अखंड देशभक्ति और समाज सेवा का संदेश देता है शिवाजी महाराज का जीवन : शिव प्रकाश

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। 8 अक्टूबर,दिव्य प्रेम सेवा मिशन द्वारा आयोजित ‘जाड़ता राजा’ महा नाट्य के पांचवें दिन का उद्घाटन भव्य रूप से हुआ। दीप प्रज्वलन और मां तुलजा भवानी की आरती के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई।

मुख्य अतिथियों में भाजपा के राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री शिव प्रकाश, कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्य, पूर्व मंत्री संजीव बालियान, राष्ट्रीय संगठन मंत्री गंगा समग्र रामाशीष, विधायक मनीषा अनुरागी, पूर्व विधायक एवं प्रदेश महामंत्री राम प्रताप सिंह चौहान, भाजपा जिला अध्यक्ष प्रशांत पोनिया, महानगर अध्यक्ष राजकुमार गुप्ता, जिला पंचायत अध्यक्ष मथुरा किशन चौधरी, अलौकिक उपाध्याय, भाजपा जिलाध्यक्ष झांसी हेमंत परिहार, संस्थापक डॉ. आशीष गौतम, संजय चतुर्वेदी, सीए संजीव महेश्वरी, अभिनव मौर्य, आयोजन समिति संयोजक ललित शर्मा, पूर्व महानगर अध्यक्ष प्रमोद गुप्ता, श्याम भदोरिया, ब्रज प्रांत प्रचारक धर्मेंद्र, जिलाधिकारी अरविंद मल्लपा बंगारी, नगर आयुक्त अंकित खंडेलवाल प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। संचालन जगदीश सिंह चौहान ने किया। 

मुख्य अतिथि शिव प्रकाश ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 1630 में हुआ और उनका राज्याभिषेक 1674 में हुआ। माता जीजाबाई ने शिवाजी महाराज को बचपन से ही कर्तव्य, न्याय और समाज सेवा की शिक्षा दी। ऐसा कहा जाता है कि माता जीजाबाई के स्वप्न में वे स्वयं दुर्गा के रूप में शासन करतीं और घोड़े पर शत्रुओं का संघार करतीं। यह स्वप्न उनके संकल्प और नेतृत्व की झलक प्रस्तुत करता है।

उनके समय में हिंदू समाज में शासक बनने का स्वप्न देखने की अनुमति नहीं थी, लेकिन माता जीजाबाई ने शिवाजी महाराज को ऐसे आदर्शों से तैयार किया कि वे आने वाले समय में इस देश के राक्षसी सल्तनत का नाश कर सके। समर्थ गुरु रामदास के मार्गदर्शन में शिवाजी महाराज ने अपने मित्रों और सैनिकों के साथ हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की। उन्होंने उन समाजों के लोगों को साथ लिया जिन्हें आज हम पिछड़ा,दलित या जनजाति समाज कहते हैं। उनके दल की विशेषता यह थी कि वे कभी नहीं बिकते,रुकते नहीं और बलिदान के लिए सदैव तैयार रहते थे।

शिवाजी महाराज ने युद्ध कला, गुप्तचर व्यवस्था और नौसेना की स्थापना में अद्वितीय योगदान दिया। अफजल खान जैसे दुष्ट सेनापतियों को परास्त करना, कम संसाधन में बड़ी सेना को हराना और मुगल, पुर्तगाली व ब्रिटिश सेनाओं का सामना करना उनके अद्वितीय रणनीतिक कौशल का परिचायक है। उन्होंने न केवल युद्ध में विजय प्राप्त की बल्कि अपने राज्य में न्याय और कृषि को भी समृद्ध किया।

उनका शासन न्यायप्रिय था। उनके अधीन यदि कोई अन्याय करता, तो वे स्वयं दंड देने का काम करते। शिवाजी महाराज केवल सत्ता का उपभोग करने के लिए पैदा नहीं हुए थे, बल्कि उन्होंने देश और संस्कृति को एकत्रित करने, धर्म और समाज की सुरक्षा करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया।

मां तुलजा भवानी ने शिवाजी महाराज को खड्ग भेंट किया, जो उनके साहस और युद्ध कौशल का प्रतीक बना। शिवाजी महाराज ने अपने आदर्शों और दृष्टि के माध्यम से पूरे देश के समाज को जोड़ा, और यह संदेश दिया कि सच्चा नेतृत्व केवल सत्ता के लिए नहीं होता, बल्कि समाज की भलाई, धर्म और संस्कृति के लिए होना चाहिए।

आज हमें शिवाजी महाराज के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए—उनकी नीति, साहस, समाज सेवा और देशभक्ति के आदर्श हमें हमारे कर्तव्यों के प्रति सजग और सक्रिय बनाते हैं। यह मंचन युवाओं और समाज के लिए यही संदेश लेकर आया है।

कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्य ने कहा कि शिवाजी महाराज का व्यक्तित्व संपूर्ण व्यक्तित्व का आदर्श है, जिसमें देशभक्ति, साहस और महिलाओं के प्रति सम्मान का संदेश निहित है। आगरा मेयर के मेरे कार्यकाल में वर्ष 2001 के दौरान महा नाट्य का मंचन यहां हुआ था। मेरा सौभाग्य है कि पुनः शिवाजी महाराज की अमर गाथा आगरा में गूंज रही है।

पूर्व मंत्री संजीव बालियान ने इस नाट्य मंचन को समाज में सकारात्मक संदेश फैलाने और सेवा भावना को प्रेरित करने वाला बताया।

इन्होंने संभाली व्यवस्था :

पंकज पाठक, मनीष थापक, मोनू दुबे, उज्जवल चौहान, राहुल जोशी, आशीष पाराशर, पंकज कटारा, दीप विनायक पटेल, अवधेश पंडित भट्टे वाले, आशीष यादव पृथ्वी, गोविन्द दुबे, जितेंद्र सिंह रिंकू, धीरेन्द्र, प्रशांत खरे, ध्रुव गुप्ता आदि उपस्थित रहे।

वीरता की कथा,स्वराज का स्वप्न,‘जाणता राजा’ बना युगों को जोड़ने वाला मंच

छत्रपति शिवाजी महाराज की गाथा ने भक्ति,नीति और पराक्रम का अद्भुत समन्वय रचा :

 कलाकृति कन्वेंशन सेंटर में दिव्य प्रेम सेवा मिशन द्वारा प्रस्तुत ‘जाणता राजा’ महा नाट्य ने भारतीय इतिहास की उस गौरवगाथा को पुनर्जीवित किया जिसमें धर्म, नीति और राष्ट्रभक्ति का संगम झलकता है। मंच पर छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की झांकी ने स्वराज और आत्मगौरव की भावना को प्रभावशाली रूप में साकार किया।

बुधवार को पांचवें दिन की नाट्य प्रस्तुति में औरंगजेब के साम्राज्यिक वैभव के समक्ष शिवाजी महाराज की नीतिपूर्ण वीरता का प्रदर्शन दर्शकों के लिए भावनात्मक और प्रेरणादायक अनुभव रहा। शक्ति और साहस से परिपूर्ण उस दृश्य में, जब औरंगजेब प्रतिशोध से भरा होने पर भी शिवाजी महाराज के शौर्य के आगे नतमस्तक होता है, सभागार में तालियों की गूंज और श्रद्धा का मौन एक साथ उपस्थित रहा।

अभिनय,संवाद और साज-सज्जा का समन्वय :

कलाकारों के सशक्त संवाद,गंभीर अभिव्यक्ति और जीवंत प्रस्तुति ने हर दृश्य को इतिहास की सांसों से जोड़ दिया। युद्धभूमि, दरबार, और शिवकालीन समाज के दृश्य बारीकी से संयोजित किए गए। प्रकाश, ध्वनि और वस्त्राभूषण का उत्कृष्ट संयोजन दर्शकों को 17वीं शताब्दी की मराठा भूमि में ले गया।

दर्शकों की भावनात्मक सहभागिता :

खचाखक भरे परिसर में दर्शकों की उपस्थिति और उत्साह ने यह सिद्ध किया कि ‘जाणता राजा’ केवल एक मंचीय प्रस्तुति नहीं, बल्कि राष्ट्रगौरव की अनुभूति है। हर प्रसंग पर उमड़ता उत्साह और जयघोष यह दर्शाते रहे कि इतिहास जब मंच पर जीवंत होता है, तो वह पीढ़ियों को जोड़ता है।

सांस्कृतिक चेतना का पुनर्जागरण :

‘जाणता राजा’ महा नाट्य ने यह संदेश दिया कि शिवाजी महाराज का जीवन केवल युद्धों की कथा नहीं, बल्कि धर्म, नीति और स्वराज की आदर्श परंपरा है। यह प्रस्तुति भारतीय संस्कृति की उस अटूट ज्योति का प्रतीक है जो युगों से प्रज्वलित है और आगे भी मार्गदर्शन करती रहेगी।