कूलों और अस्पतालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए।

* संसाधनों का कुशल आवंटन: यह समझना महत्वपूर्ण है कि शिक्षा में निवेश अंतत स्वास्थ्य परिणामों में सुधार कर सकता है, और स्वास्थ्य में निवेश सुरक्षा बलों की प्रभावशीलता बढ़ा सकता है। इसलिए, संसाधनों का आवंटन इस सहक्रियात्मक प्रभाव को अधिकतम करने के लिए किया जाना चाहिए। 

* दीर्घकालिक विकास के लिए ये तीनों सेवाएँ कैसे आवश्यक हैं। दीर्घकालिक और सतत विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा अनिवार्य हैं क्योंकि मानव पूंजी का निर्माण: शिक्षा और स्वास्थ्य मिलकर एक मजबूत और कुशल मानव पूंजी का निर्माण करते हैं, जो किसी भी राष्ट्र के आर्थिक इंजन का मूल है।

* स्थिरता और विकास का चक्र: सुरक्षा स्थिरता लाती है, जो निवेश और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती है। यह विकास शिक्षा और स्वास्थ्य में और अधिक निवेश को सक्षम बनाता है, जिससे मानव पूंजी में और सुधार होता है, जो फिर से स्थिरता और विकास को बढ़ावा देता है। यह एक सकारात्मक फीडबैक लूप है।

* राष्ट्र-निर्माण : ये तीनों सेवाएँ नागरिकों में अपने राष्ट्र के प्रति अपनत्व और जिम्मेदारी की भावना पैदा करती हैं। एक शिक्षित, स्वस्थ और सुरक्षित नागरिक अपने राष्ट्र के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेता है। संक्षेप में, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा की त्रयी एक राष्ट्र के हृदय, मस्तिष्क और भुजाओं के समान है। इन तीनों का सामंजस्यपूर्ण विकास और संचालन ही एक ऐसे सशक्त और विकसित भारत की आधारशिला है जो न केवल अपनी वर्तमान चुनौतियों का सामना कर सके, बल्कि भविष्य की आकांक्षाओं को भी पूरा कर सके।

सरकारी संरक्षण और संचालन के लाभ :

शिक्षा,स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं का सरकारी संरक्षण और संचालन केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करता है कि ये महत्वपूर्ण सेवाएँ सभी नागरिकों तक पहुँचें, न कि केवल उन लोगों तक जो उनके लिए भुगतान कर सकते हैं। जब सरकार इन क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाती है, तो इसके कई गहरे और दूरगामी लाभ होते हैं, जो सीधे तौर पर एक सशक्त और विकसित राष्ट्र के निर्माण में योगदान करते हैं।

समानता और समावेशिता सुनिश्चित करना : 

सरकार की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी नागरिक को उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, भौगोलिक स्थान, जाति, लिंग या धर्म के कारण इन बुनियादी सेवाओं से वंचित न किया जाए। 

* सार्वभौमिक पहुँच : निजी क्षेत्र अक्सर उन क्षेत्रों या समुदायों में सेवाएँ प्रदान करने से कतराता है जहाँ लाभ की संभावना कम होती है (जैसे ग्रामीण या दूरदराज के क्षेत्र)। सरकार का लक्ष्य मुनाफा कमाना नहीं होता, बल्कि हर नागरिक को समान अवसर प्रदान करना होता है। सरकारी स्कूल, अस्पताल और सुरक्षा बल देश के कोने-कोने तक पहुँच सुनिश्चित करते हैं।

* कमजोर वर्गों का उत्थान: समाज के आर्थिक रूप से कमजोर और हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए, सरकारी सहायता (जैसे मुफ्त शिक्षा, सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ, कानूनी सहायता) जीवन रेखा का काम करती है। यह उन्हें मुख्यधारा में आने और अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने का अवसर देती है, जिससे सामाजिक विषमताएँ कम होती हैं।

* दीर्घकालिक योजना और स्थिरता: बाजार की शक्तियाँ अल्पकालिक लाभ और तात्कालिक मांगों पर केंद्रित होती हैं। जबकि, राष्ट्र के निर्माण के लिए दीर्घकालिक दृष्टि और स्थिरता की आवश्यकता होती है, जो केवल सरकार ही प्रदान कर सकती है।

* योजनाबद्ध विकास : सरकारें राष्ट्रीय शिक्षा नीति, स्वास्थ्य नीतियाँ और सुरक्षा रणनीतियाँ तैयार करती हैं जो दशकों तक के लक्ष्यों को निर्धारित करती हैं। ये नीतियाँ व्यापक अनुसंधान और विशेषज्ञ परामर्श पर आधारित होती हैं, जिससे एक सुसंगत और सतत विकास पथ सुनिश्चित होता है।

बुनियादी ढाँचा निवेश :

शिक्षा (स्कूल, विश्वविद्यालय), स्वास्थ्य (अस्पताल, क्लीनिक) और सुरक्षा (पुलिस स्टेशन, सैन्य अड्डे) के लिए बड़े पैमाने पर और दीर्घकालिक बुनियादी ढाँचे के निवेश की आवश्यकता होती है। यह निवेश अक्सर निजी क्षेत्र के लिए लाभदायक नहीं होता और इसमें दशकों लग सकते हैं, जिसे केवल सरकार ही वहन कर सकती है।

* संकट प्रबंधन और लचीलापन : सरकारें भविष्य के संकटों (जैसे महामारियों या प्राकृतिक आपदाओं) की तैयारी के लिए योजना बनाती हैं और आवश्यक संसाधनों का निर्माण करती हैं। निजी संस्थाएँ अक्सर ऐसे बड़े पैमाने के संकटों से निपटने में सक्षम नहीं होतीं।

* जवाबदेही और पारदर्शिता (आदर्श रूप में) : हालांकि व्यवहार में हमेशा ऐसा नहीं होता, सैद्धांतिक रूप से सरकारी संस्थान जवाबदेही और पारदर्शिता के उच्च मानकों के तहत काम करते हैं, क्योंकि वे जनता के पैसे से चलते हैं और सीधे जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं।

* जनता का नियंत्रण: लोकतांत्रिक व्यवस्था में,सरकारें सीधे मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होती हैं। नागरिकों के पास चुनावों के माध्यम से या विरोध प्रदर्शनों के ज़रिए सरकार की नीतियों और प्रदर्शन को प्रभावित करने की शक्ति होती है।

नियामक ढाँचा : 

सरकारें इन सेवाओं के लिए नियामक ढाँचा स्थापित करती हैं, जिससे गुणवत्ता,सुरक्षा और नैतिक मानकों का पालन सुनिश्चित होता है। वे विभिन्न कानूनों और नियमों के माध्यम से निजी प्रदाताओं पर भी नियंत्रण रखती हैं, जिससे उनका शोषण रोका जा सके।

* सूचना का अधिकार: सरकारी संस्थाएँ अक्सर सूचना के अधिकार (RTI) जैसे कानूनों के दायरे में आती हैं, जिससे नागरिक उनके कामकाज के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

* राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को निर्धारित करना: सरकार के पास राष्ट्र की समग्र भलाई को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकताओं को निर्धारित करने की क्षमता होती है।

* सार्वजनिक हित को प्राथमिकता : निजी क्षेत्र व्यक्तिगत या कॉर्पोरेट हितों से प्रेरित होता है, जबकि सरकार का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक हित और राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करना होता है। यह सुनिश्चित करती है कि संसाधन उन क्षेत्रों में निर्देशित किए जाएं जिनकी देश को सबसे ज्यादा जरूरत है।

* मानकीकरण और एकरूपता : सरकारें पूरे देश में शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा सेवाओं में एकरूपता और मानकीकरण सुनिश्चित करती हैं, जिससे गुणवत्ता बनी रहे और नागरिक कहीं भी समान स्तर की सेवा प्राप्त कर सकें। बाजार विफलताओं को संबोधित करना कई मामलों में, बाजार स्वयं ही कुशल या न्यायसंगत परिणाम देने में विफल रहता है, जिसे बाजार विफलता (Market Failure) कहा जाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा ऐसी सेवाएँ हैं जहाँ बाजार विफलताएँ आम हैं।

बाहरी कारक : 

शिक्षा और स्वास्थ्य के सकारात्मक बाहरी कारक होते हैं। उदाहरण के लिए, एक शिक्षित और स्वस्थ समाज पूरे समुदाय को लाभ पहुँचाता है, भले ही व्यक्ति ने अपनी शिक्षा या स्वास्थ्य पर कितना खर्च किया हो। निजी बाजार इन बाहरी कारकों को पर्याप्त रूप से महत्व नहीं देता।

* अपूर्ण जानकारी : स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में, मरीजों के पास अक्सर उपचार विकल्पों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती, जिससे निजी प्रदाता उनका शोषण कर सकते हैं। सरकार नियामक भूमिका निभाकर इसे रोकती है।

* सार्वजनिक वस्तुएँ : सुरक्षा एक शुद्ध सार्वजनिक वस्तु है, जिसका अर्थ है कि एक बार इसे प्रदान करने के बाद, किसी को भी इसके लाभों से बाहर नहीं किया जा सकता, और एक व्यक्ति के उपभोग से दूसरे के लिए इसकी उपलब्धता कम नहीं होती। ऐसी वस्तुओं के लिए निजी बाजार कुशल आवंटन प्रदान नहीं कर सकता।

संक्षेप में,सरकारी संरक्षण और संचालन ही एक ऐसा ढाँचा प्रदान करता है जहाँ शिक्षा,स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसी मौलिक सेवाएँ सभी नागरिकों के लिए समान रूप से सुलभ, उच्च गुणवत्ता वाली और सतत रूप से उपलब्ध हो पाती हैं। यह एक न्यायपूर्ण और सशक्त समाज की नींव है, जिसके बिना किसी भी राष्ट्र का समग्र और समावेशी विकास अधूरा रहेगा।

चुनौतियां और समाधान : एक सशक्त भारत के मार्ग में बाधाएं और उनका निवारण

शिक्षा,स्वास्थ्य और सुरक्षा के क्षेत्र में सरकारी संरक्षण और संचालन के महत्व को स्वीकार करना एक बात है, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से लागू करना कई चुनौतियों से भरा है। भारत जैसे विशाल और विविध देश में, इन बुनियादी सेवाओं को सार्वभौमिक और गुणवत्तापूर्ण बनाने के मार्ग में अनेक बाधाएं हैं। हालांकि, इन चुनौतियों को समझना और उनके लिए व्यवहार्य समाधान खोजना ही एक सशक्त और विकसित भारत के सपने को साकार करने की कुंजी है। चुनौतियां इन तीनों क्षेत्रों में मुख्य चुनौतियाँ अक्सर एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं:

* वित्तीय बाधाएं : पर्याप्त बजट आवंटन का अभाव 

* भारत का सार्वजनिक व्यय शिक्षा और स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में वैश्विक मानकों से काफी कम है।

* यह अपर्याप्त वित्तपोषण गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे, पर्याप्त मानव संसाधन (शिक्षक, डॉक्टर,पुलिसकर्मी) और आधुनिक उपकरणों की कमी की ओर ले जाता है।

*  राजस्व सृजन के स्रोत सीमित होना या उनका कुशल उपयोग न होना भी एक बड़ी चुनौती है।

* लालफीताशाही और भ्रष्टाचार

* सरकारी प्रणालियों में जटिल नौकरशाही प्रक्रियाएं और अनावश्यक कागजी कार्रवाई से दक्षता में कमी आती है और सेवाओं की डिलीवरी में देरी होती है।

* भ्रष्टाचार,चाहे वह फंड के दुरुपयोग के रूप में हो, आपूर्ति श्रृंखला में हो, या नियुक्तियों में हो, इन क्षेत्रों में प्रदान की जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता और पहुँच को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

* यह जनता के विश्वास को भी eroded करता है।

* राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी।

* दीर्घकालिक नीतियों और सुधारों को लागू करने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, विशेषकर जब वे अल्पकालिक चुनावी लाभ न दें।

* नीतियों का बार-बार बदलना या उनका अधूरा कार्यान्वयन प्रगति में बाधा डालता है।

* विभिन्न हित समूहों का दबाव भी सुधारों को मुश्किल बना देता है।

* क्षमता निर्माण और मानव संसाधन की कमी ।

शिक्षा: योग्य शिक्षकों की कमी, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में; शिक्षक प्रशिक्षण की गुणवत्ता; और शिक्षकों का निरंतर व्यावसायिक विकास।

स्वास्थ्य : डॉक्टरों,नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी विशेषकर विशेषज्ञ डॉक्टरों की। चिकित्सा पेशेवरों का असमान वितरण (शहरी-ग्रामीण) और बुनियादी स्वास्थ्य कर्मियों के प्रशिक्षण में कमी।

सुरक्षा : पुलिस कर्मियों की कमी, विशेषकर प्रति व्यक्ति अनुपात में, आधुनिक तकनीकों के लिए प्रशिक्षण का अभाव और पुलिस बलों का आधुनिकीकरण।

*  इन सभी क्षेत्रों में कुशल प्रबंधन और नेतृत्व क्षमता की भी कमी देखी जाती है।

* निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका का विनियमन

* जैसे-जैसे निजी स्कूल,अस्पताल और सुरक्षा एजेंसियां बढ़ रही हैं, उनकी फीस, गुणवत्ता और नैतिकता को विनियमित करना एक चुनौती है।

* सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाए रखना, ताकि निजी क्षेत्र सार्वजनिक सेवाओं का पूरक बने न कि प्रतिस्थापन, महत्वपूर्ण है।

* निजी क्षेत्र की अत्यधिक लाभ-उन्मुखता गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है और सेवाओं को आम आदमी की पहुँच से दूर कर सकती है

* डिजिटल डिवाइड और प्रौद्योगिकी का असमान उपयोग

* जबकि प्रौद्योगिकी इन क्षेत्रों में क्रांति ला सकती है (जैसे ऑनलाइन शिक्षा, टेलीमेडिसिन, स्मार्ट पुलिसिंग), भारत में डिजिटल डिवाइड (शहरी-ग्रामीण, अमीर-गरीब) एक बड़ी बाधा है।

* तकनीकी साक्षरता की कमी और बुनियादी ढांचे (इंटरनेट कनेक्टिविटी, बिजली) का अभाव इसके प्रभावी उपयोग को रोकता है।

* जनसंख्या का दबाव और असमान वितरण।

* बड़ी और बढ़ती जनसंख्या इन सेवाओं पर भारी दबाव डालती है।

* शहरी क्षेत्रों में सेवाओं का अधिक संकेंद्रण और ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी कमी असमान वितरण की समस्या को जन्म देती है।

समाधान : इन चुनौतियों का सामना करने के लिए बहुआयामी और समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

* सार्वजनिक व्यय में वृद्धि और राजस्व सृजन के नए तरीके

* शिक्षा और स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 6% खर्च करने के लक्ष्य को पूरा करना।

*  राजस्व सृजन के नए और प्रगतिशील तरीके अपनाना (जैसे संपत्ति कर, विशेष उपकर)।

* सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को एक नियंत्रित और जवाबदेह ढांचे के तहत बढ़ावा देना, ताकि निजी निवेश का लाभ उठाया जा सके।

* धन के कुशल उपयोग और रिसाव को रोकने के लिए सख्त वित्तीय प्रबंधन और ऑडिटिंग।

*  प्रशासनिक सुधार और ई-गवर्नेंस।

* सेवा डिलीवरी को सुव्यवस्थित करने के लिए प्रक्रियाओं का सरलीकरण और नौकरशाही की बाधाओं को दूर करना।

* भ्रष्टाचार को कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देना (जैसे ऑनलाइन आवेदन, डिजिटल भुगतान, डेटा का सार्वजनिक प्रकटीकरण)।

* शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करना और सिटिजन चार्टर को प्रभावी ढंग से लागू करना।

* जनभागीदारी और नागरिक समाज का सशक्तिकरण

* नीति निर्माण और कार्यान्वयन में नागरिकों, स्थानीय समुदायों और नागरिक समाज संगठनों को शामिल करना।

* निगरानी समितियों का गठन करना जो सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता और पहुँच पर नज़र रख सकें।

* जनजागरूकता अभियान चलाकर लोगों को उनके अधिकारों और उपलब्ध सेवाओं के बारे में शिक्षित करना।

* प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन और जवाबदेही तंत्र।

* शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा कर्मियों के लिए प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन (Performance-based Incentives) लागू करना।

* जवाबदेही तय करने के लिए स्पष्ट मैट्रिक्स और मूल्यांकन प्रणाली स्थापित करना।

* भ्रष्टाचार और कदाचार के लिए त्वरित और कठोर दंड सुनिश्चित करना।

*  नियमित ऑडिट और समीक्षा के माध्यम से दक्षता में सुधार।

* मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण।

* शिक्षक, डॉक्टर और पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता में सुधार।

* दूरदराज के क्षेत्रों में सेवा देने वाले पेशेवरों के लिए विशेष प्रोत्साहन और सुविधाएं।

* निरंतर व्यावसायिक विकास कार्यक्रमों (Continuous Professional Development) को अनिवार्य करना।

* तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास पर जोर देना ताकि उद्योगों की जरूरतों को पूरा किया जा सके।

*  प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग।

* डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश करना और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना।

* टेलीमेडिसिन, ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म (जैसे SWAYAM), और स्मार्ट पुलिसिंग समाधानों का व्यापक रूप से उपयोग करना।

* डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके सेवाओं की योजना बनाने और निगरानी करने में सुधार।

* नियमित नीतिगत समीक्षा और अनुकूलन।

*  बदलती परिस्थितियों और जरूरतों के अनुसार नीतियों की नियमित समीक्षा और उन्हें अनुकूलित करना।

* अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं (International Best Practices) से सीखना और उन्हें भारतीय संदर्भ में लागू करना।

इन चुनौतियों का समाधान करना एक सतत प्रक्रिया है जिसके लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति, सार्वजनिक-निजी सहयोग, सामुदायिक भागीदारी और एक प्रभावी शासन संरचना की आवश्यकता होगी। इन तीनों मूलभूत स्तंभों को मजबूत करके ही भारत वास्तव में एक सशक्त, न्यायपूर्ण और विकसित राष्ट्र बन सकता है, जो अपने सभी नागरिकों को एक गरिमापूर्ण और सुरक्षित जीवन प्रदान करे।

सशक्त और विकसित भारत का अविभाज्य आधार भारत के सशक्त और विकसित राष्ट्र बनने की यात्रा में, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा की त्रयी केवल सहायक स्तंभ नहीं, बल्कि इसकी अविभाज्य नींव है। जैसा कि हमने विस्तृत रूप से चर्चा की है, ये तीनों क्षेत्र न केवल व्यक्तिगत और सामाजिक प्रगति के लिए अनिवार्य हैं, बल्कि वे एक-दूसरे के पूरक भी हैं, जो एक सहक्रियात्मक (synergistic) प्रभाव पैदा करते हैं। एक शिक्षित समाज स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक होता है और राष्ट्रीय सुरक्षा में प्रभावी ढंग से योगदान कर सकता है; एक स्वस्थ आबादी अधिक उत्पादक होती है और शिक्षा व सुरक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करती है; और एक सुरक्षित वातावरण ही शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को अबाध रूप से कार्य करने की अनुमति देता है। यह अंतर्संबंध स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इनमें से किसी भी एक क्षेत्र की उपेक्षा समग्र राष्ट्रीय विकास को गंभीर रूप से बाधित कर सकती है।

यह निर्विवाद है कि इन बुनियादी सेवाओं का सरकारी संरक्षण और संचालन ही एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के निर्माण की कुंजी है। बाजार की शक्तियाँ, अपनी लाभ-केंद्रित प्रकृति के कारण, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी "सार्वजनिक वस्तुओं" तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने में प्रायः विफल रहती हैं, और सुरक्षा जैसे "शुद्ध सार्वजनिक वस्तु" को तो वे प्रदान कर ही नहीं सकतीं। सरकार की भूमिका समानता सुनिश्चित करने, गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने, दीर्घकालिक निवेश करने, कमजोर वर्गों को सहारा देने और बाजार विफलताओं को दूर करने के लिए अपरिहार्य है। यह जनता के प्रति जवाबदेही और पारदर्शिता का एक तंत्र भी प्रदान करती है, जो किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, इस आदर्श लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अपर्याप्त वित्तीय आवंटन, लालफीताशाही, भ्रष्टाचार, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, कुशल मानव संसाधन का अभाव, और डिजिटल व क्षेत्रीय असमानताएँ इस मार्ग की प्रमुख बाधाएँ हैं। इन चुनौतियों का समाधान केवल आंशिक प्रयासों से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए एक समग्र, दूरदर्शी और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सार्वजनिक व्यय में वृद्धि, प्रशासनिक सुधारों को लागू करना, ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देना, जनभागीदारी सुनिश्चित करना, और प्रदर्शन-आधारित जवाबदेही तंत्र स्थापित करना ही इन चुनौतियों से निपटने के प्रभावी तरीके हैं।

अंततः सशक्त और विकसित भारत का निर्माण केवल आर्थिक विकास या सैन्य शक्ति पर आधारित नहीं हो सकता। इसकी वास्तविक शक्ति उसके मानव पूंजी में निहित है—एक ऐसी आबादी जो सुशिक्षित, स्वस्थ और सुरक्षित महसूस करती हो। जब प्रत्येक भारतीय नागरिक को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलती है, उसे सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध होती हैं, और वह एक सुरक्षित वातावरण में रहता है, तभी वह अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर सकता है, नवाचार कर सकता है, और राष्ट्र के निर्माण में सक्रिय भागीदार बन सकता है। यह एक सतत यात्रा है जिसके लिए अथक प्रयास, राजनीतिक दृढ़ता और नागरिक समाज की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता होगी। सरकारी संरक्षण और संचालन के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को प्राथमिकता देना ही वह मूलमंत्र है जो भारत को एक आत्मनिर्भर, समृद्ध और वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करेगा, जहाँ प्रत्येक नागरिक गरिमा और अवसर के साथ जी सके।

लेखक - डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov

डॉ.भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा हैं।