एमिटी में प्रो.( डॉ. )सामदु छेत्री ने छात्रों को बताया प्रसन्नता का महत्व।



नोयडा । 31 अक्टूबर (हि. वार्ता )

जीवन में प्रसन्न रहने के महत्व और अप्रसन्न रहने के कारणों से बचने के संर्दभ में जानकारी प्रदान करने के लिए एमिटी इंस्टीटयूट आॅफ एजुकेशन, एमिटी विश्वविद्यालय द्वारा वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में पश्चिम बंगाल के आईआईटी खड़गपुर के रेखी सेंटर आॅफ एक्सलेंस फाॅर द साइंस आॅफ हैप्पीनेस के विजटिंग प्रोफेसर डा सामदु छेत्री ने ‘‘ प्रसन्न रहने के महत्व’’ विषय पर व्याख्यान प्रदान किया। इस अवसर पर एमिटी विश्वविद्यालय के एमिटी इंस्टीटयूट आॅफ एजुकेशन की प्रमुख डा अलका मुदगल ने डा सामदु छेत्री का स्वागत किया।

पश्चिम बंगाल के आईआईटी खड़गपुर के रेखी सेंटर आॅफ एक्सलेंस फाॅर द साइंस आॅफ हैप्पीनेस के विजटिंग प्रोफेसर डा सामदु छेत्री ने ‘‘ प्रसन्न रहने के महत्व’’ विषय पर जानकारी देते हुए कहा कि प्रसन्नता आपके चुनाव पर निर्भर करता है, प्रसन्नता, सामग्री एंव आध्यात्मिक के मध्य का संतुलन है जो शरीर एंव मन के लिए आवश्यक हैं प्रसन्नता को धन से नही प्राप्त किया जा सकता और धनी एंव निर्धन के मध्य प्रसन्नता प्राप्त करने का कोई अंतर नही होता। डा छेत्री ने कहा कि हमारे विचार की प्रक्रिया, बोलना एंव कार्य करना स्थितियों को परिवर्तीत करता है और हमें प्रसन्नतचित रखता है। उन्होनें अप्रसन्न रहने के कारणों को बताते हुए कहा कि इसके तीन मुख्य कारण है प्रथम स्वंय से स्वंय का अलगाव जिसमें आप बीती हुई बातों या आने वाले भविष्य की चिंता में वर्तमान का त्याग कर देते है। असंतुष्ट रहते है और स्वंय की छवि निर्माण या संरक्षण की चिंता में रहते है। द्वितीय प्रकृति और स्वंय का अलगाव जिसमें आपका स्वास्थय ठीक नही रहता और आप जीवन को अनिश्चितता में जीते हैं। वित्तीय व्यवस्था या धन को लेकर डरे रहते है। तृतीय अन्य लोगों से आपका अलगाव जिसमें आप गैर समाजिक हो जाते है, मूल्यों को त्याग देते है। सदैव अन्य लोगों से तुलना, प्रतियोगिता या उनकी बुराई करते है। इसके अतिरिक्त आप सदैव उंचाई पर बने रहने की कामना करते या किसी निजी हानि के कारण, संवादहीनता के कारण अप्रसन्न रहते है। डा छेत्री ने कहा किसी भी चीज से अत्यधिक लगाव अप्रसन्नता का सबसे बड़ा कारण है।

डा सामदु छेत्री ने कहा कि अप्रसन्नता पर काबू पाने के लिए जीवन को एक घर समझें जिसकी नींव प्रेम है और विश्वास छत है और यह छत रिश्तों, एकता, मानवता एंव करूणा के चार खंबो पर ठीका है। उन्होनें कहा कि माइंडफुलनेस या सचेतन, प्रसन्नता का मुख्य स्त्रोत है। सचेतन से व्यक्ति अपने मस्तिष्क को रचनात्मक बना सकता है और आराम प्रदान कर सकता है। सुबह उठने सर्वप्रथम गहरी संास लें, ध्यान लगायें, तनाव को दूर करें, शरीर को जागरूक करें और सचेतन के साथ टहलें। माइंडफुलनेस या सचेतन के लाभ बताते हुए कहा कि सचेतन से मस्तिष्क का विकास होता है और व्यक्ति की कार्यक्षमता विकसित होती है। व्यक्ति के अदंर भय तनाव और चिंता कम होती है। उन्होनें मांइडफुलनेस या सचेतन के लाभों कों बताते हुए विभिन्न शोध का उदाहरण भी दिया। डा छेत्री ने प्रसन्नता के माइंडफुलनेस श्वसन मेडिटेशन के लाभों को बताते हुए कहा कि इससे लंबा जीवन, आत्मिक शांती, ध्यान लगाने की क्षमता का विकास, आत्मविश्वास में बढ़त, सकारात्मक भावना, रोगों से मुक्ति, रक्तचाप में कर्मी और प्रसन्न बौद्धिकता का विकास होता है।

डा छेत्री ने प्रसन्नता के मंत्र बताते हुए कहा कि वास्तविक बने रहें, दूसरों को क्षमा करें, सदैव सही इरादें रखें, प्रकृति से प्रेम पूर्वक व्यवहार करे और अन्य लोगों की सेवा करें, अपनी क्षमता एंव मानवमूल्यों को पहचानें, जब मौका मिले तो क्षमा या धन्यवाद जैसे शब्दों का प्रयोग करें, लोगों के प्रति दयावान बनें और चरित्र एंव नैतिकवान बनें।

एमिटी विश्वविद्यालय के एमिटी इंस्टीटयूट आॅफ एजुकेशन की प्रमुख डा अलका मुदगल ने डा छेत्री का स्वागत करते हुए कहा कि कोरोना से परिवर्तीत हुई स्थितियों ने सभी के अंदर तनाव और भविष्य की चिंता को बढाया है जिससे जीवन में अप्रसन्नता का विकास हुआ है। छात्रों, शिक्षकों सभी को प्रसन्नता के महत्व को समझाने के संर्दभ में इस वेबिनार का आयोजन किया गया।

वेबिनार में व्याख्यान के उपरांत प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन भी किया गया।