ताजमहल शिवमंदिर ही है : संकलन : "गौसेवक" खोजी बाबा

 


🕉️🚩🕉️🚩🕉️🚩🕉️🚩🕉️🚩🕉️🚩

 ताजमहाल मुमताज की कब्र है, उसे बनाने में २२ वर्ष लगे। बीस सहस्र कर्मचारी लगे, इस प्रकार का झूठा इतिहास फैलाया जा रहा है। इसके विपरीत द्वार तथा अन्य अनेक चिन्हों से यह सिद्ध होता है कि ताजमहल शिव जी का मंदिर था। यहां बंद कर रखे २२ कक्ष यदि खोल दिए जाएं और उनकी कार्बन डेटिंग जांच की जाए, तो इसकी अनेक प्रमाणों से ताजमहल, तेजोमहालय अर्थात शिवमंदिर ही है, यह सिद्ध हो जाएगा। इस संदर्भ में मैंने आगरा के न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की है। इसकी प्रथम सुनवाई हो चुकी है। अगली सुनवाई १५ जुलाई को होनेवाली है। ताजमहल कब्र नहीं हो सकती; क्योंकि उसके नीचे से नदी बहती है और नदी के ऊपर कोई भी कब्र नहीं होती। ताजमहल में संगीत कक्ष है। इस्लाम को यदि संगीत मान्य नहीं, तो यहां कब्र कैसे होगी ? बुरहानपुर में मुमताज की कब्र है, यह शहाजहां ने भी स्वीकार किया है। यदि वहां कब्र है, तो ताजमहल में क्या है ? इस प्रकार के अनेक सबूत ताजमहल मंदिर है, यह सिद्ध करते हैं। आपके भाग में भी यदि कोई भी मस्जिद अथवा अन्य स्थान पर मंदिर है, यह आपको पता चले, तो आप भी तत्काल इसके संदर्भ में याचिका प्रविष्ट कर सकते हैं। 

जानिए ‘ताजमहल’ नहीं, हिंदुओं के तेजोमहालयका ८५० वर्ष पुराना सच्चा इतिहास --- 'ताजमहल' वास्तु मुसलमानों की नहीं, अपितु वह मूलतः हिंदुओं की है। वहां इससे पूर्र्व भगवान शिवजी का मंदिर था, यह इतिहास सूर्यप्रकाश के जितना ही स्पष्ट है। मुसलमानों ने इस वास्तुको ताजमहल बनाया। ताजमहल इससे पूर्र्व शिवालय होनेका प्रमाण पुरातत्व विभाग के अधिकारी, अन्य पुरातत्वतज्ञ, इतिहासके अभ्यासक तथा देशविदेश के तज्ञ बताते हैं। मुसलमान आक्रमणकारियों की दैनिकीमें (डायरी) भी उन्होंने कहा है कि ताजमहल हिंदुओं की वास्तु है। तब भी मुसलमान इस वास्तु पर अपना अधिकार जताते हैं। शिवालय के विषय में सरकार के पास सैकडों प्रमाण धूल खाते पडे हैं। सरकार इसपर कुछ नहीं करेगी। इसलिए अब अपनी हथियाई गई वास्तु वापस प्राप्त करने हेतु यथाशक्ति प्रयास करना ही हिंदुओं का धर्म कर्तव्य है। ऐसी वास्तुएं वापस प्राप्त करने हेतु एवं हिंदुओं की वास्तुओंकी रक्षाके लिए ‘हिंदु राष्ट्र’ अनिवार्य है ! मुसलमान आक्रमणकारियोंने भारतके केवल गांव एवं नगरों के ही नामों में परिवर्तन नहीं किया, अपितु वहां की विशाल वास्तुओं को नियंत्रणमें लेकर एवं उसमें मनचाहा परिवर्तन कर निस्संकोच रूप से मुसलमानों के नाम दिए। मूलतः मुसलमानों को इतनी विशाल एवं सुंदर वास्तु बनाने का ज्ञान ही नहीं था। परंतु हिंदुओं ने इस्लाम पंथ की स्थापना से पूर्व ही अजिंटा तथा वेरूल के साथ अनेक विशाल मंदिरों का निर्माण कार्य किया था। मुसलमान आक्रमणकारियों को केवल भारत की वास्तुकला के सुंदर नमुने उद्ध्वस्त करना इतना ही ज्ञात था। गजनी द्वारा अनेक बार उद्ध्वस्त श्री सोमनाथ मंदिर से लेकर तो आजकल में अफगानिस्तान में उद्ध्वस्त बामयान की विशाल बुद्धमूर्ति तक का इतिहास मुसलमान आक्रमणकारियों की विध्वंसक मानसिकता के प्रमाण है। अंग्रेज सरकार द्वारा भी निश्चित रूपसे विध्वंस ! मुसलमान आक्रमणकर्ताओेंके पश्चात आए अंग्रेज सरकार को भारतीय संस्कृति के विषयमें तनिक भी प्रेम न रहने के कारण उन्होंने मुसलमान आक्रमणकर्ताओं का ही अनुकरण किया। आक्रमणकर्ताओं की दैनिकी में ताजमहलके विषयमें सत्य ! आग्राह की ताजमहल वास्तु की भी कहानी इसी प्रकार की है। डॉ. राधेश्याम ब्रह्मचारी ने ताजमहल का तथाकथित निर्माता शहाजहाॅ के ही कार्यकालमें लिखे गए दस्तावेजों का संदर्भ लेकर ताजमहल का इतिहास तपास कर देखा है। अकबर के समान शहाजहान ने भी बादशहा नामा ऐतिहासिक अभिलेखमें अपना चरित्र एवं कार्यकाल का इतिहास लिखकर रखा था। अब्दुल हमीद लाहोरी ने अरेबिक भाषामें बादशाह नामा लिखा था, जो एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगाल ग्रंथालय में आज भी उपलब्ध है। इस बादशाह नामा के पृष्ठ क्रमांक ४०२ एवं ४०३ के भागमें ताजमहल वास्तु का इतिहास छिपा हुआ है। इस भागका स्वच्छंद भाषांतर आगे दिया है। 'शुक्रवार दिनांक १५ माह जमदिउलवल को शहाजहान की पत्नी मुमताजुल जामानिका पार्थिव बुरहानपुर से आग्रामें (उस समयका अकबराबाद) लाया गया। यहांके राजा मानसिंहके महल के रूपमें पहचाने जाने वाले अट्टालिका में गाडा गया। यह अट्टालिका राजा मानसिंह के नाती राजा जयसिंह के मालिकी की थी। उन्होंने यह अट्टालिका शहाजहान को देना स्वीकार किया। इसके स्थानपर राजा जयसिंह को शरीफाबाद की जहागिरी दी गई। यहां गाडे गए महारानी का विश्वको दर्शन न होने हेतु इस भवन का रूपांतर दर्गा में किया गया। मुमताजुुलकी मृत्यु ! शहाजहान की पत्नी का मूल नाम था अर्जुमंद बानू। वह १८ वर्षों तक शहाजहान की रानी थी। इस कालावधि में उसे १४ अपत्य हुए। बरहानपुर में अंतिम जजगी में उसकी मृत्यु हो गई। उसका शव वहीं पर अस्थायी रूप से गाडा गया। ताजमहल शिवालय होने का सरकारी प्रमाण ! ताजमहलसे ४ कि.मी. दूरी पर आग्रा नगर में बटेश्वर नामक बस्ती थी। वर्ष १९०० में पुरातन सर्वेक्षण विभाग के संचालक जनरल कनिंघम द्वारा किए गए उत्खनन में वहां संस्कृतमें ३४ श्लोक में मुंज बटेश्वर आदेश नामक पोथा पाया गया, जो लक्ष्मणपुरी के संग्रहालय में संरक्षित है। इसमें श्लोक क्रमांक २५, २६ एवं ३६ महत्त्वपूर्ण हैं। इनका स्वच्छंद भाषांतर आगे दिया है। 'राजाने एक संगमरवरी मंदिरका निर्माणकार्य किया। यह भगवान विष्णुका है। राजाने दूसरा शिवका संगमरवरी मंदिर का निर्माण कार्य किया। ' यह अभिलेख विक्रम संवत १२१२ माह आश्विन शुद्ध पंचमी, शुक्रवारको लिखा गया। (वर्तमान समयमें विक्रम संवत २०७० चालू है। अर्थात शिवालय का निर्माण कार्य कर लगभग ८५० वर्षों की कालावधि बीत गई है। ) (यह कालावधि लेख लिखनेके समयका अर्थात वर्ष १९०० के संदर्भके अनुसार है – शिवालयके प्रमाणको पुरातत्व शास्त्रज्ञों का समर्थन ! 

१. प्रख्यात पुरातत्व शास्त्रज्ञ डी.जे. कालेने भी उपरोक्त दस्तावेजशको समर्थन दिया है। उनके संशोधन के अनुसार राजा परमार्दी देवने २ विशाल संगमरवरी मंदिरों का निर्माण कार्य किया, जिसमें एक श्री विष्णुका तो दूसरा भगवान शिवजी का था। कुछ समय पश्चात मुसलमान आक्रमणकर्ताओं ने इन मंदिरों का पावित्र्य भंग किया। इस घटनासे भयभीत होकर एक व्यक्ति ने दस्तावेज को भूमि में गाडकर रखा होगा। मंदिरों की पवित्रता का भंग होने के कारण उनका धार्मिक उपयोग बंद हो गया। इसीलिए बादशहा नामा के लेखक अब्दुल हमीद लाहोरी ने मंदिरके स्थान पर महल ऐसा उल्लेख किया होगा। 

२. प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदार के अनुसार चंद्रात्रेय (चंदेल) राजा परमार्दि देव का दूसरा नाम था परमल एवं उसके राज्य का नाम था बुंदेलखंड। आज आग्रा में दो संगमरवरी प्रासाद हैं, जिसमें एक नूरजहांके पिताकी समाधि (श्रीविष्णु मंदिर) है एवं दूसरा (शिवमंदिर) ताजमहल है। ताजमहल हिंदुओं का शिवालय होनेके और भी स्पष्ट प्रमाण ! प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदार के मत का समर्थन करने वाले प्रमाण आगे दिए हैं। 

१. ताजमहलके प्रमुख गुंबजके कलश पर त्रिशूल है, जो शिव शस्त्रके रूप में प्रचलित है। 

२. मुख्य गुंबज के उपर के छत पर एक संकल लटक रही है। वर्तमान में इस संकल का कोई उपयोग नहीं होता; परंतु मुसलमानों के आक्रमण से पूर्व इस संकल को एक पात्र लगाया जाता था, जिसके माध्यम से शिवलिंग पर अभिषेक होता था। 

३. अंदर ही २ मंजिलशका ताजमहल है। वास्तव समाधि एवं रिक्त समाधि नीचे की मंजिल पर है, जबकि २ रिक्त कबरें प्रथम मंजिल पर हैं। २ मंजिल वाले शिवालय उज्जैन एवं अन्य स्थान पर भी पाए जाते हैं।

४. मुसलमानों की किसी भी वास्तु में परिक्रमा मार्ग नहीं रहता; परंतु ताजमहल में परिक्रमा मार्ग उपलब्ध है। 

५. फ्रांस देशीय प्रवासी तावेर्नियार ने लिखकर रखा है कि इस मंदिरव के परिसर में बाजार भरता था। ऐसी प्रथा केवल हिंदु मंदिरों में ही पाई जाती है। मुसलमानों के प्रार्थना स्थलों में ऐसे बाजार नहीं भरते। ताजमहल शिवालय होनेकी बात आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगद्वारा भी सिद्ध वर्ष १९७३ में न्यूयार्क के प्रैट संस्थाके प्राध्यापक मर्विन मिल्स द्वारा ताजमहल के दक्षिण में स्थित लकडी के दरवाजे का एक टुकडा अमेरिका में ले जाया गया। उसे ब्रुकलिन महाविद्यालय के संचालक डॉ. विलियम्स को देकर उस टुकडे की आयु कार्बन - १४ प्रयोग पद्धति से सिद्ध करने को कहा गया। उस समय वह लकडा ६१० वर्ष (अल्प-अधिक ३९ वर्ष) आयु का निष्पन्न हुआ। इस प्रकार से ताजमहल वास्तु शहाजहान से पूर्व कितने वर्षोंसे अस्तित्व में थी यह सिद्ध होता है। शिवालय (अर्थात तेजोमहालय) ८४८ वर्ष पुराना ! यहां के मंदिर में स्थित शिवलिंग को 'तेजोलिंग' एवं मंदिरको तेजोमहालय कहा जाता था। यह भगवान शिवका मंदिर अग्रेश्वर नाम से प्रसिद्ध था। इससे ही इस नगर को आग्रा नाम पडा। मुंज बटेश्वर आदेश के अनुसार यह मंदिर ८४८ वर्ष पुराना है। इसका ३५० वां स्मृतिदिन मनाना अत्यंत हास्यजनक है। अधिक जानकारी के लिये (तेजो महालय शिव मंदिर Tejo Mahalaya Shiv mandir इस नाम से GOOGLE पे सर्च करें -----

 ऐसा क्यों हुआ कि हम हिंदुत्व का दंभ भरते रहे और ईसाई बढ़ते चले गये ? ऐसा क्यों हुआ कि हिन्दू मुस्लिम आपस में लड़ते रहे और उत्तरपूर्व राज्य ईसाई धर्म अपनाने लगे ? यदि गहनता से चिंतन किया जाए, तो ईसाई धर्म किसी की निंदा नहीं करता। वह माँसाहारियों को भी आकर्षित करता है और शाकाहारियों को भी। वे किसी से कोई भेदभाव नहीं रखते। वे हिंसा का प्रयोग नहीं कर रहे और उनके चर्च अपनी आय को जन कल्याण में खर्च करते हैं। वे गरीबों को स्कूल और पुस्तकें उपलब्ध करवाते हैं, , , , और यह सब मैंने स्वयं देखा है, सुनी सुनाई बातें नहीं बता रहा। लेकिन हिन्दू मुस्लिम के धार्मिक स्थल राजनीति में व्यस्त हैं। वे एक दूसरे को मिटाने के सपने देख रहें हैं। न अपने लोगों के हित के लिए कोई कार्य कर रहें है और न ही किसी और के लिए। मंदिरों में चढ़ने वाले चढ़ावे या तो पण्डे पुरोहितों के काम आ रहें हैं या फिर सरकार के। जनता को कोई लाभ पहुँचा पाने में असमर्थ हो चुके हैं इनके धार्मिक स्थल। मदरसे सरकार पर निर्भर हो गये हैं और संस्कृत विद्यालयों का तो हाल ही बुरा है और वह भी तब जब टनों के हिसाब से सोना भरा पड़ा है मंदिरों के गोदामों और बैंक अकाउंट में। किसी को चिंता नहीं है किसी किसान की और न ही चिंता है आदिवासिओं की। जबकि मिशनरी ऐसे स्थलों पर तुरंत पहुँच जाते हैं सहायता के लिए और उनका विनम्र व्यवहार ग्रामीणों और आदिवासियों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए आकर्षित कर लेता है। जबकि हमारा मूल भारतीय हिन्दू धर्म सभी को समान भाव से देखता था लेकिन पंडितों और आर्यसमाजियों ने मांसाहारियों और अन्य मतावलंबियों के प्रति घृणा का प्रचार करने लगे। परिणाम यह हुआ कि जो पहाड़ी अंचलों के हिन्दू थे और माँसाहार करते थे, वे सभी हिन्दू धर्म से विमुख होने लगे। क्योंकि हिन्दू होने का उन्हें कोई लाभ नहीं था। विपत्ति में कोई हिन्दू संगठन उनकी सहायता नहीं करता है और न ही उनके उत्थान के लिए कोई योजना ही लाता है। मुस्लिम धर्म तो केवल जनसंख्या बढ़ाने पर ही जोर देते हैं न कि विकास में सहयोगी होने में। आज भारत विदेशियों का मोहताज हो गया केवल खोखले आदर्शों के कारण जो न खुद का कल्याण कर पा रहें हैं और न ही दूसरों का। केवल एक दूसरे की निंदा करने, दंगा करने और राजनीति करने में व्यस्त हैं। न तो अपने धर्मों की कमियों को दूर करने का कोई प्रयोजन कर रहें हैं और न ही किसी के विकास का।

                   - "गौसेवक" पं. मदन मोहन रावत
                               "खोजी बाबा"

              🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻