जीवन-ऊर्जा का कुंड : संकलन "गौसेवक" खोजी बाबा

जिस जगह जीवन की ऊर्जा इकट्ठी है, वह जननेंद्रिय के पास कुंड की भांति है। इसलिए उस ऊर्जा का नाम कुंडलिनी पड़ गया, जैसे कोई पानी का छोटा सा कुंड। और इसलिए भी उस ऊर्जा का नाम कुंडलिनी पड़ गया कि जैसे कोई सांप कुंडल मारकर सो गया हो। सोए हुए सांप को कभी देखा हो, कुंडल पर कुंडल मारकर फन को रखकर सोया हुआ है। लेकिन सोए हुए सांप को जरा छेड़ दो, फन ऊपर उठ जाता है, कुंडल टूट जाते हैं। इसलिए भी उसे कुंडलिनी नाम मिल गया कि हमारे ठीक सेक्स सेंटर के पास हमारे जीवन की ऊर्जा का कुंड है--बीज, सीड है, जहां से सब फैलता है।


यह उपयुक्त होगा खयाल में ले लेना कि यौन से, काम से, सेक्स से जो थोड़ा सा सुख मिलता है, वह सुख भी यौन का सुख नहीं है, वह सुख भी यौन के साथ वह जो कुंड है हमारी जीवन-ऊर्जा का, उसमें आए हुए कंपन का सुख है। थोड़ा सा वहां सोया सांप हिल जाता है। और उसी सुख को हम सारे जीवन का सुख मान लेते हैं। जब वह पूरा सांप जागता है और उसका फन पूरे व्यक्तित्व को पार करके मस्तिष्क तक पहुंच जाता है, तब जो हमें मिलता है, उसका हमें कुछ भी पता नहीं।


हम जीवन की पहली ही सीढ़ी पर जीते हैं। बड़ी सीढ़ी है जो परमात्मा तक जाती है। वह जो हमारे भीतर तीन फीट या दो फीट का फासला है, वह फासला एक अर्थ में बहुत बड़ा है; वह प्रकृति से परमात्मा तक का फासला है, वह पदार्थ से आत्मा तक का फासला है; वह निद्रा से जागरण तक का फासला है, वह मृत्यु से अमृत तक का फासला है। वह बडा फासला भी है। ऐसे छोटा फासला भी है। हमारे भीतर हम यात्रा कर सकते हैं।


ऊर्जा जागरण से आत्मक्रांति


यह जो ऊर्जा हमारे भीतर सोई पड़ी है, अगर इसे जगाना हो, तो सांप को छेड़ने से कम खतरनाक काम नहीं है। बल्कि सांप को छेड़ना बहुत खतरनाक नहीं है। इसलिए खतरनाक नहीं है कि एक तो सौ में से सत्तानबे सांपों में कोई जहर नहीं होता। तो सौ में से सत्तानबे सांप तो आप मजे से छेड़ सकते हैं, उनमें कुछ होता ही नहीं। और अगर कभी उनके काटने से कोई मरता है तो सांप के काटने से नहीं मरता, सांप ने काटा है, इस खयाल से मरता है; क्योंकि उनमें तो जहर होता नहीं। सत्तानबे प्रतिशत सांप तो किसी को मारते नहीं। हालांकि बहुत लोग मरते हैं, उनके काटने से भी मरते हैं; वे सिर्फ खयाल से मरते हैं कि सांप ने काटा, अब मरना ही पड़ेगा। और जब खयाल पकड़ लेता है तो घटना घट जाती है।


फिर जिन सांपों में जहर है उनको छेड़ना भी बहुत खतरनाक नहीं है, क्योंकि ज्यादा से ज्यादा वे आपके शरीर को छीन सकते हैं। लेकिन जिस कुंडलिनी शक्ति की मैं बात कर रहा हूं उसको छेड़ना बहुत खतरनाक है; उससे ज्यादा खतरनाक कोई बात ही नहीं है, उससे बड़ा कोई डेंजर ही नहीं है। खतरा क्या है? वह भी एक तरह की मृत्यु है। जब आपके भीतर की ऊर्जा जगती है तो आप तो मर जाएंगे जो आप जगने के पहले थे और आपके भीतर एक बिलकुल नये व्यक्ति का जन्म होगा जो आप कभी भी नहीं थे। यही भय लोगों को धार्मिक बनने से रोकता है। वही भय--जो बीज अगर डर जाए तो बीज रह जाए। अब बीज के लिए सबसे बडा खतरा है जमीन में गिरना, खाद पाना, पानी पाना। सबसे बड़ा खतरा है, क्योंकि बीज मरेगा। अंडे के लिए सबसे बड़ा खतरा यही है कि पक्षी बड़ा हो भीतर और उड़े, तोड़ दे अंडे को। अंडा तो मरेगा।


हम भी किसी के जन्म की पूर्व अवस्था हैं। हम भी एक अंडे की तरह हैं, जिससे किसी का जन्म हो सकता है। लेकिन हमने अंडे को ही सब कुछ मान रखा है। अब हम अंडे को सम्हाले बैठे हैं।


यह शक्ति उठेगी तो आप तो जाएंगे, आप के बचने का कोई उपाय नहीं। और अगर आप डरे, तो जैसा कबीर ने कहा है, कबीर के बड़े...दो पंक्तियां में उन्होंने बड़ी बढ़िया बात कही है। कबीर ने कहा है 


जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ । 

मैं बौरी खोजने गई, रही किनारे बैठ ।।


कोई पास बैठा था, उसने कबीर से कहा, आप किनारे क्यों बैठे रहे? कबीर कहते हैं, मैं पागल खोजने गया, किनारे ही बैठ गया। किसी ने पूछा, आप बैठ क्यों गए किनारे? तो कबीर ने कहा :


जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ ।

मैं बौरी डूबन डरी, रही किनारे बैठ ।। 


मैं डर गई डूबने से, इसलिए किनारे बैठ गई। 

और जिन्होंने खोजा उन्होंने तो गहरे जाकर खोजा। 


डूबने की तैयारी चाहिए, मिटने की तैयारी चाहिए। एक शब्द में कहें--शब्द बहुत अच्छा नहीं--मरने की हयात चाहिए। और जो डर जाएगा डूबने से वह तो बच तो जाएगा, लेकिन अंडा ही बचेगा, पक्षी नहीं, जो आकाश में उड़ सके। जो डूबने से डरेगा वह बच तो जाएगा, लेकिन बीज ही बचेगा, वृक्ष नहीं, जिसके नीचे हजारों लोग छाया में विश्राम कर सके। और बीज की तरह बचना कोई बचना है? बीज की तरह बचने से ज्यादा मरना और क्या होगा!


इसलिए बहुत खतरा है। खतरा यह है कि हमारा जो व्यक्तित्व कल तक था वह अब नहीं होगा; अगर ऊर्जा जागेगी तो हम पूरे बदल जाएंगे--नये केंद्र जाग्रत होंगे, नया व्यक्तित्व उठेगा, नया अनुभव होगा, नया सब हो जाएगा। नये होने की तैयारी हो तो पुराने को जरा छोड़ने की हिम्मत करना। और पुराना हमें इतने जोर से पकड़े हुए है, चारों तरफ से कसे हुए है जंजीरों की तरह बांधे हुए है कि वह ऊर्जा नहीं उठ पाती। 


परमात्मा की यात्रा पर जाना निश्चित ही असुरक्षा की यात्रा है, इनसिक्योरिटी की। लेकिन जीवन के, सौंदर्य के सभी फूल असुरक्षा में ही खिलते हैं।


ओशो, यात्रा कुंडलिनी--जिन खोजा तिन पाइयां


                   - "गौसेवक" पं. मदन मोहन रावत

                                       "खोजी बाबा"