अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए ।
धरा की फसल का सम्मान होना चाहिए ।।
धूप में तन को तपाकर, ठंड से तन को कपाकर,
हर घड़ी मुश्किल से काटी,अंत में जब फसल बांटी,
फसल को फसल का उचित दाम मिलना चाहिए ।
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए ।।
पल पल मिट्टी को ताके, रात दिन पशुओं को हांके,
गर्मी, वर्षा, ठंड, पाले, हर घड़ी वह प्रभु को ताके,
कृषि के ठग दलालों को सावधान करना चाहिए।
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए।।
मृदु वचन, निश्चल मन, दर्पण दिखे संस्कार में,
तृप्त कर दे प्रेम से जो अतिथि के सत्कार में ।
कृषक के लिए मन में विनम्रभाव होना चाहिए ।
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए।।
अन्नो से जो रत्न बनाए, जड़ी बूटी का ज्ञान कराएं ,
प्रकृति के रंग सजाए,देश की संस्कृति बचाए,
प्रकृति रूपी इस सुमन का यशगान होना चाहिए ।
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए ।।
हर खुशी त्याग कर, तन मन समर्पण भाव रख,
भारत का अभिमान बन, लड़ता रहे चुपचाप जो ,
ऋषियों की तरह इनके तीर्थस्थान होने चाहिए ।
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए ।।
धरा की फसल का सम्मान होना चाहिए।।।
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साभार-जे एस तोमर