हम पिछले अंक में विभिन्न प्रकार के वेग के विषय पर चर्चा कर चुके हैं । आज आगे बढ़ते हैं ।
निद्रा:- नींद आने पर भी जो नहीं सोते उनको बार बार जम्भाई आती है, शरीर में हल्का हल्का दर्द रहता है, आलस्य, कफ, क्रोध, मन की अस्थिरता, मस्तिष्क जनित रोग, रक्तचाप, शिर में भारीपन, शरीर में वायु की वृद्धि, अजीर्ण, अग्निमान्द्य, वात रोग, दृष्टि शक्ति का ह्रास होने लगता है ।
आयुर्वेद के अनुसार निद्रा दो प्रकार के होते हैं ।
१) वैष्णवी निद्रा
२) पाप्मा निद्रा
वैष्णवी निद्रा को भूतधात्री भी कहा गया है क्योंकि यह भूत अर्थात प्राणियों का धात्री अर्थात माता के समान ही रक्षा करती हैं ।
जो निद्रा तमोगुण के अधिकता से अधिक मात्रा में नींद आने लगे तो तो पाप को जन्म देती हैं आयुर्वेद के अनुसार पाप को रोग संज्ञा दी गई है अतः यह रोग का मूल भी है; इसलिए इसे पापमूला भी कहागया है ।
यह विशेष रूप से उन व्यक्तियों को होता है जिनके मन में जीवन में प्रेम का आशय नहीं । आयुर्वेद कहता है कि प्रेम के आवेश में प्राणियों को सात्त्विक निद्रा आती हैं ।
आजकल तो यह समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है ; इस विषय पर फिर कभी विस्तार से चर्चा करेंगे ।
श्रम जनित साँस: - परिश्रम करने पर, पहाड़ चढ़ने पर, बार बार सीढ़ियों से आने जाने पर, संभोग के पश्चात, दौड़ धाम करने पर जो साँस का वेग बढ़ जाती है ऐसे वेग को रोकना नहीं चाहिए ।
जो इस वेग को रोकता है तो शरीर में कहीं न कहीं गाँठ हो जाती हैं, हृदय रोग, मस्तिष्क रोग, गले का रोग, फेफड़ों का रोग, साँस फूल जाना, थकान, छाती में पीड़ा, स्त्रियों के स्तनों में दर्द होना आदि रोग होते हैं ।
अतः इन सभी वेगो को ना रोके।
एक महत्वपूर्ण सूचना: -
आज वर्षा ऋतु का अन्तिम दिवस है; कल से धरती पर शरद ऋतु का प्रभूत्व होगा । शरद ऋतु में हमारी दिनचर्या कैसी होनी चाहिए; हम क्या खाएँ क्या न खाएँ क्या करें क्या न करें आदि के विषय पर कल चर्चा करेंगे ।
धन्यवाद
✍सत्यवान नायक।