राजा नाहर सिंह

 


राजा नाहर सिंह


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 हम बात कर रहे हैं हरियाणा के उस राजा की जिसने अंग्रेजों के खून से बल्लभगढ के तालाब का रंग लाल कर दिया था।

जिसने अंग्रेजों को हराकर अपने आस पास के क्षेत्र को आजाद कर लिया था।

वह राजा जिसने शिव मंदिर में अंग्रेजों को देश से बाहर करने की कसम खाई थी।

वह राजा कोई और नहीं बल्कि हरियाणा के बल्लभगढ जाट रियासत के राजा नाहर सिंह थे जिनके नाम पर कुछ दिन पहले ही बल्लभगढ में राजा नाहर सिंह मेट्रो स्टेशन का उद्घाटन किया गया था। इससे पहले उनके नाम पर एक इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम है शहर में एक द्वार है और बस स्टैंड का नाम भी उन्ही के नाम से हैं।
बल्लभगढ में उनका महल किला हवेलियां व अन्य चीजें  आज भी शान से खड़ी उसकी वीरता की गवाही दे रही है।

राजा नाहर सिंह ने 1857 की क्रांति में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया था उसी वीरता के बल पर आज उन्हें शेर ए हरियाणा, आयरन गेट ऑफ दिल्ली और 1857 के सिरमौर जैसे अलंकारों से सुसज्जित किया जाता है।

राजा नाहर सिंह ने 1857 की क्रांति को जगाने के लिए देश भर के राजाओ की मीटिंग में हिस्सा लिया बहुत से राजाओ को क्रांति में शामिल होने के लिए उकसाया।

जब 1857 कि क्रांति के लिए नेतृत्व की मांग की जाने लगी तो सबसे आगे उन्ही का नाम था परन्तु मुस्लिम क्रंक्तिकारियो को इस मुहिम में जोड़ने के लिए बहादुर शाह जफर का नाम आगे किया गया। हालांकि जफर और राजा नाहर सिंह में बहुत कम बनती थी उसके बावजूद भी उन्होंने देश के लिए अपने मतभेद भुलाकर क्रांतिकारियों के निर्णय का सम्मान किया।

वे देश के एकमात्र ऐसे राजा थे जिनकी रियासत सुरक्षित होने कर बावजूद में 1857 कई क्रांति में भाग लिया था।

मीटिंग में 1857 की क्रांति का दिनांक फिक्स कर दिया गया उन्हके दिल्ली का कार्यभार सौंपा गया।

परन्तु 10 मई को ही क्रांतिकारी सैनिक मंगल पांडे की फांसी के साथ ही क्रांति समय से पहले भड़क उठी।
उस समय उनकी बेटी का विवाह तय हो चुका था। लेकिन उन्होंने इसकी जरा भी परवाह न करते हुए इस भव्य कार्यक्रम को रद्द कर दिया और राजकुमार की तलवार से ही अपनी बेटी का विवाह करवाकर क्रांति में कूद पड़े।

उनकी रियासत क्रांतिकारियों के लिए सबसे बड़ी व सुरक्षित स्थली थी जहां उनके लिए दरवाजे खुले थे क्योंकि उन्होंने अपने राज्य में अंग्रेजो के बिना अनुमति प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था जो उस समय का बहुत ही साहसिक कदम था। 
उन्होंने अपने राज्य में ऐलान कर दिया था कि कोई भी अंग्रेज विरोधी क्रांतिकारी राज्य में आये तो उसका खुले दिल से स्वागत किया जाए उसकी हर सम्भव सहायता की जाए उनको खाने का सामान व अन्य सामान बाजार से बिना पैसे दिया जाए उसका भुगतान राज्य के खजाने से कर दिया जाएगा।

मंगल पाँडें की रेजिमेंट के क्रांतिकारी भी उनके राज्य में घुस आए थे तो उन्होंने उन्हके शरण दी व उनमें से ज्यादातर ब्राह्मण थे इसलिए उन्हें उन्होंने हर गांव में में एक एक दो दो परिवार बसया दजिये ताकि अंग्रेज उन पर एक साथ हमला न कर सके और वे अपनी जीविका भी कमा सके। आज भी उन ब्राह्मणों के वंशज उन गांवों में बसे हुए हैं।

उन्होंने पलवल फरीदाबाद गुड़गांव के अंग्रेज अधिकृत क्षेत्रो पर हमला करके अंग्रेजो को मारकर भगया दिया।

उन्होंने क्रंक्तिकारियो के साथ मिलकर दिल्ली को आजाद करवा लिया व जफर को दिल्ली का कार्यभार सम्भालवा दिया।

राया मथुरा के क्रान्तिकारी देवी सिंह को उन्होंने राजा की पदवी दिलवाई।जगह जगह के क्रांतिकारियों को मदद दी।

राजा के समय दिल्ली पर अंग्रेजो ने हमले किये परन्तु उन्होंने उन्हें 134 दिन तक दिल्ली में नहीं घुसने दिया। अंग्रेज उन्हें आयरन वॉल ऑफ दिल्ली के नाम से पुकारने लगे थे और समझ गए थे के उनके होते दिल्ली पर कब्जा करना असम्भव है। अंत में जफर के एक साथी इलैहिबक्ष की गद्दारी से अंग्रेजो ने जफर को बंदी बना लिया बल्लभगढ पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण राजा को बल्लभगढ पहुंचना पड़ा।

वहां उन्होंने वहां पहुंचकर अंग्रेजो से इतना भयंकर युद्ध किया के पास स्तिथ एक तालाब का रतग अंग्रेजो के खून से लाल हो गया था।अंग्रेजो को मारकर हरा दिया । मगर उनकी अनुपस्तिथि में अंग्रेजो ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया।

अंग्रेजो ने राजा को बंदी बनाने के लिए छल का सहारा लिया। उन्होंने जफर के खास इलाहिबख्श व अन्य को भेजकर कहलवाया कि जफर ने उन्हें बुलाया है और वे अंग्रेजो से सन्धि करना चाहते हैं। जाट राजा छल को समझ न पाये। वे अपने कुछ 500 सैनिको के साथ दिल्ली पहुंचे। वहां अंग्रेजो ने रात्रि के अंधेरे में रास्ते में उन पर अचानक आक्रमण कर दिया सभी सकनिक वीरता से लड़ते हुए शहीद हो गए। राजा को बंदी बना लिया गया।

उनके कुछ नजदीकी अंग्रेज अधिकारियो ने उन्हें समझाने की कोशिश की के वे अंग्रेजो के आगे झुक जाए व उनसे दोस्ती कर ले तो उन्हें उनका राज वापिस कर दिया जाएगा और उन्हें सजा नहीं होगी।

लेकिन राजा ने साफ मना कर दिया कि वे ठावे देश के दुश्मनों के आगे नहीं झुकेंगे। उन्हें राज व अपने जीवन की तनिक भी परवाह नहीं एक नाहर सिंह मरेगा तो माँ भारती को आजाद करवाने वाले लाखों नाहर सिंह पैदा हो जाएंगे।

अंत में 9 जनवरी 1858 को राजा व उनके सेनापतियों को दिल्ली के चांदनी चौक पर सरेआम फांसी दे दी गई। उनके जनता के लिए अंतिम शब्द थे कि क्रांति की ये चिंगारी बुझने मत देना।

मां भारती के वीर सपूत शहीद राजा नाहर सिंह पर पूरे भारतवर्ष को हमेशा गर्व रहेगा।

✍ अखिलेश चौधरी  अध्यक्ष- डॉ .बी .आर .आ म्बेडकर वि .वि.शिक्षणेत्तर कर्मचारी संगठन ,आगरा