हिन्दुस्तान वार्ता।✍️ शाश्वत तिवारी
रावण संहिता (Ravan Sanhita) भारतीय पौराणिक साहित्य का एक ऐसा अद्भुत ग्रंथ है, जो लंका नरेश रावण के विद्वान, तांत्रिक और शिवभक्त स्वरूप को उजागर करता है। इसमें रावण के जीवन-दर्शन, ज्योतिष ज्ञान, तांत्रिक विद्या और शिव भक्ति का गूढ़ व विशद विवरण मिलता है। यह ग्रंथ उस सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ा है, जो रावण को केवल खलनायक नहीं, बल्कि एक प्रखर विद्वान और आस्थावान व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत करती है।
यूपी विधानसभा पुस्तकालय इस संदर्भ में एक दुर्लभ निधि को संजोए हुए है - रावण संहिता की हस्तलिखित प्रति। यह प्राचीन पांडुलिपि इस बात का प्रमाण है कि ग्रंथ की रचना उस युग में हुई, जब मुद्रण तकनीक उपलब्ध नहीं थी और ज्ञान हस्तलिखित स्वरूप में ही सहेजा जाता था।
यह दुर्लभ प्रति न केवल इस ग्रंथ की ऐतिहासिकता को सिद्ध करती है, बल्कि शोधार्थियों,इतिहासकारों और साहित्यप्रेमियों के लिए भी अत्यंत उपयोगी और प्रेरक स्रोत बनती है। यह पांडुलिपि भारतीय ज्ञान परंपरा की गहराई और विविधता को रेखांकित करती है।
यूपी विधानसभा पुस्तकालय आज भी शोध और अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल बना हुआ है,जहां ऐसी अनेक पांडुलिपियाँ, ग्रंथ और ऐतिहासिक दस्तावेज सुरक्षित हैं। यह पुस्तकालय वास्तव में एक जीवित धरोहर है, जो उत्तर भारत की साहित्यिक चेतना का दर्पण है।
- लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।