✍️ रविन्द्र दुबे
आपने बिहार के प्रसिद्ध व्यंजन लिट्टी चोखा के बारे में खूब सुना होगा। हो सकता है कि आपने खाया भी हो... लेकिन क्या आपको पता है कि बिहार में लिट्टी-चोखा का मेला भी लगता है। नहीं सुना तो जानिए यहां...
बक्सर:
बिहार के बक्सर के चरित्रवन की इस तस्वीर को देखिए। मैदान से उठता धुआं और लोगों की भीड़ को देख कर आप शायद समझ न पाएं कि दरअसल यहां हो क्या रहा है। तो जान लीजिए, ये लिट्टी चोखे का मेला है, जो मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से आयोजित होने वाला यह मेला शनिवार 5 दिसंबर 2020 से प्रारंभ होकर बुधवार 9 दिसंबर 2020 तक हो रहा है।
लिट्टी-चोखा का मेला
मेले के पांचवे दिन चरित्रवन बक्सर में तथा आसपास के सड़कों के किनारे और दूसरे जगहों में भी लोग इसी तरह जुटकर गोबर के कंडे में लिट्टी पकाते नजर आएंगे। आप अगर ठीक से इस इलाके को घूम लें तो ये लोग आपको आग्रह करके इतना लिट्टी चोखा खिला देंगे कि आप अगले कई दिनों तक लिट्टी-चोखा खाने के बारे में सोचेंगे भी नहीं। लिट्टी-चोखा के कई शौकीन और इस अनूठे मेले के प्रशंसक एक दिन पहले ही यहां पहुंच जाते हैं।
अपने आप में अनोखा मेला
यह अपने तरीके का अनूठा मेला है, जहां लोग सिर्फ एक तरह की रेसिपी बनाने और उसे खाने के लिए जुटते हैं। अमूमन पूरा बक्सर शहर और आसपास के गांव के लोग इस मेले में शामिल होते हैं, जो नहीं जा पाता उसके घर में लिट्टी-चोखा पकता है। इस तरह का फूड मेला कहीं और लगता हो अब तक ऐसी जानकारी मुझे नहीं है। इस मेले की विशालता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस दौरान बक्सर में सिर्फ गोबर के कंडे की बिक्री एक करोड़ तक पहुंच जाती है। इस मेले के बारे में कहावत है, ‘माई बिसरी, बाबू बिसरी, पंचकोसवा के लिट्टी-चोखा ना बिसरी।’
मेले की परंपरा का जुड़ाव रामायण काल से है।
इस मेले की परम्परा का जुड़ाव भगवान राम से है। ऐसा माना जाता है कि विश्वामित्र उन्हें राजा दशरथ से मांग कर यहीं ले आए थे। यहीं राम ने ऋषियों के यज्ञ में विघ्न डालने वाली राक्षसी ताड़का , सुबाहू का वध किया था। इस वध के बाद पांच अलग अलग ऋषियों के आश्रम से राम को निमन्त्रण मिला था। इन आश्रमों में रोज उन्हें अलग अलग चीजें खिलाई गई थीं। कहीं दही-चूड़ा, तो कहीं जलेबी तो कहीं साग-मूली। पांचवें दिन चरित्रवन में उन्हें लिट्टी-चोखा पकाकर खिलाया गया था। इसी प्रसंग को याद करते हुए बक्सर में पांच दिनों का पंचकोसी मेला लगता है। इस दौरान श्रद्धालु पांचों आश्रमों की यात्रा करते हैं और रोज अलग अलग भोग खाते हैं। इसका समापन बक्सर के चरित्रवन में होता है। जहां लिट्टी-चोखा का विशाल मेला लगता है।
पहला पड़ाव- गौतम ऋषि का आश्रम
यहां उनके श्राप से अहिल्या पत्थर हो गयी थी. उस स्थान का नाम अब अहिरौली है. इसे लोग हनुमान जी की ननिहाल भी कहते हैं. यहां जब भगवान राम पहुंचे, तो उनके चरण स्पर्श से पत्थर की शीला बनी अहिल्या जी श्राप मुक्त हुयी. वैदिक मान्यता के अनुसार अहिल्या की पुत्री का नाम अंजनी था, जिनके गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ. शहर के एक किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में अहिल्या मंदिर है, जहां मेला लगता है. यहां आने वाले श्रद्धालु पकवान और जलेबी प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं.
पंचकोश मेले का दूसरा पड़ाव कभी नारद मुनि का आश्रम था
आज भी इस गांव में नर्वदेश्वर महादेव का मंदिर और नारद सरोवर विद्यमान है. यहां आने वाले श्रद्धालु खिचड़ी चोखा बनाकर खाते हैं. ऐसी मान्यता है कि नारद आश्रम में भगवान राम और लक्ष्मण जी का स्वागत खिचड़ी -चोखा से किया गया था.
तीसरा पड़ाव- कभी भार्गव ऋषि का आश्रम हुआ करता था
यहां भगवान द्वारा तीर चलाकर तालाब का निर्माण किया गया था. इस स्थान का नाम अब भभुअर हो गया है. यहां भार्गवेश्वर महादेव का मंदिर था. जिनकी पूजा अर्चना के बाद लोग चूड़ा-दही का प्रसाद ग्रहण करते हैं. यह स्थान शहर से तीन चार किलोमीटर दूर सिकरौल नहर मार्ग पर स्थित है.
चौथा पड़ाव–शहर के नया बाजार से सटे बड़का नुआंव गांव
यहां उद्दालक मुनि का आश्रम हुआ करता था. यहीं पर माता अंजनी व हनुमान जी रहा करते थे. यहां सतुआ मुली का प्रसाद ग्रहण किया जाता है.
पांचवा पड़ाव शहर के चरित्रवन में लगता है
यहां महर्षि विश्वामित्र मुनि का आश्रम हुआ करता था. यहां लिट्टी-चोखा खाकर मेले का समापन होता है. यह जिले का बहुत ही खास मेला है. इसका अंदाज इसी से लगा सकते हैं. इस हाइटेक युग में भी बक्सर जिले के हर घर में समापन के दिन लिट्टी चोखा अवश्य बनता है. क्या अमीर क्या गरीब. इसका भेद पंचकोश के दिन जैसे मिट जाता है. इतना ही नहीं, बक्सर के लोग जो देश या विदेश में बसते हैं. इस तिथि को यही भोजन लिट्टी चोखा बनाकर ग्रहण करते हैं.
'यह अद्भुत मेला है , आपको भी अवसर मिले तो वहां जरूर जाएं।'