विश्वविद्यालय वेतन भोगियों की फंड राशि का किया हुआ है अलाभकारी निवेश ।
आगरा का मुख्य विश्वविद्यालय 'डा भीम राव आंबेडकर विश्वविद्यालय ' भारी अनियमित्ताऔ में फंसा हुआ है। जन जानकारी में अब तो और मुद्दों के अलावा जानकारी में आया है कि विश्ववि़द्यालय के शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को प्रबंधन के वरिष्ठ पदासीनों की दायित्व के प्रति उदासीनता से भारी आर्थिक घाटा उठाना पड रहा है,इसकी भी जानकारी सेवा कर्मी को तब होती है जबकि उसका सेवा काल समाप्त हो जाता है तथा सेवा निवृत्ति लाभ लेने विवि के कार्यालयों के चक्कर लगाता है।
वि वि प्रशासन ने, न जाने किन कारणों से कर्मचारियों और शिक्षकों के जनरल प्रोवीडैंट फंड (जी पी एफ) जमा करवाने को इलाहाबाद बैंक ( इंडियन बैंक )की पालीवाल पार्क स्तिथ ब्रांचों में सेविग बैंक खाते खुलवा रखे हैं। इनमें कर्मचारियों वेतन से काटा जाने वाले जनरल प्रोवीडैंट फंड के भाग और सेवायोजक विभाग के रूप में वि वि के अंश योगदान की राशि जमा होती है।
-- चूंकि खाते सेविग श्रेणी के हैं इस लिये इनमें जमा करवाये धन पर साधारण ब्याज ही बैंक देती है, जबकि कर्मचारियों के हित में सरकार की अपेक्षित व्यवस्था के अनुरूप फिक्स्ड डिपॉजिट या उन अन्य वैकल्पिक निवेश माध्यम अपनाने चाहिये थे जहां कर्मचारियों को अपने राशि पर अधिक ब्याज मिल सके। सब जानते हैं कि बैंके ब्याज दरे लगातार घट रही हैं जिसका सबसे ज्यदा असर सेविंग्स और फिक्स्ड डिपौजिट एकाऊंटो पर ही पड रहा है। एफ डी,म्यूचल फंड सरकारी योजनाओं के वांडो में निवेश करने पर मिलने वाली ब्याज दर की तुलना में फिक्स डिपाजिट की ब्याज अंतर होता है।
इस प्रकार वि विद्यालय सेवा कर्मियों के हितों को हर महीने भारी आर्थिक क्षति पहुंच रही है।
-- सिविल सोसायटी विवि के वीसी से मांग करती है कि वह सार्वजनिक करें कि कर्मचारियों के हितो को दर किनार कर जीपीएफ की राशि को कम लाभ की जगह निवेश के नाम पर क्यूँ जमा करवाया हुआ है और बताये कि विवि के वेतन भोगियों के आर्थिक हितो के विरूद्ध यह काम क्यों किया हुआ है।
छात्रों के धन से बना फंड प्रौवाईडर।
विवि जहां कर्मचारियों के हकों को नजर अंदाज कर जीपीएफ की राशि को कम ब्याज वाले मद में निवेश करने का दोषी है,वहीं छात्रों और प्राईवेट डिग्री कालैजों से बढा चढा कर फीस एवं एफीलेशन फीस वसूली कर जुटायी गयी राषि में से सै करोड राशि राजा महेन्द्र प्रताप सिह विवि अलीगढ को देने जैसा औचित्य हीन कृत्य भी इसी साल किये हुए है।
एक ओर जहां धन की कमी और मूल्यों की बढोत्तरी के नाम पर विवि लगातार फीसे बढा रहा है वहीं दूसरी ओर फंडिग एजेंसी के रूप में सक्रिय है। जो कि न तो उसका काम है और नहीं दायित्व है।
दूसर विवि के काम मे फंडिग गलत परिपाटी
अगर इस दान या योगदान को स्वीकार कर लिया गया तो विवि छात्रों से फीस आदि के नाम पर धन दोहन और उसे बैंकर के रूप में निवेश का माध्यम बन जायेगा। सबसे कष्टकारी तो यह है कि भारत की नयी शिक्षा नीति में इस प्रकार के निवेशकों के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
अगर विवि के पास सरप्लस पैसा है तो विवि को अपनी और महाविद्यालयो की अवस्था पना सुविधाओं में सुधार करना चाहिये था। न कि दूसरे विवि की फंडिग करने का अव्यवहारिक काम करना चाहिये था।
क्या यह कष्टकारी नहीं है कि जिस विवि के द्वारा धन अभाव में अपने संकाय बंद करने पड रहे हों वह दूसरे शिक्षा परिसरों पर धन लुटाता फिरे।
कोर्स बंद करने से रोका जायें
विवि अनुदान आयोग से फंडिड होने के बावजूद कई महत्वपूर्ण कोर्सो के बंद होने की स्तिथि विवि तंत्र बना रहा है। इनके अलावा सेल्फ फाईनेंस परिपाटी के भी जो कोर्स चल रहे हैं उनमें से अधिकांश के बंद हाने की स्तिथि पहुंच गयी है।
उन कई कोर्स को लेकर सबसे ज्यादा दुखद स्तिथि है जिनकी छात्रों में बेहद मांग है, और रोज़गार परक भी।
--हम किसी प्राइवेट महाविद्यालय या संस्थान का इस समय नाम नहीं ले सकते किन्तु यह अनुमानित हे कि जैसे ही विवि वित्तीय स्वीकृति वाले कोर्सों को बंद करेगा वैसे ही विवि से ही संबद्ध प्राइवेट संस्थायें उन्हें अपने यहां शुरू करने को जुट जायेंगी।
बिल्डिंग पर अनापशनाप खर्च
इसी के साथ इस विवि के लालित कला संकाय की इमारत पर खर्च की गयी उस राशि के बारे में भी जानकारी चाहते हैं,जिसकी स्वीकृति आगरा विकास प्राधिकरण से भी नहीं ली गयी। लगभग एक अरब की राशि इस प्रोजेक्ट पर खर्च की गयी बतायी जा रही है। प्राइवेट अनएडिड महाविद्यालयों से वसूली गयी इस राशि का एक पैसा भी निजि संस्थाओं की सेवा स्तिथि बेहतर करने पर खर्च नहीं किया गया है।
उक्त बयान प्रेस वार्ता के दौरान पेश करने में शिरोमणि सिंह, अनिल शर्मा और अधिवक्ता देवेन्द्र कुमार त्रिपाठी प्रमुख थे।