एनीमिया के बारे में जानें और इस बीमारी से बचें।


संकलन-डॉ.लक्ष्मण सिंह राजपूत

चकित्सा भाषा में एनीमिया का मतलब है रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी होना है। ऐसे में रोगी का हृदय रक्त को तेजी से प्रवाहित करने की कोशिश करता है ,जिससे मरीज को ऐसा लगता है कि उसकी छाती में पम्पिंग हो रही है और उसका दिल तेजी से धड़क रहा है। इस अवस्था में जबकि दिल बिल्कुल ठीक होता है रोगी को जरा सा परिश्रम भी पहाड़-सा और जानलेवा लगता है। 

लाल रक्त कण शरीर में आक्सीजन के वाहक भी होते हैं। हृदय के प्रयत्नों के बावजूद भी जब रक्त में लाल कणों की संख्या नहीं बढ़ती तो शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचने वाली आक्सीजन की सप्लाई में बाधा पहुंचने लगती है। आक्सीजन की कमी के चलते अनेक लक्षण उभर कर सामने आते हैं जैसे सिर दर्द, याददाश्त कमजोर होना, चिड़चिड़ापन छोटी−छोटी परेशानियों से बहुत ज्यादा नर्वस होना, बेहोशी की हालत होना। एकाग्रचितता का अभाव, कोई भी काम करते समय विशेषकर लिखते पढ़ते समय आंखें बंद-सा होना। कुछ लोगों को हाथ पैरों में झन्नाहट होने, कानों में घंटियां बजने, आंखों के सामने काले धब्बे आने तथा नींद न आने की शिकायत भी हो सकती है।

मांसपेशियों का स्थिर होना, रोगी को बहुत कमजोरी महसूस होना, भूख न लगना, जुकाम बना रहना, गैस बनना तथा उल्टी होना भी एनीमिया के लक्षण हैं। ऐसे में रोगी का वजन कम हो जाता है और उसे सांस भी कम आती है।


मौटे तौर पर एनीमिया दो प्रकार का होता है। पहले प्रकार का एनीमिया पोषक आहार की कमी से होता है ,जबकि दूसरी प्रकार का एनीमिया गैर आहारीय कारणों से होता है। आहार में मुख्यतः लौह तत्व (आयरन) की कमी होने से यह बीमारी होती है। कुपोषण तथा खाने पीने की गलत आदतों से भी यह रोग हो सकता है।

जब शरीर को आयरन कम मात्रा में मिलता है तो शरीर में फोलिक एसिड विटामिन बी तथा प्रोटीन की कमी भी हो जाती है। ऐसी स्थिति में एनीमिया हो सकता है। मासिक धर्म के दिनों में अधिक रक्त स्राव होने तथा गर्भावस्था में अकसर एनीमिया हो जाता है। गर्भावस्था में यों भी महिलाओं को अधिक आयरन की जरूरत होती है। इसका कारण यह है कि एक तो गर्भ में पल रहा बच्चा भी मां के शरीर से ही अपना पोषण पाता है दूसरी ओर बच्चे के जन्म के समय भी रक्त बह सकता है। 


आहारीय एनीमिया के निवारण के लिए हमें अपने आहार में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए ऐसे में भोजन में आयरन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे हरी सब्जियां, प्याज, आलू, सेब, खजूर, गाजर आदि का ज्यादा से ज्यादा समावेश करना चाहिए। हरी सब्जियां तथा ताजे फल हमारी फोलिक एसिड की आवश्यकता की पूर्ति भी करते हैं। दालें, दूध, सोयाबीन, मूंगफली, दही, पनीर आदि का भोजन में समावेश करने से प्रोटीन तथा विटामिन बी की कमी दूर की जा सकती है।


गैर आहारीय एनीमिया स्पष्टतः किसी विशेष पोषक तत्व की कमी के कारण नहीं होता। ये विभिन्न कारणों से होते हैं। एप्लास्टिक एनीमिया अस्थि मज्जा के निष्क्रिय पड़ने से होता है ,जिससे रक्त में लाल कण नहीं बन पाते। इसी प्रकार फेमिलियम हेमोलेटिक एनीमिया एक वंशानुगत रोग है। कई बार अधिक पुराने संक्रमण से भी एनीमिया हो सकता है। इसमें इन्फेक्शन को दूर करके इससे बचा जा सकता है।

 

एनीमिया के बारे में लोगों में अनेक मनगढंत धारणाएं भी फैली हैं जैसे पीले पड़े लोग एनीमिया से पीड़ित होते हैं, जबकि त्वचा के रंग से एनीमिया का कोई संबंध नहीं होता। हेम्रोफीलिक महिलाएं निश्चित रूप से विवाह भी कर सकती हैं और गर्भधारण भी, जबकि सामान्य लोगों में इसके बिल्कुल विपरीत सोच प्रचलित है। साथ ही सर्दियों में लाल रक्त कण कम बनते हैं परन्तु ऐसा नहीं है कि गर्मियों में लोग एनीमिक नहीं हो सकते। एनीमिया गर्मियों में भी हो सकता है।

अंत में एनीमिया से बचने का सबसे सरल उपाय है अपनी रसोई के बर्तनों पर एक नजर डालें। एक समय था जबकि लोहे की कड़ाही में दाल−सब्जी आदि बनाए जाते थे। इससे भोजन के साथ−साथ लौह तत्व भी हमारे शरीर में पहुंच जाता था। परन्तु आजकल घरों में ज्यादातर स्टील तथा एल्युमीनियम के बर्तनों का प्रयोग होता है जिससे हम बर्तनों से मिलने वाले लौह तत्व से वचिंत रह जाते हैं।