जन्म दिवस /सप्ताह पर विशेष



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प्रो. सतीश धवन : इसरो की नींव बनाने वालो मे एक प्रमुख नाम।


        सतीश धवन (जन्म- 25 सितंबर, 1920; मृत्यु- 3 जनवरी,  2002) भारत के प्रसिद्ध रॉकेट वैज्ञानिक थे। देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊँचाईयों पर पहुँचाने में उनका बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान था। एक महान वैज्ञानिक होने के साथ-साथ प्रोफ़ेसर सतीश धवन एक बेहतरीन इनसान और कुशल शिक्षक भी थे। उन्हें भारतीय प्रतिभाओं पर बहुत भरोसा था। सतीश धवन को विक्रम साराभाई के बाद देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वे ‘इसरो’ के अध्यक्ष भी नियुक्त किये गए थे। प्रोफ़ेसर धवन ने “इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में कई सकारात्मक बदलाव किए थे। उन्होंने संस्थान में अपने देश के अलावा विदेशों से भी युवा प्रतिभाओं को शामिल किया। उन्होंने कई नए विभाग भी शुरू किए और छात्रों को विविध क्षेत्रों में शोध के लिए प्रेरित किया। सतीश धवन के प्रयासों से ही संचार उपग्रह इन्सैट, दूरसंवेदी उपग्रह आईआरएस और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी का सपना साकार हो पाया था।

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आज इसरो जिन उंचाईयो पर है उसके पीछे नीवं खड़ी करने मे जिन लोगो का योगदान रहा है उनमे सतीश धवन का नाम प्रमुख है।

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*जन्म तथा शिक्षा*

देश के महान वैज्ञानिकों में से एक सतीश धवन का जन्‍म श्रीनगर की खूबसूरत वादियों में 25 सितंबर 1920 को हुआ था। उन्‍होंने लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी से उन्‍होंने गणित और भौतिकी में स्नातक किया। इसके बाद उन्‍होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर किया और फिर अभियांत्रिकी मे स्नातक की पढ़ाई की।

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इसके बाद सतीश धवन अमेरिका गए जहां पर उन्‍होंने मिन्‍नेसोटा यूनिवर्सिटी से वैमानिक इंजीनियरिंग में एमएस किया। इसके बाद उन्‍होंने कैलिफोर्निया इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी से एयरोस्‍पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।

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वैज्ञानिक धवन के कई अहम प्रोजेक्‍ट्स में से एक है शॉक वेव्‍स का अध्‍ययन करना और यह सुपरसोनिक उड़ान (ध्वनि से तेज गति)के लिए काफी अहम बिंदु होता है। सतीश धवन को ‘फादर ऑफ एक्‍सपेरीमेंटल फ्लूइड डायनैमिक्‍स’ कहा जाता है। इसके तहत वातावरण में मौजूद गैसों के प्रवाह के बारे में पता लगाया जाता है।

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*शिक्षा का विवरण*

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गणित और भौतिक शास्त्र में 

बी.ए. – पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर

अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. – पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर

मेकानिकल इंजीनियरिंग में बी.ई, 1945 – मिनेसोटा विश्वविद्यालय, मिनियापोलिस-

वैमानिक इंजीनियरिंग में एमएस, 1947 – कैलिफ़ोर्निया इन्स्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलोजी

वैमानिक इंजीनियर की डिग्री, 1949

वैमानिकी और गणित में पी.एच.डी, 1951

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बैंगलुरु (IISc Bangalore)

सतीश धवन “इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बैंगलुरु” के लोकप्रिय प्राध्यापक थे। सतीश धवन ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में कई सकारात्मक बदलाव किए। उन्होंने संस्थान में अपने देश के अलावा विदेशों से भी युवा प्रतिभाशाली फैकल्टी सदस्यों को शामिल किया। उन्होंने कई नए विभाग भी शुरू किए और छात्रों को विविध क्षेत्रों में शोध के लिए प्रेरित किया। उन्हें इस संस्थान में पहला सुपरसोनिक विंड टनेल स्थापित करने का श्रेय है।

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उन्होने सिर्फ 42 वर्ष की आयु में आईआईएससी का जिम्‍मा संभाला था। प्रोफेसर धवन आईआईएससी में एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग विभाग में शामिल होकर इसका हिस्‍सा बने थे। इसके बाद चार वर्षों तक उन्‍होंने इस विभाग को बतौर प्रमुख अपनी सेवाएं दीं। सात वर्ष के अंतराल में यानी सिर्फ 42 वर्ष की आयु में वह इस इंस्‍टीट्यूट के निदेशक बन गए।

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देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊँचाई पर पहुँचाने में अहम भूमिका निभाने वाले महान वैज्ञानिक प्रो. सतीश धवन एक बेहतरीन इनसान और कुशल शिक्षक भी थे। उन्हें भारतीय प्रतिभाओं पर अपार भरोसा था। भारतीय प्रतिभाओं में उनके विश्वास को देखते हुए उनके साथ काम करने वाले लोगों तथा उनके छात्रों ने कठित मेहनत की, ताकि उनकी धारणा की पुष्टि हो सके।

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पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक बार धवन के सामने देश के स्‍पेस प्रोग्राम से जुड़ने के लिए जोरशोर से कहा। लेकिन धवन ने उन्‍हें विनम्रता के साथ मना कर दिया। धवन चाहते थे कि उन्‍हें इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) का निदेशक ही बने रहने दिया जाए। लेकिन बाद मे विक्रम साराभाई के निधन के बाद उन्हे ही यह जिम्मेदारी सौंपी गयी।

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सतीश धवन ही वह पहले वैज्ञानिक थे जिन्‍होंने देश की पहली सुपरसोनिक टनल बिल्डिंग के प्रमुख के तौर पर जिम्‍मा संभाला था। सुपरसोनिक विंड टनल जहां पर सुपरसोनिक स्‍पीड में किसी विमान की क्षमता को टेस्‍ट किया जाता है।

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प्रोफेसर धवन ही वह वैज्ञानिक थे जिन्‍होंने 60 के दशक में यात्री विमान एवरो यानी एचएस-748 की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को दूर किया था। उन्‍होंने उस समय तकनीक के लिहाज से सबसे उन्‍नत इस विमान से जुड़े एक जांच आयोग का नेतृत्‍व किया था।

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (ISRO-इसरो)

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इसरो की वेबसाईट पर प्रो धवन

इसरो की वेबसाईट पर प्रो धवन

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उन्होंने 1972 में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) के अध्यक्ष के रूप में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक ‘विक्रम साराभाई’ का स्थान ग्रहण किया था। वे अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग, भारत सरकार के सचिव भी रहे थे। उनकी नियुक्ति के बाद के दशक में उन्होंने असाधारण विकास और शानदार उपलब्धियों के दौर से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को निर्देशित किया।

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विक्रम साराभाई ने ऐसे भारत की परिकल्पना की थी, जो उपग्रहों के निर्माण एवं प्रक्षेपण में सक्षम हो और नई प्रौद्योगिकी सहित अंतरिक्ष कार्यक्रम का पूरा फायदा उठा सके। सतीश धवन ने न सिर्फ उनकी परिकल्पना को साकार किया, बल्कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊँचाई देते हुए भारत को दुनिया के गिने-चुने देशों की सूची में शामिल कर दिया। वे एक बेहतरीन इनसान भी थे, जिन्होंने कई लोगों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया।

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उनके प्रयासों से संचार उपग्रह इन्सैट, दूरसंवेदी उपग्रह आईआरएस और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी का सपना साकार हो सका।उनके प्रयासों से संचार उपग्रह इन्सैट, दूरसंवेदी उपग्रह आईआरएस और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी का सपना साकार हो सका और भारत चुनिंदा देशों की कतार में शामिल हो गया।

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सतीश धवन ने संस्था के अध्यक्ष के रूप में अपूर्व योगदान किया। उनके प्रयासों से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में असाधारण प्रगति हुई तथा कई बेहतरीन उपलब्धियाँ हासिल हुईं। अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख रहने के दौरान ही उन्होंने बाउंड्री लेयर रिसर्च(परिसीमा परत अनुसंधान) की दिशा में अहम योगदान किया, जिसका जिक्र दर्पन स्लिचटिंग की पुस्तक ‘बाउंड्री लेयर थ्योरी’ में किया गया है।

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*निधन*

तीन जनवरी 2002 को सतीश धवन की मृत्यु के बाद, दक्षिण भारत के चेन्नई की उत्तरी दिशा में लगभग 100 कि.मी. की दूरी पर श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश में स्थित ‘भारतीय उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र’ का ‘प्रोफ़ेसर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ के रूप में पुनर्नामकरण किया गया। सतीश धवन को इंडियन स्‍पेस प्रोग्राम की शुरुआत करने वाले एक और महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के बाद ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर जाना जाता है जिसने देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को सही मायनों में दिशा दी। उनके निधन पर तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने शोक व्यक्त करते हुए कहा था कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के शानदार विकास और उसकी ऊँचाई का काफी श्रेय प्रो. सतीश धवन के दूरदृष्टिपूर्ण नेतृत्व को जाता है।

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संकलन-पं.मदन मोहन रावत "खोजी बाबा"