हिन्दुस्तान वार्ता।
जीवन मे हमें बहुत सारे लोगो से काम पड़ता है,
जैसे- मैकेनिक, कारपेंटर, इलेक्ट्रिशियन,प्लम्बर आदि सब हमारी समस्याओं का समाधान करते है। जो काम हम नही कर पाते, वो काम वे लोग करते हैं, बदले में मुँह मांगा मेहनताना लेते हैं। ऐसा ही एक काम है सुरक्षा कर्मी या सिक्युरिटी गार्ड का,एक सिक्युरिटी गार्ड,करीब 15000 रु. महीने लेता है,और हम खुशी से देते हैं। हर कारीगर को हम भरपूर धन देते हैं। सामान्यतः 2 या 3 साल सीख कर, कोई भी एक्सपर्ट कारीगर बन जाता है, और सामान्यतः उसे कोई खतरा भी नही होता।
लेकिन एक क्षेत्र और है जहां कुछ लोग काम कर रहे है, जिसे धर्मरक्षा का क्षेत्र कहते हैं।एक धर्म रक्षक दो- चार दिन में नही बनता, वर्षों लगते हैं, एक व्यक्ति को धर्मरक्षक बनने में, और इस मार्ग पर प्राण जाने का संकट तो तय होता है। लेकिन क्या हम इन धर्म रक्षकों को उनके कार्यो का सही मोल दे पाते हैं।
पिछले कई सालों से धर्म के लिए खड़े होने वाले धर्म रक्षक मारे जा रहे हैं।
कर्नाटक में प्रवीण नेट्टारू को मार दिया गया,लेकिन इन बलिदानियों के बलिदान का हम क्या मोल चुका रहे हैं।
फेसबुक पर श्रद्धांजलि 1 या 2 पोस्ट, व्हाट्सएप पर, कुछ पोस्ट, कॉपी पेस्ट या ज्यादा से ज्यादा उनकी फोटो को 2 दिन के लिए डीपी में लगा लेंगे और उसके बाद भूल जाएंगे।
फिर किसी दिन कोई धर्मयोद्धा बलिदान होगा, हम फिर जागेंगे।दो दिन सोशल मीडिया पर सक्रिय होंगे।
फिर अगले बलिदान होने तक,सो जाएंगे। वास्तव में सोशल मीडिया पर ये फोटो और पोस्ट डालना भी इसलिए आवश्यक है,कि हम खुद को जागृत बता सकें।
वास्तव में इस सब के पीछे संवेदना तो कब की मर चुकी है।
सोचना.. जिन धर्म योद्धाओं के बलिदान पर, सोशल मीडिया पर विधवा विलाप किया था।
क्या कभी उनके घर जाकर उनके परिवार की सुध ली है।
कभी हृदय पर हाथ रखकर अपनी आत्मा से पूछना, क्या इन बलिदानों का वास्तव में दुख होता है।
क्या किसी मौत पर आंसू निकलते है।
क्या किसी बलिदान के बाद भोजन गले के नीचे उतरना रुका।
या कभी किसी धर्मयोद्धा के मरने पर रात को नींद नहीं आई।
यदि ऐसा नहीं हुआ, तो सोशल मीडिया पर, ये गुस्सा केवल और केवल पाखंड है।
इसमे ना संवेदना है ना वेदना,यदि संवेदना होती तो प्रतिकार होगा। विधवा विलाप नहीं।
✍️स्वामी कृष्णदेवानंद सरस्वती।
अधिष्ठाता
सनातन गुरुकल भोपाल।
(निर्माणाधीन)
मो.9200058880