🕉 धन्वन्तर्ये नमः।


हम पिछले अंक में  वेगो को रोकने पर क्या क्या रोग होते हैं, उस विषय में चर्चा कर चुके हैं। आज निम्न वेगों को न  रोकने पर चर्चा करेंगे ।


दुःसाहसिक कार्य जो कि अपनी शक्ति से बाहर हो ऐसे कार्यों से दूर रहना चाहिए ; दुःसाहस सिंह, व्याघ्र, अपने से अधिक बलशाली व्यक्ति के साथ लड़ाई करना आदि को आयुर्वेद में दुष्कर कर्म कहा गया है।


मन तथा वचन से किया गया एवं कहा गया सभी अशुभ वेग अर्थात  मन में अशुभ चिन्तन करना एवं वचन से अशुभ तथा अप्रिय बातें करना तथा अशुभ कर्म करना इन वेगो को रोकना चाहिए ; क्योंकि इससे अपना इह जन्म तथा पर जन्म भी दूषित हो जाती है ।


जो उचित कर्म को अनुचित ढंग से करते हैं तथा जो प्रकृत कर्म को अप्राकृतिक रूप से करते हैं एवं विना विचार किये कार्य को कर डालते हैं उनमें वायु कुपित हो   शरीर में स्थित अग्नि को विकृत कर देती हैं ।


जैसे हम किसी पर क्रोध प्रकट करते हैं तो सामने वाले पर ही इसका प्रभाव नहीं पड़ता अपितु अपने मन पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है;  ठीक उसी प्रकार जैसे सुखी लकड़ीयों को जलाकर किसी पदार्थ अथवा वस्तु को जला सकते हैं; वास्तव में वह लकड़ी पहले जलती है फिर दूसरे को जलाती हैं ।


मानसिक वेग: - लोभ, शोक, भय, क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, घृणा, हिंसा आदि वेगो को अवश्य रोकना चाहिए । अन्यथा मानसिक रोग  (Mental Diseases) होने की संभावना है ।


वाचनिक वेग:- कटु बातें कहना,  जोर जोर से चिल्लाते हुए बोलना,  झूठ बोलना,  मन को पीड़ा होने जैसा बातें कहना, दूष्टता से बातें करना आदि वेगो को अवश्य रोकना चाहिए क्योंकि इससे हृदय रोग ( Heart Disease) होने की संभावना है ।


उपयुक्त वेगो को रोकने से मानसिक रूप से स्वस्थ वृद्धि होती है । जब मानसिक स्थिति ही  सुदृढ़ ना हो तो ऐसी परिस्थिति में मनुष्य धर्म, अर्थ एवं काम यह तीन प्रकार का फल को कैसे भोगेगा???

आयुर्वेद का मूख्य उद्देश्य यही है कि मनुष्य का जीवन हित कर,  सुखकर तथा दीर्घायु हो ।


धन्यवाद

✍ सत्यवान नायक।