🕉️ धन्वन्तर्ये नमः।

हमने पिछले अंक में भूख प्यास आदि के वेग के विषय में चर्चा कर चुके हैं । आज आगे बढ़ते हैं ।


अश्रु वेग:- अश्रु अर्थात आँशु । अश्रु के वेग को जो व्यक्ति रोकते हैं उन्हें भविष्य में सर्दी, आँखों के रोग,  हृदय का रोग,  ऊषसी रोग (जिसको अंग्रेजी में Eosinophilia कहते हैं) , भूख की कमी, चक्कर आना, स्मरण शक्ति का ह्रास,  किसी निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ होना, स्नायु दूर्वलता , काम में मन नहीं लगना,  मैथुन शक्ति क्षीण होना तथा प्रजनन अंगों में विकृति आदि होते हैं ।


अतः अश्रु को कदापि ना रोके । जैसे आप मन खोलकर हंसते है ठीक उसी प्रकार मन खोलकर रोएँ।


आयुर्वेद के अनुसार हमारा शरीर पंच महाभूत से बना है । और यह पंच महाभूत का आधा अंश केवल हमारे आँखों में स्थित है ; इसका प्रमाण है कि जब कोई जन्म लेता है या लेती है तब उसकी आँखें  आकार में जितना होता है मृत्यु तक उसकी आँखों के आकार में कोई अन्तर नहीं होता ।


हमारे आँखों में दो मांसपेशि है यह पृथ्वी तत्व से सम्बन्ध हैं ।

प्रायः चिकित्सक रक्त का परिमाण के लिए आँखों में देखते हैं ; उसमें जो रक्त दिखाई देता है वह अग्नि तत्व से सम्बन्ध हैं ।


आँखों में जो कालिमा लिए दिखाई देता है वह वायु तत्व से सम्बन्ध हैं ।


आँखों के पटल में एक सफेद रंग का बिंदु है वह जल तत्व से सम्बन्ध हैं ।


जब हम दुःखी अथवा सुखी होते हैं तब हमारे आँखों में स्थित रक्त ही अश्रु के रूप में बह जाती हैं ।


तभी तो कहा गया है चिन्ता चिता समान । क्योंकि दुःखी अथवा सुखी होने से हमारे शरीर में रक्त की कमी होने लगती हैं । आयुर्वेद में उल्लेख है ।


आनन्दो रोगनाशनम् विषादो रोगवर्द्धनम्।


अर्थात आयुर्वेद कहता है आनन्द से जीओ सुख से जीने से क्या लाभ???


आज के लिए इतना ही 


कल आगे चर्चा करेंगे


धन्यवाद 


✍सत्यवान नायक