✍️रवीन्द्र दूबे
तीर्थाटन और देशाटन के लिए भी समय निकालें
# समय केवल शरीर शुद्धि नहीं, आत्मशुद्धि का भी करें)
जीवन में भ्रमण करते रहना चाहिए। भ्रमण से भ्रम मिटता है। भ्रमण से संबंधित क्षेत्रों के रहन-सहन, आर्थिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों से अवगत होने का अवसर मिलता है। समय-समय पर तीर्थाटन भी करना चाहिए। इससे मन का भटकाव दूर होता है। सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। अलग-अलग सभ्यता और संस्कृत से साक्षात्कार होता है। उपरोक्त बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने ज्ञान-यज्ञ में प्रवचन करते हुए कहीं। श्री जीयर स्वामी ने कहा कि जीवन में समय और सुविधा के अनुसार तीर्थाटन एवं देशाटन अवश्य करना चाहिए। इससे मन का भ्रम और भटकाव मिटता है। जानकारी के ख्याल से भी श्रव्य से ज्यादा महत्व दृश्य को दिया जाता है। उन्होंने कहा कि गृहस्थ आश्रम में पति का दायित्व है कि अपनी धर्मपत्नी को तीर्थाटन करायें। कर्दम ऋषि की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वे अपनी पत्नी देवहूति को तीर्थाटन पर ले गये थे। गौतम बुद्ध जब भ्रमण में निकले तो दुनिया के कई सच्चाई से अवगत हो वैरागी हो गये भमण के फलस्वरूप भगवान बन गये।
प्रसंगवश स्वामी जी ने कहा कि जीवन में चार (संख्यात्मक) का विशेष महत्व है। पूरा जीवन चार चरणों में बाल्यावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में विभक्त है। चार सरोवर मानसरोवर, विन्दु सरोवर, पम्पा सरोवर और नारायण सरोवर हैं। चार धाम पूरब में जग्रनाथपुरी, पश्चिम में द्वारिका, उत्तर में बद्री नारायण और दक्षिण में रंगनाथ भगवान हैं। चार क्षेत्र भृगु क्षेत्र, हरिहर क्षेत्र, बराह क्षेत्र और कुरूक्षेत्र है। इसी तरह चार वेद, चार आश्रम, चार पुरूषार्थ और चार वर्ण आदि हैं। जीयर स्वामी ने कहा कि एक बार नारद जी संसार की स्थिति जानने के लिए भगवान के पास गये। उन्हें ध्यान में देख भ्रम में पड़ गये । नारद जी ने पूछा कि दुनिया के लोग आप का ध्यान करते हैं। आप किसका ध्यान कर रहे थे? भगवान ने कहा भक्तों का। नारद जी पूछे, आप से बड़ा कौन? भगवान ने कहा कि पृथ्वी। सभी कार्य इसी पर होता है। पृथ्वी से बड़ा शेष जी, जो पृथ्वी का भार लिए हैं। उनसे बड़े शंकर जी, जो शेष जी को अपने गले में धारण किये हैं। शंकर जी से बड़ा रावण, जो अंगूठे पर कैलास को उठा लिया। उससे बड़ा बालि, जो रावण को छः माह भुजा में दबाये रखा। उससे बड़े दशरथ नन्दन राम, जिन्होंने पलक झपकते बालिका वध कर दिया। उनसे बड़े भक्त हैं, जो अपने हृदय में भगवान को रखते हैं। जीयर स्वामी ने कहा कि बड़े लोगों का दायित्व है कि अपने समर्पित एवं आश्रित प्राणियों पर भगवान के समान कृपा रखें।