आख़िर कब तक होंगी, सफाई कर्मियों की अकाल मौतें



देश के प्रत्येक राज्य में समाचार पत्रो में अक्सर सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान जहरीली गैस बनने व अन्य दुर्घटनाओं मे सफाईकर्मियों की अकाल मौत का भयावह समाचार देखने को मिल ही जाता हैं जैसा कि अभी कुछ समय पूर्व देश की राजधानी में हुआ, निश्चित ही तकनीक व मशीनों से भरपूर इस इक्कीसवीं सदी में भी ऐसी दुर्घटनायें होना अत्यंत दुखद हैं परंतु इससे भी अधिक दुखद व शर्मनाक सरकार द्वारा इन भयानक दुर्घटनाओं को रोकने के गंभीरतापूर्वक ठोस प्रयास न करना हैं।

यहां यह याद रखना होगा कि सरकारी आंकडो के अनुसार विगत तीन बर्षो में ही सीवर सफाई के दौरान कुल 271 सफाईकर्मियों की जान जा चुकी हैं और इनमें से 110 मौतें बर्ष 2019 में ही हुई हैं, प्रदेश स्तर के आधार पर सरकारी आंकडो के अनुसार विगत तीन बर्षो में सबसे अधिक सफाई-कर्मियों की सीवर सफाई के दौरान 50 मौतें उत्तरप्रदेश में हुई हैं।

हालाँकि इन आंकडो को ही अंतिम सत्य नहीं माना जा सकता क्योंकि विभिन्न समाचारपत्रो की रिपोर्ट्स एवं कई सर्वे ऐजेन्सीज् के अनुसार सीवर सफाई के दौरान हुई सफाईकर्मियों की मौत का वास्तविक आंकडा, सरकारी रिकॉर्ड की तुलना में कई गुना अधिक हैं क्योंकि अनेक सफाईकर्मी संविदा पर अथवा ठेकेदारों के नीचे कार्य करते हैं जिनका अक्सर कोई रिकॉर्ड नहीं होता।

बर्ष 2013 के एक्ट के अनुसार किसी भी व्यक्ति को सीवर के अंदर भेजना पूर्णतः प्रतिबंधित हैं और यदि किसी बिशेष परिस्थिति में ऐसा करना भी पड़ता हैं तो उसके लिए लगभग 27 तरह के सुरक्षा-नियमों का पूर्णतः पालन करना आवश्यक हैं जिनमें चिन्हित कार्यस्थल पर एम्बूलेन्स की मौजूदगी, गमबूट, आॅक्सीजन सिलैण्डर, स्पेशल सूट, सेफ्टी वाॅयर आदि प्रमुख हैं परंतु हकीकत इसके विपरीत हैं सीवर सफाई के दौरान सफाई-कर्मियों को लगभग कोई भी सुरक्षा-उपकरण नहीं दिया जाता और जिम्मेदार पदेन् अधिकारियों की यही लापरवाही कईबार सफाईकर्मियों हेतु जानलेवा बन जाती हैं।

सीवर सफाई के दौरान हुई सफाईकर्मियों की मौतों को गंभीरता से संज्ञान में लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने 27 मार्च 2014 के निर्णय में सन् 1993 के बाद से सीवर में हुई सफाईकर्मियों की मौत पर उनके परिजनों को दस लाख रूपये की सहायता राशि देने का निर्देश/निर्णय दिया था, इसके बाद से ही सरकार द्वारा मृत सफाईकर्मियों की संख्या के आंकडे जुटाने की कवायद प्रारंभ की गयी परंतु सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के चार साल गुजर जाने के बाद भी सफाईकर्मियों की कुल मौतों का स्पष्ट आंकडा उपलब्ध नहीं हैं एवं अनेक मृत सफाई कर्मियों के परिजन सहायता राशि हेतु दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, इतना ही देशभर में नियमित व संविदा पर कार्यरत सफाईकर्मियों की संख्या की ठोस जानकारी राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के पास भी नहीं हैं।

मुद्दा मात्र सफाई कर्मचारी वर्ग की मौत का ही नहीं हैं वरन् इन सफाईकर्मी स्त्री-पुरूषो को अक्सर होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का भी हैं क्योंकि जिस गंदे व बदबूदार गटर/नाली/नाले/के पास से कोई भी व्यक्ति अपनी नाक बंद कर तेजी से गुजर जाना चाहता हैं वहीं उतरकर इन सफाईकर्मियों को घंटों काम करना पड़ता हैं जिसे किसी भी द्रष्टिकोण से कोई आसान व मामूली कार्य अथवा सेवा नहीं समझा जा सकता और न ही ऐसा समझा जाना चाहिए, इसी कार्य के कारण इन्हें विभिन्न स्वास्थ्य समस्याये जैसे चर्मरोग, सांस की बीमारी आदि होना आम हैं जिससे इनकी औसत आयु कम हो जाती हैं।

निश्चित तौर पर जहाँ प्रथम आवश्यकता सीवर सफाई के दौरान मशीनों का अधिकाधिक इस्तेमाल करने व सफाईकर्मियों को उनके कार्य के समय अधिक से अधिक सुरक्षा उपकरण व सामान मुहैया कराने एवं पर्याप्त ट्रेनिंग देने की है वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की शक्तियों को भी सिफारिश मात्र से आगे बढ़ाना अतिआवश्यक है।

तभी इन सफाई कर्मियों की सीवर मे अक्सर होने वाली अकाल मौतों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

बहरहाल इन सफाईकर्मियों के स्वास्थ्य व जीवन सुरक्षा के प्रति देश के जिम्मेदार पदेन् व्यक्तियों का लापरवाह नजरिया देखकर  यह निश्चित प्रतीत होता है कि हजारों बरसों से सामाजिक पिरामिड के सबसे निचले स्तर पर खड़े होकर बिना पूर्ण सुरक्षा-उपकरणों के देश की मूक सेवा कर रहा यह वर्ग शायद भविष्य मे विश्व-गुरु बनने का दावा करने वाली सरकार की प्राथमिकता की श्रेणी में नहीं आता।

 ✍ अतुल शर्मा